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"विजय सिंह नाहटा" के अवतरणों में अंतर
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+ | * [[शाम होते ही मुरझा जाते हैं दिन भर के फूल / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[स्त्री / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[गर आ भी जाये मृत्यु / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[हम मनुष्य हैं; और रहेंगे / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[मुझे निर्बंध हो जाने दो / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[शरद संध्या / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[सिंहासन औ ताज / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[गर, हमारी खामोशियाँ / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[अंततः हर जगह हो जाती खाली / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[जो सहसा लुप्त हुए / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[मुझे नहीं जगाते सौ सौ सूर्योदय / विजय सिंह नाहटा]] | ||
+ | * [[अपनी तमाम तुच्छताओं के साथ / विजय सिंह नाहटा]] |
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विजय सिंह नाहटा
जन्म | 15 जनवरी 1964 |
---|---|
जन्म स्थान | राजस्थान, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
है यहाँ भी जल | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
विजय सिंह नाहटा / परिचय |
रचना संग्रह
- है यहाँ भी जल / विजय सिंह नाहटा (हिन्दी कविताएं)
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- विदा कर चुका / विजय सिंह नाहटा
- इस नाजुक समय के मोङ पर / विजय सिंह नाहटा
- लो! चित्र वीथिकाएँ बंद हुई / विजय सिंह नाहटा
- हर तरफ बिखरा हुआ जीवन का स्वर / विजय सिंह नाहटा
- कुछ लोग शहर छोड़कर जा रहे / विजय सिंह नाहटा
- एक शब्द की कविता है / विजय सिंह नाहटा
- अतृप्ति के अनंत रेगिस्तान में / विजय सिंह नाहटा
- तुम्हारा शैशव / विजय सिंह नाहटा
- हां, इसी क्षण / विजय सिंह नाहटा
- सब कुछ बचाया जा रहा / विजय सिंह नाहटा
- यह जो मीनार / विजय सिंह नाहटा
- साठ के बाद धीरे-धीरे सरकते हैं साल / विजय सिंह नाहटा
- कितने सूर्योदय अंकित इस गोरी देह पर / विजय सिंह नाहटा
- घर से लौटता हूं जब-तब / विजय सिंह नाहटा
- बुरे दिनों में / विजय सिंह नाहटा
- चाहे कितनी भी विराट / विजय सिंह नाहटा
- इस चट्टान पर / विजय सिंह नाहटा
- नहीं पाया जाऊंगा / विजय सिंह नाहटा
- वो अनगिन हाथ / विजय सिंह नाहटा
- जीवन में बढती खाइयों के बीच / विजय सिंह नाहटा
- अपने पानी औ' पेड़ों से सुदूर / विजय सिंह नाहटा
- धरती हो कामधेनु सी / विजय सिंह नाहटा
- एक दिन / विजय सिंह नाहटा
- अंतहीन यात्रा मेरी / विजय सिंह नाहटा
- शाम होते ही मुरझा जाते हैं दिन भर के फूल / विजय सिंह नाहटा
- स्त्री / विजय सिंह नाहटा
- गर आ भी जाये मृत्यु / विजय सिंह नाहटा
- हम मनुष्य हैं; और रहेंगे / विजय सिंह नाहटा
- मुझे निर्बंध हो जाने दो / विजय सिंह नाहटा
- शरद संध्या / विजय सिंह नाहटा
- सिंहासन औ ताज / विजय सिंह नाहटा
- गर, हमारी खामोशियाँ / विजय सिंह नाहटा
- अंततः हर जगह हो जाती खाली / विजय सिंह नाहटा
- जो सहसा लुप्त हुए / विजय सिंह नाहटा
- मुझे नहीं जगाते सौ सौ सूर्योदय / विजय सिंह नाहटा
- अपनी तमाम तुच्छताओं के साथ / विजय सिंह नाहटा