वंशी और मादल
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रचनाकार | ठाकुरप्रसाद सिंह |
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प्रकाशक | पराग प्रकाशन,3/114, कर्ण गली, विश्वासनगर, शाहदरा, दिल्ली-110032 |
वर्ष | द्वितीय संस्करण : 1979 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | नवगीत |
पृष्ठ | 68 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- कहने की बात / ठाकुरप्रसाद सिंह(भूमिका)
- पाँच जोड़ बाँसुरी / ठाकुरप्रसाद सिंह
- नदिया का घना-घना कूल है / ठाकुरप्रसाद सिंह
- कब से तुम गा रहे! / ठाकुरप्रसाद सिंह
- अब मत सोचो / ठाकुरप्रसाद सिंह
- पात झरे, फिर-फिर होंगे हरे / ठाकुरप्रसाद सिंह
- सखि, कहाँ जाऊँ रे / ठाकुरप्रसाद सिंह
- चलो, चलें चम्पागढ़ / ठाकुरप्रसाद सिंह
- पर्वत की घाटी का जल चंचल / ठाकुरप्रसाद सिंह
- दूर कहीं अकुशी है चिल्हकती / ठाकुरप्रसाद सिंह
- पर्वत पर आग जला... / ठाकुरप्रसाद सिंह
- कटती फसलों के साथ... / ठाकुरप्रसाद सिंह
- झर-झर-झर-झर / ठाकुरप्रसाद सिंह
- दिन बसन्त के / ठाकुरप्रसाद सिंह
- मेरे घर के पीछे चन्दन है / ठाकुरप्रसाद सिंह
- मेरे आंगन से जाते पहने / ठाकुरप्रसाद सिंह
- बेला लो डूब ही गई / ठाकुरप्रसाद सिंह
- मेरा धन--मेरा क्वांरापन / ठाकुरप्रसाद सिंह
- बीच गाँव से होकर... / ठाकुरप्रसाद सिंह
- तुम मान्दोरिया / ठाकुरप्रसाद सिंह
- बाप-माँ से मुझे छीन लोगे / ठाकुरप्रसाद सिंह
- झरती है तुलसी की मंजरी / ठाकुरप्रसाद सिंह
- पलाश लो फूला / ठाकुरप्रसाद सिंह
- मेरे आंगन में है रूई / ठाकुरप्रसाद सिंह
- यात्राएँ बीतीं / ठाकुरप्रसाद सिंह
- शाल के फूल / ठाकुरप्रसाद सिंह
- फूल से सजाओ / ठाकुरप्रसाद सिंह
- यह कैसा पेड़ / ठाकुरप्रसाद सिंह
- तिरि रिरि... / ठाकुरप्रसाद सिंह
- तुमने क्या नहीं देखा / ठाकुरप्रसाद सिंह
- आछी के वन / ठाकुरप्रसाद सिंह
- पर्वत के ऊपर है वंशी / ठाकुरप्रसाद सिंह
- चिड़ियों ने पर्वत पर घोंसला बनाया / ठाकुरप्रसाद सिंह
- अरी मेरी लालसे! / ठाकुरप्रसाद सिंह
- नहीं छूटते सूख गए पत्ते / ठाकुरप्रसाद सिंह
- प्यार क्यों / ठाकुरप्रसाद सिंह
- आधी रात / ठाकुरप्रसाद सिंह
- नदी के उस पार तुम / ठाकुरप्रसाद सिंह
- यह मेरे प्रिय का मंडप है / ठाकुरप्रसाद सिंह
- गाँव के किनारे है बरगद का पेड़ / ठाकुरप्रसाद सिंह
- बन्धन से एक साथ हारे / ठाकुरप्रसाद सिंह
- सिन्दूरी आभा में / ठाकुरप्रसाद सिंह
- मैं वंशी / ठाकुरप्रसाद सिंह
- सब लोग देखते आग... / ठाकुरप्रसाद सिंह
- जामुन की कोंपल-सी चिकनी ओ! / ठाकुरप्रसाद सिंह
- खिले फूल-से दिन यौवन के / ठाकुरप्रसाद सिंह
- जंगल में आग लपट है झर-झर / ठाकुरप्रसाद सिंह
- नदी किनारे / ठाकुरप्रसाद सिंह
- धान के ये फूल / ठाकुरप्रसाद सिंह
- पर्वत-पर्वत पर सरसों / ठाकुरप्रसाद सिंह
- यह मेरे जीवन का जल / ठाकुरप्रसाद सिंह
- सीखा कहाँ से रोना / ठाकुरप्रसाद सिंह
- बन मन में / ठाकुरप्रसाद सिंह
- पीतल की वंशी / ठाकुरप्रसाद सिंह
- मोर पाँखें / ठाकुरप्रसाद सिंह
- तपरिसा के / ठाकुरप्रसाद सिंह
- आने को कहना / ठाकुरप्रसाद सिंह
- नन्दन वन की कोयल / ठाकुरप्रसाद सिंह
- देह यह बन जाए केवल पाँव / ठाकुरप्रसाद सिंह
- आछी के वन / ठाकुरप्रसाद सिंह