मौसम मौसम
रचनाकार | प्रेम भारद्वाज |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
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इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- क्या अंगारे और क्या शबनम / प्रेम भारद्वाज
- हुई शांत पीड़ा कभी तो चुभन से / प्रेम भारद्वाज
- जब कभी मन की बात आती है / प्रेम भारद्वाज
- दिल को तो कहीं और लगाए हुए थे लोग / प्रेम भारद्वाज
- जब से मन की बगिया में इक आस उगी है / प्रेम भारद्वाज
- आहों का है प्रासन यारो / प्रेम भारद्वाज
- अब सुबह से धूप गरमाने लगी / प्रेम भारद्वाज
- अन्ध नगर है चौपट राजा / प्रेम भारद्वाज
- जब तलक इन्सान में बदकारियाँ रह जाएँगी / प्रेम भारद्वाज
- हर ग़ज़ल कहने का यह आधार होना चाहिये / प्रेम भारद्वाज
- रिवायतों की वो धुन्धली लकीर बाकी है / प्रेम भारद्वाज
- हुई शांत पीड़ा कभी तो चुभन से / प्रेम भारद्वाज
- राम से अल्ला भिड़ा रस्ता दिखा / प्रेम भारद्वाज
- अधकूपों का अंधेरा रोशनाई हो गया है / प्रेम भारद्वाज
- जो मुकर्रर पासबाँ थे उस हसीं के वास्ते / प्रेम भारद्वाज
- उसी ने जंगलों की यह दशा उघाड़ी है / प्रेम भारद्वाज
- अंधकूपों को गगन कहते रहे / प्रेम भारद्वाज
- ऐश में एहसास की बातें चलीं / प्रेम भारद्वाज
- वे सब के सब अंतर्यामी / प्रेम भारद्वाज
- क्षण भर में जो बात हो गई / प्रेम भारद्वाज
- दिल की बात समझने का भी मौसम होता है / प्रेम भारद्वाज
- आज बैठीं कल उड़ेंगी हस्तियाँ / प्रेम भारद्वाज
- जब निराशा का अँधेरा घोर काला मिल गया / प्रेम भारद्वाज
- ख़ाली तमाशबीन मदारी है मालामाल / प्रेम भारद्वाज
- अब अजब एहसास की परवाज़ में हैं पर लगे / प्रेम भारद्वाज
- कहता तो है इसे कि ये लोगों की सनक है / प्रेम भारद्वाज
- करने लगेगा बात वोह भी सोचकर / प्रेम भारद्वाज
- आज़माइश की घड़ी आई तो है / प्रेम भारद्वाज
- सच बयानी जो अपनी आदत है / प्रेम भारद्वाज
- ऊपर समतल / प्रेम भारद्वाज
- नाम बच्चों के अगर उनकी अमानत कीजिए / प्रेम भारद्वाज
- जन्म के बीमार ! तेरा क्या करेगी / प्रेम भारद्वाज
- दौर ज़ुल्मों का अगर अँधियार दे कर जाएगा / प्रेम भारद्वाज
- छोड़ कर बरबाद सब को ख़ुद मज़ा ले जाएगा / प्रेम भारद्वाज
- कभी उबाल कर ठंडा किया शरारों ने / प्रेम भारद्वाज
- साँझ ढले जो आते पंछी / प्रेम भारद्वाज
- अपनी ख़ुद्दारी जो दर-दर बेचता रह जाएगा / प्रेम भारद्वाज
- सख़्त पड़ी करनी रखवाली / प्रेम भारद्वाज
- बड़े मुस्कुराए / प्रेम भारद्वाज
- स्वर्णिम चाम चढ़ार्र मृगों ने / प्रेम भारद्वाज
- हाथ आई क्या व्यस्था देखिए / प्रेम भारद्वाज
- कोई राजा कोई रानी / प्रेम भारद्वाज
- सेवकों ने जो भी बोला और है / प्रेम भारद्वाज
- वैद्य है ढोंगी रोगी झूठा / प्रेम भारद्वाज
- करनियाँ मरने की हैं / प्रेम भारद्वाज
- इतना वह मजबूर कहाँ है / प्रेम भारद्वाज
- वास्ता बहरों से मुद्दा असल / प्रेम भारद्वाज
- नब्ज़ धीमी साँस भारी सुस्तियाँ / प्रेम भारद्वाज
- खुलते -खुलते खुल जाते हैं पर्दे इज़्ज़तदारों के / प्रेम भारद्वाज
- दोस्त भी कोई बनाना चाइए / प्रेम भारद्वाज
- घनघोर बादलों में में छुपी बिजलियाँ भी हैं / प्रेम भारद्वाज
- दई से जो पेट छिपाएँ / प्रेम भारद्वाज
- कभी तो नीर था बहता बहू भिजाने पे / प्रेम भारद्वाज
- फूटी थी निस्सार नदी / प्रेम भारद्वाज
- भागी बहुत बेचारी मछली / प्रेम भारद्वाज
- सोता रहेगा मौसम मौसम / प्रेम भारद्वाज