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+ | *[[देखणो / मदन गोपाल लढ़ा]] | ||
+ | *[[दूब / मदन गोपाल लढ़ा]] | ||
+ | *[[अबै नवो नीं / मदन गोपाल लढ़ा]] |
16:56, 9 जुलाई 2017 का अवतरण
चीकणा दिन
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रचनाकार | मदन गोपाल लढ़ा |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | 2017 |
भाषा | राजस्थानी |
विषय | |
विधा | मुक्त छंद |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
ग्रीस करणियां रो गीत
- म्हारो सुख / मदन गोपाल लढ़ा
- रोटी जीम्यां पछै / मदन गोपाल लढ़ा
- रोटी री सौरम / मदन गोपाल लढ़ा
- उण बगत तांई / मदन गोपाल लढ़ा
- टाबरां री मुळक / मदन गोपाल लढ़ा
- डाढो लागै डर / मदन गोपाल लढ़ा
गळी रो गीत
- गळी सूं कांई छानो है / मदन गोपाल लढ़ा
- ओळूं में गळी / मदन गोपाल लढ़ा
- गळी रो उच्छब / मदन गोपाल लढ़ा
- सांप-सीढी / मदन गोपाल लढ़ा
- बधतो आंतरो / मदन गोपाल लढ़ा
- गळी बां रो घर है / मदन गोपाल लढ़ा
स्क्रेप मजूर रो गीत
- बीं सागण भौम / मदन गोपाल लढ़ा
- करड़ो काळजो / मदन गोपाल लढ़ा
- हफ्तो मिलणै वाळै दिन / मदन गोपाल लढ़ा
- अरथाऊ कींकर / मदन गोपाल लढ़ा
- वसीयत / मदन गोपाल लढ़ा
चीकणा दिन
- काळजै मंडगी / मदन गोपाल लढ़ा
- खाली लाधगी / मदन गोपाल लढ़ा
- थेऊ रै मिस / मदन गोपाल लढ़ा :
- उणियारै सांचर जावै मुळक / मदन गोपाल लढ़ा
- ओळखांण रै ओळावै / मदन गोपाल लढ़ा
रामलीला : छव चितराम
- कीं तो उतरयो हो / मदन गोपाल लढ़ा
- रोळ गिदोळ / मदन गोपाल लढ़ा
- अंतस रो रावण / मदन गोपाल लढ़ा
- दो इंछावां / मदन गोपाल लढ़ा
- म्हारो देसूंटो / मदन गोपाल लढ़ा
- दरसाव / मदन गोपाल लढ़ा
नहर : दस चितराम
- नहर री मुळक / मदन गोपाल लढ़ा
- नहर रै काळजै / मदन गोपाल लढ़ा
- नांव खातर / मदन गोपाल लढ़ा
- बस्ती / मदन गोपाल लढ़ा
- मा है बा / मदन गोपाल लढ़ा
- खरो सांच / मदन गोपाल लढ़ा
- नहर नीं रैयां / मदन गोपाल लढ़ा
- बारी आळी रात / मदन गोपाल लढ़ा
- नवो भूगोल / मदन गोपाल लढ़ा
- भूखमोचिनी / मदन गोपाल लढ़ा
सागो : सात चितराम
- सागै सारू / मदन गोपाल लढ़ा
- सागै री आडी / मदन गोपाल लढ़ा
- इण ओपरी ठौड / मदन गोपाल लढ़ा
- चार पांवडां ई सही / मदन गोपाल लढ़ा
- इण सोधा-साधी में ई / मदन गोपाल लढ़ा
- इण बहुरुपियै बगत में / मदन गोपाल लढ़ा
- कोनी फोरी पूठ / मदन गोपाल लढ़ा
सूरतगढ़ : पांच चितराम
- फगत म्हैं क्यूं / मदन गोपाल लढ़ा
- स्सो कीं सागण हैं / मदन गोपाल लढ़ा
- बरत्यां ठाह पड़ैं / मदन गोपाल लढ़ा
- जातरी है ओ सहर / मदन गोपाल लढ़ा
- ओळूं री अंवेर / मदन गोपाल लढ़ा
चाळीस रै चौखटै में प्रेम
- सवाल / मदन गोपाल लढ़ा
- प्रीत रो रंग / मदन गोपाल लढ़ा
- प्रीत री आडी / मदन गोपाल लढ़ा
- प्रेम री जवानी में / मदन गोपाल लढ़ा
छाटां छिड़को
- इतियास रो बास / मदन गोपाल लढ़ा
- बूझ सकै सवाल / मदन गोपाल लढ़ा
- पांती / मदन गोपाल लढ़ा
- तुरपाई करती लुगाई / मदन गोपाल लढ़ा
- दूजां रै मन-माफिक / मदन गोपाल लढ़ा
- कोनी तूटै रीत / मदन गोपाल लढ़ा
- अेकायंत रो माहात्म्य / मदन गोपाल लढ़ा
- कैंसर अेक्सप्रेस / मदन गोपाल लढ़ा
- बाप री गोदी / मदन गोपाल लढ़ा
- सौरम / मदन गोपाल लढ़ा
- बाप हुवणै रो मतळब / मदन गोपाल लढ़ा
- कुण है बो / मदन गोपाल लढ़ा
- आलोचक रै नांव / मदन गोपाल लढ़ा
- मन मिल्यां मेळो / मदन गोपाल लढ़ा
- खाग्यो बजार / मदन गोपाल लढ़ा
- घुळगांठ / मदन गोपाल लढ़ा
- डायरी रो अेक दिन / मदन गोपाल लढ़ा
- मून रो मतळब / मदन गोपाल लढ़ा
- जळसै पछै / मदन गोपाल लढ़ा
- कविता तो दूर / मदन गोपाल लढ़ा
- पारखी टीप / मदन गोपाल लढ़ा
- अदीठ रै हाथा / मदन गोपाल लढ़ा
गद्य कवितावां