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ज़ौक़
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मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़
जन्म | 1789 |
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निधन | नवम्बर 1854 |
उपनाम | ज़ौक़ |
जन्म स्थान | दिल्ली, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
ज़ौक़ का पूरा नाम शेख़ मुहम्मद इब्राहिम ज़ौक था और आप मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन एक मशहूर शायर थे। ज़ौक अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद थे। | |
जीवन परिचय | |
ज़ौक़ / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- इस तपिश का है मज़ा दिल ही को हासिल होता/ ज़ौक़
- जान के जी में सदा जीने का ही अरमाँ रहा/ज़ौक़
- तेरा बीमार न सँभला जो सँभाला लेकर/ ज़ौक़
- अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे/ ज़ौक़
- लायी हयात, आये, क़ज़ा ले चली, चले/ ज़ौक़
- आज उनसे मुद्दई कुछ मुद्दा कहने को है / ज़ौक़
- यह अक़ामत हमें पैग़ामे-सफ़र देती है / ज़ौक़
- उसे हमने बहुत ढूँढा न पाया / ज़ौक़
- तेरे कूचे को वोह बीमारे-ग़म दारुश्शफ़ा समझे / ज़ौक़
- क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले / ज़ौक़
- कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गए / ज़ौक़
- निगाह का वार था / ज़ौक़
- आँख उस पुर-जफ़ा से लड़ती है / 'ज़ौक़'
- आँखें मेरी तलवों से वो मिल जाए / 'ज़ौक़'
- आते ही तू ने घर के फिर जाने की / 'ज़ौक़'
- ऐ 'ज़ौक़' वक़्त नाले के रख ले जिगर पे हाथ / 'ज़ौक़'
- अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की / 'ज़ौक़'
- बाग़-ए-आलम में जहाँ नख़्ल-ए-हिना / 'ज़ौक़'
- बलाएँ आँखों से उन की मुदाम लेते हैं / 'ज़ौक़'
- बर्क़ मेरा आशयाँ कब का जला कर / 'ज़ौक़'
- बज़्म में ज़िक्र मेरा लब पे वो लाए / 'ज़ौक़'
- चश्म-ए-क़ातिल हमें क्यूँकर न भला / 'ज़ौक़'
- चुपके चुपके ग़म का खाना कोई / 'ज़ौक़'
- दरया-ए-अश्क चश्म से जिस आन / 'ज़ौक़'
- दिखला न ख़ाल-ए-नाफ़ तू ऐ गुल-बदन / 'ज़ौक़'
- दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़ / 'ज़ौक़'
- दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मेरे ग़म-ख़ाने / 'ज़ौक़'
- गईं यारों से वो अगली मुलाक़ातों की / 'ज़ौक़'
- गोहर को जौहरी सर्राफ़ ज़र को देखते हैं / 'ज़ौक़'
- हंगामा गर्म हस्ती-ए-ना-पाए-दार का / 'ज़ौक़'
- हाथ सीने पे मेरे रख के किधर देखते हो / 'ज़ौक़'
- हैं दहन ग़ुंचों के वा क्या जाने क्या / 'ज़ौक़'
- हम हैं और शुग़ल-ए-इश्क़-बाज़ी है / 'ज़ौक़'
- हुए क्यूँ उस पे आशिक़ हम अभी से / 'ज़ौक़'
- इक सदमा दर्द-ए-दिल से मेरी जान / 'ज़ौक़'
- जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में / 'ज़ौक़'
- जो कुछ के है दुनिया में वो इन्साँ / 'ज़ौक़'
- जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब / 'ज़ौक़'
- कब हक़-परस्त ज़ाहिद-ए-जन्नत-परस्त है / 'ज़ौक़'
- कहाँ तलक कहूँ साक़ी के ला शराब तो दे / 'ज़ौक़'
- कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ / 'ज़ौक़'
- कौन वक़्त ऐ वाए गुज़रा जी को / 'ज़ौक़'
- किसी बे-कस को ऐ बे-दाद गर मारा / 'ज़ौक़'
- कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे / 'ज़ौक़'
- कोई कमर को तेरी कुछ जो हो कमर / 'ज़ौक़'
- क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी / 'ज़ौक़'
- लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ / 'ज़ौक़'
- मार कर तीर जो वो दिल-बर-ए-जानी / 'ज़ौक़'
- महफ़िल में शोर-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना-ए-मुल / 'ज़ौक़'
- मर्ज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे / 'ज़ौक़'
- मज़ा था हम को जो लैला से दू-ब-दू करते / 'ज़ौक़'
- मेरे सीने से तेरा तीर जब ऐ जंग-जू / 'ज़ौक़'
- न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा / 'ज़ौक़'
- न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर / 'ज़ौक़'
- नाला इस शोर से क्यूँ मेरा दुहाई देता / 'ज़ौक़'
- नहीं सबात बुलंदी-ए-इज्ज़-ओ-शाँ के लिए / 'ज़ौक़'
- नीमचा यार ने जिस वक़्त बग़ल में मारा / 'ज़ौक़'
- क़स्द जब तेरी ज़ियारत का कभू करते हैं / 'ज़ौक़'
- क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो / 'ज़ौक़'
- रिंद-ए-ख़राब-हाल को ज़ाहिद न छेड़ तू / 'ज़ौक़'
- सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए / 'ज़ौक़'
- तेरे आफ़त-ज़दा जिन दश्तों में / 'ज़ौक़'
- उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है / 'ज़ौक़'
- वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें / 'ज़ौक़'
- वो कौन है जो मुझ पे तअस्सुफ़ / 'ज़ौक़'
- ये इक़ामत हमें पैग़ाम-ए-सफ़र देती है / 'ज़ौक़'
- ज़ख़्मी हूँ तेरे नावक-ए-दुज़-दीदा-नज़र से / 'ज़ौक़'