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द्वार के पार / अमरेन्द्र
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द्वार के पार / अमरेन्द्र
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रचनाकार | अमरेन्द्र |
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इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- आबाद जहाँ पर थीं सितारों की बस्तियाँ / अमरेन्द्र
- वह गरीब कैसे हो सकता कैसे कहते-बेघर है / अमरेन्द्र
- मेरे खिलाफ में उठती हुई हवा देखो / अमरेन्द्र
- सफर में ऐसे भी मंजर आए / अमरेन्द्र
- हमारी बात का तुम उम्र भर कहा रखना / अमरेन्द्र
- हरेक बार मुझे ऐसा कुछ लगा जैसे / अमरेन्द्र
- मिलने-जुलने का अभी और सिलसिला रखना / अमरेन्द्र
- वो शख्स दिख गया है फिर से आया गाँवों में / अमरेन्द्र
- तुमको इस दुनिया ने अब तक है दिया कुछ भी नहीं / अमरेन्द्र
- तुम भी मेरी ही तरह यार दिवाने निकले / अमरेन्द्र
- मैंने खुद अपनी ही आँखों से है पता देखा / अमरेन्द्र
- क्या बताऊँ मैं तुम्हें, उसके घर में क्या देखा / अमरेन्द्र
- जिससे रिश्ते को निभाने का कोई वादा नहीं / अमरेन्द्र
- अपने करीब और जरा और ला मुझे / अमरेन्द्र
- नागफनी का यह जंगल / अमरेन्द्र
- खींच लाया यहाँ दरिया हमको / अमरेन्द्र
- रिवाजो-रस्म की बातें पुरानी ढूँढता हूँ / अमरेन्द्र
- दिन में ही अपने जिस्म के साये से डर चले / अमरेन्द्र
- सबमें ही जिसका चलन है / अमरेन्द्र
- जिसके हाथों में शमशीर / अमरेन्द्र
- टूटकर गिरते हैं बादल-बिजलियाँ पीछे मेरे / अमरेन्द्र
- किससे हो फरियाद, तपन जी कुछ तो कहिए / अमरेन्द्र
- सबसे पहले हटे लोग ये / अमरेन्द्र
- आपस में मक्कारी थी / अमरेन्द्र
- ये क्या यहाँ चारों तरफ / अमरेन्द्र