मज़हर इमाम
जन्म | 1930 |
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निधन | 2011 |
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
जख़्म—ए—तमन्ना (1962), रिश्ता गूंगे सफ़र का (1974), पिछले मौसम का फूल (1988) | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
मज़हर इमाम / परिचय |
ग़ज़लें
- अपने खोए हुए लम्हात को पाया था कभी / मज़हर इमाम
- अपने रिसते हुए ज़ख़्मो की क़बा लाया हूँ / मज़हर इमाम
- अब भी पर्दे हैं वही पर्दा-दरी तो देखो / मज़हर इमाम
- उस की आँखों में तमन्ना-ए-सहर रख देना / मज़हर इमाम
- उस को ये ज़िद है कि रह जाए बदन सर न रहे / मज़हर इमाम
- कई सराब मिले तिश्नगी के रस्ते में / मज़हर इमाम
- किस सम्त जा रहा है ज़माना न जाए / मज़हर इमाम
- कोई सुने न सुने अर्ज़-ए-हाल करता जा / मज़हर इमाम
- कोसों दूर किनारा होगा / मज़हर इमाम
- ख़ून ओढे़ हुए हर घर का सरापा निकला / मज़हर इमाम
- चुपके चुपके ये काम करता जा / मज़हर इमाम
- ज़माना अब ये कैसा आ रहा है / मज़हर इमाम
- ज़लज़़ले सब दिल के अंदर हो गए / मज़हर इमाम
- जिंदगी काविश-ए-बातिल है मिरा साथ न छोड़ / मज़हर इमाम
- जैसे किसी तूफ़ान का ख़दशा भी नहीं था / मज़हर इमाम
- जो अब तक नाव ये डूबी नहीं है / मज़हर इमाम
- टूटी हुई दीवार का साया तो नही हूँ / मज़हर इमाम
- तारो से भरी राहगुज़र ले के गई है / मज़हर इमाम
- तिरा ख़याल सर-ए-शाम ग़म सँवरता हुआ / मज़हर इमाम
- तिरे ख़याल का शोला थमा थमा सा था / मज़हर इमाम
- तुझे बदनाम करने पर तुली है / मज़हर इमाम
- तुझे भी जांचते अपना भी इम्तिहाँ करते / मज़हर इमाम
- तू है गर मुझ से ख़फ़ा ख़ुद से हूँ मैं भी / मज़हर इमाम
- दर्द-ए-आलम भी कहीं दर्द-ए-मोहब्बत ही न हो / मज़हर इमाम
- दिल-ए-हज़ी को तमन्ना है मुस्कुराने की / मज़हर इमाम
- दिलो के रंग अजब राब्ता है कितनी देर / मज़हर इमाम
- दुनिया का ये एज़ाज़ ये इनआम बहुत है / मज़हर इमाम
- न हम-नवा मिरे ज़ौक-ए-ख़िराम का निकला / मज़हर इमाम
- नए मकाँ में अक़ीदे की कोई जा ही नहीं / मज़हर इमाम
- निगाह ओ दिल के पास हो वो मेरा आश्ना रहे / मज़हर इमाम
- फिर आप ने देखा है मोहब्बत की नज़र से / मज़हर इमाम
- भरा हुआ तिरी यादों का जाम कितना था / मज़हर इमाम
- मज़ा लम्स का बे-ज़बानी में था / मज़हर इमाम
- मेरा फ़न मेरी ग़ज़ल तेरा इशारा तो नहीं / मज़हर इमाम
- मेरे हरीफ़ ही को सही चाहता तो है / मज़हर इमाम
- मैं जानता हूँ वो नज़दीक ओ दूर मेरा था / मज़हर इमाम
- मौसम के बदलने का कुछ अंदाज़ा भी होता / मज़हर इमाम
- ये खेल भूल-भुलय्याँ में हम ने खेला भी / मज़हर इमाम
- ये तजरबा भी करूँ ये भी ग़म उठाऊँ मैं / मज़हर इमाम
- वही दश्त-ए-बला है और मैं हूँ / मज़हर इमाम
- वो रौशनी है कि आँखों को कुछ सुझाई न दे / मज़हर इमाम
- शमअ् की लौ तेज़ इतनी थी धुआँ होना ही था / मज़हर इमाम
- शुक्रिया तेरा कि ग़म का हौसला रहने दिया / मज़हर इमाम
- सानेहा ये भी इक रोज़ कर जाऊँगा / मज़हर इमाम
- हर एक शख़्स का चेहरा उदास लगता है / मज़हर इमाम
- हर्फ़-ए-दिल ना-रसा है तिरे शहर में / मज़हर इमाम