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"सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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21:49, 2 मार्च 2025 का अवतरण
सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है

रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
---|---|
प्रकाशक | श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली |
वर्ष | 2025 |
भाषा | हिंदी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | 978-93-49136-88-5 |
विविध |
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रचनाएँ
- भूमिका / सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है
- सोचता हूँ प्यास ये कैसे बुझाऊँ / डी. एम. मिश्र
- अपनी मंज़िल का पता सबसे पूछते आये / डी. एम. मिश्र
- काट दो तो और कल्ले फूटते हैं / डी. एम. मिश्र
- आस्तीनों में पलेंगे साँप / डी. एम. मिश्र
- रात है पूस की और कपड़े नहीं / डी. एम. मिश्र
- जिनके घर में दौलत की वर्षा होती / डी. एम. मिश्र
- अदब नवाज़ कोई है, कोई सिकंदर है / डी. एम. मिश्र
- जिसको भी देखिए परेशान नज़र आता है / डी. एम. मिश्र
- शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं / डी. एम. मिश्र
- जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकता / डी. एम. मिश्र
- जलेगा चमन तो धुआँ भी उठेगा / डी. एम. मिश्र
- हर किसी से मैं पराजित ही रहा / डी. एम. मिश्र
- सच्चाई की सिर्फ़ वकालत करता हूँ / डी. एम. मिश्र
- तुम हो तो संसार सुहाना लगता है / डी. एम. मिश्र
- बात सच्ची थी तो मैं भी अड़ गया / डी. एम. मिश्र
- नफ़रती इंसान से नाता नहीं / डी. एम. मिश्र
- ये हमारे दौर की उपलब्धियाँ / डी. एम. मिश्र
- समझ रहे हम भी उसकी चतुराई को / डी. एम. मिश्र
- हादसों के नगर में चले जा रहे / डी. एम. मिश्र
- पत्थरों से तो सर बचा आये / डी. एम. मिश्र
- सच कहना यूँ अंगारों पर चलना होता है (ग़ज़ल) / डी. एम. मिश्र
- जो हुआ सो हुआ छोड़ दो सोचना / डी. एम. मिश्र
- अगर क़लम में धार नहीं तो क्या मतलब / डी. एम. मिश्र
- जो तुझे भूल गए तू भी उन्हें याद न कर / डी. एम. मिश्र
- खाये पिये अघाये लोग / डी. एम. मिश्र
- सफ़र में ये होता है हैरां नहीं हूँ / डी. एम. मिश्र
- मैदान में डटे हो तो दमखम तो दिखा लो / डी. एम. मिश्र
- मुहब्बत न होती तो क्यों याद करता / डी. एम. मिश्र
- क्या - क्या नहीं बाज़ार में इस बार बिक गया / डी. एम. मिश्र
- धरती पे रहूँ तो मुझे आधार चाहिए / डी. एम. मिश्र
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