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02:38, 26 अप्रैल 2008 का अवतरण
भीड़ में सबसे अलग
रचनाकार | जहीर कुरैशी |
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प्रकाशक | मेधा बुक्स, एक्स-11, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032 |
वर्ष | 2003 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 112 |
ISBN | 81-8166-008-O |
विविध |
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- डबडबाए नयन का पता चल गया / जहीर कुरैशी
- दु:ख का मनोविज्ञान छुपाना मुश्किल है / जहीर कुरैशी
- तमाम जुल्मों को सहने के बाद होता है / जहीर कुरैशी
- मैंने चाहा बात करे वो फुलवारी की भाषा में / जहीर कुरैशी
- वो हम नहीं जो हवाओं में घर बनाते हैं / जहीर कुरैशी
- ज़िन्दगी है तो ज़रूरी है कहानी होना / जहीर कुरैशी
- पुण्य करते हुए भी थकते हैं / जहीर कुरैशी
- खोट सद्भावनाओं में है / जहीर कुरैशी
- जो अपने डर की सीमा जानते हैं / जहीर कुरैशी
- हमारी आपकी यारी से निकले / जहीर कुरैशी
- कुछ इरादे सफल न हो पाए / जहीर कुरैशी
- आपस में इसलिए ही भरोसे नहीं रहे / जहीर कुरैशी
- हमेशा द्वंद्व का ठंडा बुखार ठीक नहीं / जहीर कुरैशी
- अंतस में दुबकाकर रखना / जहीर कुरैशी
- पहले उनके डर समझ में आ गए / जहीर कुरैशी
- कीट—पतंगे, पशु—पक्षी, आदम / जहीर कुरैशी
- तुम पर अगर सितारों जड़ा आसमान है / जहीर कुरैशी
- अपने कद की लड़ाई लड़ी / जहीर कुरैशी
- नदी के मस्त धारे जानते हैं / जहीर कुरैशी
- वो जब लुट—पिट गया तो ज्ञान आया / जहीर कुरैशी
- डूबते ही परी—कथाओं में / जहीर कुरैशी
- लिंग निर्धारण समस्या हो गई / जहीर कुरैशी
- मीठी—मीठी आग से परिचित हुए / जहीर कुरैशी
- अथक प्रयास के उजले विचार से निकली / जहीर कुरैशी
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