उतना ही हरा भरा
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रचनाकार | वीरा |
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प्रकाशक | शिल्पायन, दिल्ली |
वर्ष | 2004 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | |
पृष्ठ | 92 |
ISBN | 81-87302-56-9 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
सुबह की ओस उन पर भी
- मछलियाँ / वीरा
- गहमागहमी / वीरा
- जड़-1 / वीरा
- जड़-2 / वीरा
- ओस / वीरा
- उम्र की तरह / वीरा
- इन्तज़ार / वीरा
- आदमी / वीरा
- प्रस्तावना / वीरा
- हर बार / वीरा
- उगना / वीरा
- उम्मीदें / वीरा
- क्या होगा / वीरा
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दो कद्दावर मस्तक क्षितिज में जा मुस्कुराए
- विश्वास / वीरा
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- तुम्हारी ग़लतफ़हमी / वीरा
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- मुलाक़ात / वीरा
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- बोझिल रातें / वीरा
- खिड़की से / वीरा
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- पैर / वीरा
- अचानक / वीरा
बच्चा हवाई जहाज देखता है
- मोहर / वीरा
- फ़र्क़ / वीरा
- बेटी के लिए एक कविता / वीरा
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- कहानियाँ और सपने / वीरा
- डर / वीरा
- बरसात / वीरा
- सुबह / वीरा
- काठ का घोड़ा / वीरा
- माँ और सूरज / वीरा
वह छू रहा है रोंयेदार कोमल सफ़ेद स्पर्श से