भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहमद फ़राज़
Kavita Kosh से
					द्विजेन्द्र द्विज  (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:08, 17 जुलाई 2009 का अवतरण
अहमद फ़राज़

| जन्म | 14 जनवरी 1931 | 
|---|---|
| निधन | 25 अगस्त 2008 | 
| उपनाम | फ़राज़ | 
| जन्म स्थान | नौशेरा, पाकिस्तान | 
| कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
| खानाबदोश, ये मेरी गजलें वे मेरी नज़्में | |
| विविध | |
| अहमद फ़राज़ का मूल नाम सैयद अहमद शाह है। आप आधुनिक युग के उर्दू के सबसे उम्दा शायरों में गिने जाते हैं। | |
| जीवन परिचय | |
| अहमद फ़राज़ / परिचय | |
- खानाबदोश / फ़राज़ (ग़ज़ल संग्रह)
 - ये मेरी गजलें वे मेरी नज़्में / फ़राज़ (ग़ज़ल संग्रह)
 
<sort order="asc" class="ul">
- अब किस का जश्न मनाते हो / फ़राज़
 - ख़ुदकुशी / फ़राज़
 - जब तेरी याद के जुगनू चमके/फ़राज़
 - इस से पहले कि बेवफा हो जाएँ / फ़राज़
 - आशिक़ी बेदिली से मुश्किल है / फ़राज़
 - भले दिनों की बात थी / फ़राज़
 - यही कहा था मेरे हाथ में है आईना / फ़राज़
 - रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए / फ़राज़
 - आँख से दूर न हो / फ़राज़
 - अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें / फ़राज़
 - अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन / फ़राज़
 - अब के तज्दीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ / फ़राज़
 - कुछ शेर / फ़राज़
 - अब नये साल की मोहलत नहीं मिलने वाली / फ़राज़
 - ऐसे चुप हैं के ये मंज़िल भी ख़ड़ी हो जैसे / फ़राज़
 - बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है / फ़राज़
 - बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा / फ़राज़
 - बेनियाज़-ए-ग़म-ए-पैमान-ए-वफ़ा हो जाना / फ़राज़
 - बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये / फ़राज़
 - छेड़े मैनें कभी लब-ओ-रुख़सार के क़िस्से / फ़राज़
 - दिल भी बुझा हो, शाम की परछाईयाँ भी हों / फ़राज़
 - दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला / फ़राज़
 - दुख फ़साना नहीं के तुझ से कहें / फ़राज़
 - फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं / फ़राज़
 - गिले फ़िज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुये / फ़राज़
 - हाथ उठे हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं / फ़राज़
 - हर तमाशाई फ़क़त साहिल से मंज़र देखता / फ़राज़
 - हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दार भी गया / फ़राज़
 - हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू / फ़राज़
 - इन्हीं ख़ुश-गुमानियों में कहीं जाँ से भी न जाओ / फ़राज़
 - इस दौर-ए-बेजुनूँ की कहानी कोई लिखो / फ़राज़
 - इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की / फ़राज़
 - जिस सिम्त भी देखूँ नज़र आता है के तुम हो / फ़राज़
 - जुज़ तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे / फ़राज़
 - कहा था किस ने के अह्द-ए-वफ़ा करो उससे / फ़राज़
 - करूँ न याद अगर किस तरह भुलाऊँ उसे / फ़राज़
 - कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो / फ़राज़
 - ख़मोश हो क्यों दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते / फ़राज़
 
*वही जुनूँ है वही कूच-ए-मलामत है / फ़राज़ *ख़्वाब / फ़राज़ *हमदर्द / फ़राज़ *शिकस्त / फ़राज़ *वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया / फ़राज़
- ख़्वाब मरते नहीं / फ़राज़
 - कुछ न किसी से बोलेंगे / फ़राज़
 - क्या रुख़्सत-ए-यार की घड़ी थी / फ़राज़
 - मैं तो आवारा शायर हूँ मेरी क्या वक़'अत / फ़राज़
 - मुंतज़िर कब से तहय्युर है तेरी तक़रीर का / फ़राज़
 - वो तफ़व्वुतें हैं मेरे खुदा कि ये तू नहीं कोई और है / फ़राज़
 - पयाम आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे / फ़राज़
 - पेच रखते हो बहुत साज-ओ-दस्तार के बीच / फ़राज़
 - फिर उसी राहगुज़र पर शायद / फ़राज़
 - क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे / फ़राज़
 - साक़िया इक नज़र जाम से पहले पहले / फ़राज़
 - सब लोग लिये संग-ए-मलामत निकल आये / फ़राज़
 - सकूत-ए-शाम-ए-ख़िज़ाँ है क़रीब आ जाओ / फ़राज़
 - शोला था जल-बुझा हूँ, हवायें मुझे न दो / फ़राज़
 - सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं / फ़राज़
 - तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तेरी दुहाई न दूँ / फ़राज़
 - तेरे होते हुये महफ़िल में जलते हैं चिराग़ / फ़राज़
 - तेरी बातें ही सुनाने आये / फ़राज़
 - तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बेरहम हैं दोस्तो / फ़राज़
 - तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है / फ़राज़
 - उसको जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ / फ़राज़
 - उसने कहा सुन / फ़राज़
 - उसने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया / फ़राज़
 - वफ़ा के भेस में कोई रक़ीब-ए-शहर भी है / फ़राज़
 - वफ़ा के ख़्वाब मुहब्बत का असर ले जा / फ़राज़
 - वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबलापाई ले ले / फ़राज़
 - ये आलम शौक़ का देखा न जाये / फ़राज़
 - ये क्या के सब से बयाँ दिल की हालतें करनी / फ़राज़
 - ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में / फ़राज़
 - ये तबियत है तो ख़ुद आज़ार बन जायेंगे हम / फ़राज़
 - ज़ख़्म को फूल तो सर को सबा कहते हैं/ फ़राज़
 - वो ठहरता क्या कि गुज़रा तक नहीं जिसके लिए / फ़राज़
 - ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे / फ़राज़
 - क्या ऐसे कम-सुकन से कोई गुफ्तगू करे / फ़राज़
 - तुझसे बिछड़ के हम भी मुकद्दर के हो गये / फ़राज़
 - जो भी दुख याद न था याद आया / फ़राज़
 - तुझ पर भी न हो गुमान मेरा / फ़राज़
 - क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं / फ़राज़
 - मुत्तफ़ावतें हैं मेरे ख़ुदा कि ये तू नहीं कोई और है / फ़राज़
 
<sort>
	
	