भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजऋषि
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:42, 22 जनवरी 2018 का अवतरण
पाल ले इक रोग नादाँ
रचनाकार | गौतम राजऋषि |
---|---|
प्रकाशक | शिवना प्रकाशन, सीहोर - 466001 |
वर्ष | 2015 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | 978-93-81520-07-9 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
दो भूमिकाएँ
ग़ज़लें
- बहो अब ऐ हवा ऐसे कि ये मौसम सुलग उट्ठे / गौतम राजरिशी
- बात रुक-रुक का बढ़ी फिर हिचकियों में आ गई / गौतम राजरिशी
- देखकर दहशत निगाहों की जुबाँ बेचैन है / गौतम राजरिशी
- लम्हा गुज़र गया है कि अर्सा गुज़र गया / गौतम राजरिशी
- उजली उजली बर्फ़ के नीचे पत्थर नीला नीला है / गौतम राजरिशी
- समाचार में सनसनी होती है / गौतम राजरिशी
- ज़रा जब चाँद को थोड़ी तलब सिगरेट की उट्ठी / गौतम राजरिशी
- सजा लूँ ख़ुद को मुकम्मल बहार हो जाऊँ / गौतम राजरिशी
- तू जिसकी ताक में मचान पर यूँ बेक़रार है / गौतम राजरिशी
- चुभती-चुभती सी ये कैसी पेड़ों से है उतरी धूप / गौतम राजरिशी
- झूठ बोलेगा तो ये आलम तेरा हो जायेगा / गौतम राजरिशी
- उनका एक बयान हुआ / गौतम राजरिशी
- ज़िंदगी से उम्र भर तक चलने का वादा किया / गौतम राजरिशी
- ऊँड़स ली तू ने जब साड़ी में गुच्छी चाभियों वाली / गौतम राजरिशी
- एक मुद्दत से हुये हैं वो हमारे यूँ तो / गौतम राजरिशी
- ज़रा तूफ़ान से परवाज़ का जब सामना निकला / गौतम राजरिशी
- कितने ख़्वाबों के पर टूटे कितने उड़ने वाले हैं / गौतम राजरिशी
- सुबह से ही धौंस देती गर्मियों की ये दुपहरी / गौतम राजरिशी
- कुछ मेरी ज़िंदगी को भी आयाम दे / गौतम राजरिशी
- उठ ऐ क़लम संवाद कर / गौतम राजरिशी
- ज़ुल्फ़ से लिपटा जब तौलिया हट गया / गौतम राजरिशी
- आइनों पर आज जमी है काई, लिख / गौतम राजरिशी
- बंधा धागे से था फिर वो बेचारा मचल उट्ठा / गौतम राजरिशी
- उकसाने पर हवा के आँधी से भिड़ गया है / गौतम राजरिशी
- धूप लुटा कर सूरज जब कंगाल हुआ / गौतम राजरिशी
- अब के ऐसा दौर बना है / गौतम राजरिशी
- तेज़ हवा के इक झोंके ने जब बादल का नाम लिखा / गौतम राजरिशी
- हवा ये कैसी चली माजरा ये कैसा है / गौतम राजरिशी
- शोर है क़द-काठी का, पैमाइशों की बात हो / गौतम राजरिशी
- बस गई है रग-रग में बामो-दर की ख़ामोशी / गौतम राजरिशी
- हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले / गौतम राजरिशी
- रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे / गौतम राजरिशी
- उलझ के ज़ुल्फ़ में उनकी गुमी दिशाएँ हैं / गौतम राजरिशी
- इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है / गौतम राजरिशी
- गुज़र जाएगी शाम तकरार में / गौतम राजरिशी
- वो जब अपनी ख़बर दे है / गौतम राजरिशी
- हम पर जो असर एक ज़माने से हुआ है / गौतम राजरिशी
- ख़ुद से ही बाज़ी लगी है / गौतम राजरिशी
- वो टुकड़ा रात का बिखरा हुआ सा / गौतम राजरिशी
- सच के लिए तूने उठाया सर, भले कुछ देर से / गौतम राजरिशी
- ढीठ सूरज बादलों को मुँह चिढ़ाने के लिए / गौतम राजरिशी
- हरी है ये ज़मीं हमसे कि हम तो इश्क़ बोते हैं / गौतम राजरिशी
- उफ़ ये कैसी कशिश ! बेबसी ? हाँ वही ! / गौतम राजरिशी
- हैं जितनी परतें यहाँ आसमान में शामिल / गौतम राजरिशी
- सीखो आँखें पढ़ना साहिब / गौतम राजरिशी
- नीली है, गुलाबी है, ये धानी है कहानी / गौतम राजरिशी
- पसीने में पिघलते पस्त दिन की सब थकन गुम है / गौतम राजरिशी
- चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से / गौतम राजरिशी
- हर्फ़ सारे खो गए और है क़लम बहकी हुई / गौतम राजरिशी
- ठिठुरी रातें, पतला कंबल, दीवारों की सीलन उफ़ / गौतम राजरिशी
- अपने पहलू में जगह गर वो ज़रा सी देंगे / गौतम राजरिशी
- छू लिया उसने ज़रा मुझको तो झिलमिल हुआ मैं / गौतम राजरिशी
- देख पंछी जा रहें अपने बसेरों में / गौतम राजरिशी
- हवा जब किसी की कहानी कहे है / गौतम राजरिशी
- जब छेड़ा मुजरिम का क़िस्सा / गौतम राजरिशी
- हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं / गौतम राजरिशी
- राह में चाँद जिस रोज़ चलता मिला / गौतम राजरिशी
- कुछ कसैली-सी मखमली बातें / गौतम राजरिशी
- चाँद ज़रा जब मद्धम-सा हो जाता है / गौतम राजरिशी
- बैठ कर जो भी सुने बात ज़ुबानी उसकी / गौतम राजरिशी
- उन होठों की बात न पूछो कैसे वो तरसाते हैं / गौतम राजरिशी
- साहिलों पर उदासी रही / गौतम राजरिशी
- हवा ने चाँद पर लिखी जो सिंफनी अभी अभी / गौतम राजरिशी
- कितने हाथों में यहाँ हैं कितने पत्थर गौर कर / गौतम राजरिशी
- प्रस्ताव अनुमोदित हुआ / गौतम राजरिशी
- बुढ़ाते ख़्वाब के होठों पे है जो क़ैद इक सिसकी / गौतम राजरिशी
- एक ग़ज़ल है बनने को / गौतम राजरिशी
- ख़्वाब जो भी बुना वो बुना रह गया / गौतम राजरिशी
- उठी जब हूक कोई मौसमों की आवाजाही से / गौतम राजरिशी
- कहने को कह तो दूँ कि मुहब्बत नहीं मुझे / गौतम राजरिशी
- है मुस्कुराता फूल कैसे तितलियों से पूछ लो / गौतम राजरिशी
- यूँ उट्ठी यादों की पलटन दिल में आज अचानक से / गौतम राजरिशी
- ख़बर मिली है जबसे ये कि उनको हमसे प्यार है / गौतम राजरिशी
- इक ज़िद्दी सा ठिठका लम्हा यादों के चौबारे में / गौतम राजरिशी
- जब तौलिये से कसमसाकर ज़ुल्फ़ उसकी खुल गई / गौतम राजरिशी
- ख़्वाब की थी आँच कैसी नींद जलती रह गई / गौतम राजरिशी
- जो धुन निकली हवा की सिंफनी से / गौतम राजरिशी
- पूछे तो कोई जाकर ये कुनबों के सरदारों से / गौतम राजरिशी
- दूर क्षितिज पर सूरज चमका सुबह खड़ी है आने को / गौतम राजरिशी
- कुछ करवटों के सिलसिले इक रतजगा ठिठका हुआ / गौतम राजरिशी
- करवट बदल-बदल के ही आँखों में ही सही / गौतम राजरिशी
- तू जब से अल्लादिन हुआ / गौतम राजरिशी
- तू दौड़ता है बन कर मेरा लहू नसों में / गौतम राजरिशी
- न समझो बुझ चुकी है आग गर शोला न दिखता है / गौतम राजरिशी
- तू जो मुझसे जुदा नहीं होता / गौतम राजरिशी
- जबसे मुझको तूने छुआ है / गौतम राजरिशी
- दूर यहाँ तस्वीर यही बस दिल में रोज़ निकलती है / गौतम राजरिशी
- पाल ले इक रोग नादाँ ज़िंदगी के वास्ते / गौतम राजरिशी