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"निरुपमा, करना मुझको क्षमा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
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21:27, 11 जून 2012 का अवतरण
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निरुपमा, करना मुझको क्षमा | |
रचनाकार: | रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
अनुवादक: | प्रयाग शुक्ल |
प्रकाशक: | सस्ता साहित्य मंडल, एन-77, पहली मंज़िल, कनाट सर्कस, नई दिल्ली-110001 |
वर्ष: | 2011 |
मूल भाषा: | बंगला |
विषय: | -- |
शैली: | -- |
पृष्ठ संख्या: | 92 |
ISBN: | 978-81-7309-596-2 |
विविध: | रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गीतों का हिन्दी अनुवाद है |
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- ओरे मेरे भिखारी ! / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ओ करबी, ओ चंपा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ओ री, आम्र मंजरी, ओ री, आम्र मंजरी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हृदय मेरे ! लगे यही, आई है तेरी वो आँधी वैशाख की / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आओ, आओ हे ! तृष्णा के जल कलकल छलछल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- निरुपमा, करना मुझ को क्षमा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- रखूँगी और न कुछ बाकी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- चमका ध्रुवतारा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तेरे चरणों से चुंबित पथ की / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कभी आया न ऐसा वसन्त / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरे प्राणों के ऊपर से चला गया कौन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मन में है बसा वही मधुर मुख / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- गाए पाखी वो यौवन-निकुंज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम आओ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैंने चाही है बस एक माला / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बादल-बाउल बजाए रे इकतारा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरे बादल में मादल बजे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- पथ का वह बंधु, बंधु वही तेरा है, बंधु वही तो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विपुल तरंग रे, विपुल तरंग रे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कह तो दो शेष कथा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरे अंग-अंग में बंसी कौन बजाए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दो तो रहने मुझे अपने मन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सखी, खेल नहीं, यह खेल नहीं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तिमिर से ढक कर अपना बदन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सागर को पार कर, पूरब से आया है कौन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- चुप-चुप रहना सखि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बजो, रे बंशी, बजो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बह रही आनन्दधारा भुवन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सोने के पिंजरे में नहीं रहे दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- परवासी, आ जाओ घर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज जागी क्यों मर्मर-ध्वनि ! / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- किसका आघात हुआ फिर मेरे द्वार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज बादल-गगन, गोधूली-लगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैंने पाया उसे बार-बार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- रखो मत अँधेरे में दो मुझे निरखने / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यदि नहीं चीन्ह मैं पाऊँ, क्या चीन्ह मुझे वह लेगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हे नवीना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मन के मंदिर में लिखना सखि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- खोलो यह तिमिर-द्वार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैंने पाया उसे बार-बार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जागो-जागो, ओ! दखिन हवा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जो गए उन्हें जाने दो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- किसलय ने पाया क्या उसका संदेश / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जिस पथ पर तुमने थी लिखी चरण-रेखा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यह कौन विरहणी आती / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आलोकित अमल कमल किसने यह खिला दिए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बजते नूपुर रुनझुन-रुनझुन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- व्याकुल यह बादल की साँझ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- फागुन में आई है माधवी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आओ आओ फसल काटें / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आकाशी पाखी मैं, बंदी अब तेरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- युग-युग को पार कर आया आषाढ़ आज मन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- फागुन की संध्या में आज, ओ ! मेरे चंद्र प्रकाश / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बीते यह रात उससे ही पहले / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- पुकारा हमको माँ ने आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हेर श्यामल घन नील गगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेघ पर उड़ते आते मेघ सघन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर