प्रणय पत्रिका
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रचनाकार | हरिवंशराय बच्चन |
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प्रकाशक | सेंट्रल बुक ड़िपो, इलाहाबाद |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | |
पृष्ठ | १४७ |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- क्या गाऊँ जो मैं तेरे मन को भा जाऊँ / हरिवंशराय बच्चन
- भावाकुल मन की कौन कहे मजबूरी / हरिवंशराय बच्चन
- तुम छेड़ो मेरी बीन कसी रसराती / हरिवंशराय बच्चन
- सुर न मधुर हो पाए, उर की वीणा को कुछ और कसो ना / हरिवंशराय बच्चन
- राग उतर फिर-फिर जाता है, बीन चढ़ी ही रह जाती है / हरिवंशराय बच्चन
- बीन आ छेडूँ तुझे, मन में उदासी छा रही है / हरिवंशराय बच्चन
- आज गीत मैं अंक लगाए, भू मुझको, पर्यंक मुझे क्या / हरिवंशराय बच्चन
- सो न सकूँगा और न तुझको सोने दूँगा, हे मन बीने / हरिवंशराय बच्चन
- एक यही अरमान गीत बन, प्रिय, तुमको अर्पित हो जाऊँ / हरिवंशराय बच्चन
- अर्पित तुमको मेरी आशा, और निराशा, और पिपासा / हरिवंशराय बच्चन
- मेरी तो हर साँस मुखर है, प्रिय, तेरे सब मौन सँदेशे / हरिवंशराय बच्चन
- सुमुखि कभी क्या मेरे जीवन के भी ऐसे दिन आएँगे / हरिवंशराय बच्चन
- क्या मेरा है जो आज नहीं है तेरा / हरिवंशराय बच्चन
- तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है / हरिवंशराय बच्चन
- झुरमुट में अटका चाँद, कहीं अटका मन मेरा भी / हरिवंशराय बच्चन
- नहीं बिसरते हैं बिसराए तेरे नयन सनीर, लजीले / हरिवंशराय बच्चन
- पुष्प-गुच्छ माला दी सबने तुमने अपने अश्रु छिपाए / हरिवंशराय बच्चन
- एक दीप बाले तुम बैठीं, एक दीप बाले मैं बैठा / हरिवंशराय बच्चन
- नयन तुम्हारे-चरण कमल में अर्ध्य चढ़ा फिर-फिर भर आते / हरिवंशराय बच्चन
- आ गई बरसात, मुझको आज फिर घेरे हुए बादल / हरिवंशराय बच्चन
- मेरे मन का उन्माद गगन बदराया / हरिवंशराय बच्चन
- बादल घिर आए, गीत की बेला आई / हरिवंशराय बच्चन
- क्या आज तुम्हारे आँगन में भी घन छाए / हरिवंशराय बच्चन
- चंचला के बाहु का अभिसार बादल जानते हों / हरिवंशराय बच्चन
- ले ली जीवन ने अग्नि-परीक्षा मेरी / हरिवंशराय बच्चन
- यह चाँद नया है नाव नई आशा की / हरिवंशराय बच्चन
- याद तुम्हारी लेकर सोया, याद तुम्हारी लेकर जागा / हरिवंशराय बच्चन
- हर रात तुम्हारे पास चला मैं आता हूँ / हरिवंशराय बच्चन
- भावना तुमने उभारी थी कभी मेरी, इसे भूला नहीं मैं / हरिवंशराय बच्चन
- पाप मेरे वास्ते है नाम लेकर आज भी तुमको बुलाना / हरिवंशराय बच्चन
- रात आधी खींचकर मेरी हथेली एक उँगली से लिखा था ’प्यार’ तुमने / हरिवंशराय बच्चन
- नींद प्यारी थी तुम्हें तब क्योंकि तुमने प्यार का शर-शूल था समझा न जाना / हरिवंशराय बच्चन
- धार थी तुममें कि उसको आँकते ही हो गया बलिहार था मैं / हरिवंशराय बच्चन
- प्रिय, देख मिलन मेरा-तेरा क्यों तारे जलते हैं / हरिवंशराय बच्चन
- तुम अपने जीवन की गाँठें खोलो, संगिनि, मैं भी खोलूँ / हरिवंशराय बच्चन
- चढ़ चल मेरे साथ करें हम इस पर्वत पर प्यार, सहेली / हरिवंशराय बच्चन
- सखि, अभी कहाँ से रात, अभी तो अंबर लाली / हरिवंशराय बच्चन
- भर आह कहूँगा मैं नोरा / हरिवंशराय बच्चन
- तुम्हारे नील झील से नैन, नीर निर्झर से लहरे केश / हरिवंशराय बच्चन
- तुम बुझाओ प्यास मेरी या जलाए फिर तुम्हारी याद / हरिवंशराय बच्चन
- बिसरा दो, माना, मेरी थी नादानी / हरिवंशराय बच्चन
- व्योम पर छाया हुआ तम तोम, हे हिम हंस, तू जाता कहाँ है / हरिवंशराय बच्चन
- कौन सरसी को अकेली और सहमी छोड़ तुम आये यहाँ हो,कुछ बताओ / हरिवंशराय बच्चन
- अब हेमंत अंत नियराया लौट न आ तू गगन बिहारी / हरिवंशराय बच्चन
- कौन हंसिनियाँ लुभाए हैं तुझे ऐसा कि तुझको मानसर भूला हुआ है / हरिवंशराय बच्चन
- कह रही है पेड़ की हर शाख़ अब तुम आ रहे अपने बसेरे / हरिवंशराय बच्चन
- हो चुका है चार दिन मेरा तुम्हारा, हेम हंसिनि, और इतना भी यहाँ पर कम नहीं है / हरिवंशराय बच्चन
- वाणबिद्ध मराल-सा अब आ गिरा हूँ मैं तुम्हारी ही शरण में / हरिवंशराय बच्चन
- कहाँ सबल तुम, कहाँ निबल मैं, प्यारे, मैं दोनों का ज्ञाता / हरिवंशराय बच्चन
- झलक तुम्हारी मैंने पाई सुख-दुख दोनों की सीमा पर / हरिवंशराय बच्चन
- यह ठौर प्रतीक्षा की घड़ियों का साखी / हरिवंशराय बच्चन
- मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी, प्रिय, तुम आते तब क्या होता / हरिवंशराय बच्चन
- मेरे उर की पीर पुरातन तुम न हरोगे कौन हरेगा / हरिवंशराय बच्चन
- आज मलार कहीं तुम छेड़े, मेरे नयन भरे आते हैं / हरिवंशराय बच्चन
- मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है / हरिवंशराय बच्चन
- मेरे अंतर की ज्वाला तुम घर-घर दीप शिखा बन जाओ / हरिवंशराय बच्चन
- हे मन के अंगार, अगर तुम लौ न बनोगे, क्षार बनोगे / हरिवंशराय बच्चन
- तन के सौ सुख, सौ सुविधा में मेरा मन बनवास दिया-सा / हरिवंशराय बच्चन
- तुमको छोड़ कहीं जाने को आज हृदय स्वच्छंद नहीं है / हरिवंशराय बच्चन