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22:00, 17 अक्टूबर 2019 का अवतरण
बादे सबा
रचनाकार | हरिराज सिंह 'नूर' |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- जुगनू चमके, मौसिम बदला, रात हुई है प्यारी / हरिराज सिंह 'नूर'
- वो धमाका अजब कर गया / हरिराज सिंह 'नूर'
- तंगहाली अब न छोड़ेगी मुझे / हरिराज सिंह 'नूर'
- अपने दुश्मन हाथ मलते रह गए / हरिराज सिंह 'नूर'
- दे गईं यादें तिरी क्या ख़ूब नज़राना मुझे / हरिराज सिंह 'नूर'
- मीत! मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला / हरिराज सिंह 'नूर'
- चिलचिलाती धूप में परछाइयाँ कैसे मिलें / हरिराज सिंह 'नूर'
- बेरुख़ी की कोई दवा है क्या / हरिराज सिंह 'नूर'
- बिजलियाँ जो भी अब गिराएगा / हरिराज सिंह 'नूर'
- तुम ज़रा-सा मुस्कुराओ तो बहार आए / हरिराज सिंह 'नूर'
- कोई नहीं मेरा यहाँ, मुझको कि जो पहचान दे / हरिराज सिंह 'नूर'
- अब ख़ौफ़ भी कोई नहीं, तूफ़ां यहाँ कोई नहीं / हरिराज सिंह 'नूर'
- गुज़रा हुआ ज़माना अब याद क्या करें हम / हरिराज सिंह 'नूर'
- सुख़नवर जो भी बन जाता / हरिराज सिंह 'नूर'
- झुकी नज़रें कहाँ खोईं बताओ तो / हरिराज सिंह 'नूर'
- दुआओं में असर आना ज़रूरी है / हरिराज सिंह 'नूर'
- मदद को कोई क्यों आए, सभी जब ग़म के मारे हैं / हरिराज सिंह 'नूर'
- समुन्दर से भी गहरा है तुम्हारी आँख का पानी / हरिराज सिंह 'नूर'
- ग़रीबी में कहाँ कोई फ़साना याद रहता है / हरिराज सिंह 'नूर'
- ग़ज़ब का ख़ौफ़ ग़ालिब है कि दुनिया सर झुकाती है / हरिराज सिंह 'नूर'
- सहर होने से पहले आस्मां पर ये जो लाली है / हरिराज सिंह 'नूर'
- किसी दरवेश की झोली दुआओं से नहीं ख़ाली / हरिराज सिंह 'नूर'
- तिरी आँखों का पानी मर गया है / हरिराज सिंह 'नूर'
- है क़ायम आदमीयत, क्या ये कम है / हरिराज सिंह 'नूर'
- मुक़द्दर ने मुसलसल ग़म दिए हैं / हरिराज सिंह 'नूर'
- ये नर्म-नर्म धूप भी बहार का है सिलसिला / हरिराज सिंह 'नूर'
- सितम ही मुझपे अगर बेहिसाब होना था / हरिराज सिंह 'नूर'
- घबराए जो अजल से इंसान वो नहीं है / हरिराज सिंह 'नूर'
- तारीख़ गवाही दे कि आज़ाद हुए हम / हरिराज सिंह 'नूर'
- ज़माने का हर दर्द मैं पी रहा हूँ / हरिराज सिंह 'नूर'
- मुझे तेरा कब आशियाना मिलेगा / हरिराज सिंह 'नूर'
- इबादत मुसलसल मैं करता रहूँगा / हरिराज सिंह 'नूर'
- ज़माने में रौशन शराफ़त हमारी / हरिराज सिंह 'नूर'
- आँखों को मेरी आज भी तेरी तलाश है / हरिराज सिंह 'नूर'
- अजीब कुछ भी नहीं है सब कुछ क़यास में है / हरिराज सिंह 'नूर'
- दिल आगे बढ़, पीछे हटता, ये कैसा चक्कर है यारो / हरिराज सिंह 'नूर'
- कुछ एक हसीं यादें हैं जो इस दिल को थामे रहती हैं / हरिराज सिंह 'नूर'
- मीठी-मीठी बातों से वो कानों में रस घोल गए / हरिराज सिंह 'नूर'
- ग़म जो कर दे छू मंतर / हरिराज सिंह 'नूर'
- आँचल की छाया में रहना, अच्छा लगता है / हरिराज सिंह 'नूर'
- लगता है मेरी आँखों ने फिर से धोखा खाया है / हरिराज सिंह 'नूर'
- सीख ले जो भी दाना सिखाए / हरिराज सिंह 'नूर'
- मुहब्बत से भरे दिल को शिकस्ता साज़ कर देना / हरिराज सिंह 'नूर'
- मनाएँ इस तरह होली कि दुनिया की फ़जा बदले / हरिराज सिंह 'नूर'
- आँचल तो वही जो रंगों से, भर दे दामन अँगनाई का / हरिराज सिंह 'नूर'
- हौस्ला जीने का बिंदास लिए हो तुम तो / हरिराज सिंह 'नूर'
- मुस्कुराहट तेरी है या मौ’जिज़ा है / हरिराज सिंह 'नूर'
- रात-दिन की हर परेशानी भली है / हरिराज सिंह 'नूर'
- किसी से कुछ नहीं बेशक कहा है / हरिराज सिंह 'नूर'
- सदाक़त ही सदा क़ाइम रहेगी / हरिराज सिंह 'नूर'
- न होंठों पर हँसी आई, न आँखों में चमक देखी / हरिराज सिंह 'नूर'
- कहानी में हमने हक़ीक़त बुनी है / हरिराज सिंह 'नूर'
- हालात वही हैं, जज़्बात वही हैं / हरिराज सिंह 'नूर'
- धूप आने की प्रबल संभावना है / हरिराज सिंह 'नूर'
- घुटन है, घटा क्यों बरसती नहीं है / हरिराज सिंह 'नूर'
- सामने आकर बात करो तो अच्छा है / हरिराज सिंह 'नूर'
- चल कर सुलगती रेत पर पल-पल उभारें ज़िन्दगी / हरिराज सिंह 'नूर'
- आलमे-दिल पे छा गया कोई / हरिराज सिंह 'नूर'
- भले ही मुश्किलों में हैं, कहा हम मान लेते हैं / हरिराज सिंह 'नूर'
- बिखरे हुए तिनकों से घर सामने लाना है / हरिराज सिंह 'नूर'
- ग़म उठाने को भली है ज़िन्दगी / हरिराज सिंह 'नूर'
- हक़ीक़त बयां भी न होगी ज़माने / हरिराज सिंह 'नूर'
- मेरा ख़्वाब है, मुझको तेरे साथ चलना है / हरिराज सिंह 'नूर'
- लफ़्जों की असलियत से क्यों दूर भागते हो / हरिराज सिंह 'नूर'
- ग़म की हर जा बरात मिलती है / हरिराज सिंह 'नूर'
- सबने उजला तन देखा है / हरिराज सिंह 'नूर'
- रास्ते जितने वफ़ा के थे, वो बाधित हो गए / हरिराज सिंह 'नूर'
- ग़ज़ब है ये नदी अब भी रुलाती है / हरिराज सिंह 'नूर'
- कुछ न माँगे दे के जो, वो प्यार है / हरिराज सिंह 'नूर'
- रंग-बिरंगी है ये दुनिया या कोई जादू-टोना है / हरिराज सिंह 'नूर'