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+ | * [[बहाने यूँ तो पहले से भी थे आँसू बहाने के / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[मेरी क़ुरबतों की ख़ातिर यूँ ही बेक़रार होता / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[चलते-चलते तू क्यों रुक गया है यहाँ / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[सुब्ह सवेरे अपने कमरे में जो देखा चाँद / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[वो चाँद भी लो हँस पड़ा / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[वो काशी को क्योटो बनाएँगे कैसे / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[पढ़ रहा हूँ वेदना का व्याकरण मैं / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[आँखों की बारिशों से मेरा वास्ता पड़ा / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[हालात की तस्वीर बदल जाए तो अच्छा / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[हर तरफ़ उसकी हवा हो जैसे / आलोक यादव]] | ||
+ | * [[दिल में जो कुछ मलाल रखते हैं / आलोक यादव]] | ||
* [[बहुत रोका मगर ये कब रुके हैं / आलोक यादव]] | * [[बहुत रोका मगर ये कब रुके हैं / आलोक यादव]] | ||
* [[था मेरा सा, मगर मेरा नहीं था / आलोक यादव]] | * [[था मेरा सा, मगर मेरा नहीं था / आलोक यादव]] |
12:47, 27 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
आलोक यादव
जन्म | 30 जुलाई 1967 |
---|---|
जन्म स्थान | कायमगंज, फर्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
आलोक यादव / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- बाज़ ख़त पुरअसर भी होते हैं / आलोक यादव
- फिर आने का वादा करके पतझर में / आलोक यादव
- अपने हिस्से की छत खो कर मैंने / आलोक यादव
- ये सोचा नहीं मैं तो ख़ुद मसअला हूँ / आलोक यादव
- उसे जबसे पाया है, खोने का डर है / आलोक यादव
- बहाने यूँ तो पहले से भी थे आँसू बहाने के / आलोक यादव
- मेरी क़ुरबतों की ख़ातिर यूँ ही बेक़रार होता / आलोक यादव
- चलते-चलते तू क्यों रुक गया है यहाँ / आलोक यादव
- सुब्ह सवेरे अपने कमरे में जो देखा चाँद / आलोक यादव
- वो चाँद भी लो हँस पड़ा / आलोक यादव
- वो काशी को क्योटो बनाएँगे कैसे / आलोक यादव
- पढ़ रहा हूँ वेदना का व्याकरण मैं / आलोक यादव
- आँखों की बारिशों से मेरा वास्ता पड़ा / आलोक यादव
- हालात की तस्वीर बदल जाए तो अच्छा / आलोक यादव
- हर तरफ़ उसकी हवा हो जैसे / आलोक यादव
- दिल में जो कुछ मलाल रखते हैं / आलोक यादव
- बहुत रोका मगर ये कब रुके हैं / आलोक यादव
- था मेरा सा, मगर मेरा नहीं था / आलोक यादव
- तुम मेरा दिल कि मेरी जाँ लोगे / आलोक यादव
- ख़त जो तुमने लिखा नहीं होता / आलोक यादव
- खनखनाती रहीं काँच की चूड़ियाँ / आलोक यादव
- दर्द ग़ैरों का भी अपना-सा लगा है लोगों / आलोक यादव
- घर में बेटी जो जनम ले तो ग़ज़ल होती है / आलोक यादव
- उगे हैं शहर में अब धूप के जंगल / आलोक यादव
- भरे जो ज़ख़्म तो दाग़ों से क्यों उलझें? / आलोक यादव
- अब कहाँ खो गईं वो सभी चिट्ठियाँ / आलोक यादव
- तू है, मैं हूँ उस पर मौसम बारिश का / आलोक यादव
- मौन के ये आवरण मुझको बचा ले जाएँगे / आलोक यादव
- अब न रावण की कृपा का भार ढोना चाहता हूँ / आलोक यादव
- कुछ पुराने पत्र मैं, रात भर पढता रहा / आलोक यादव
- ओ प्रियंवदे / आलोक यादव
- इक ज़रा सी चाह में / आलोक यादव