क़र्जे़ तहज़ीब एक दुनिया है
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रचनाकार | विनय कुमार |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | |
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ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- सूखे पत्तों सा यह शहर क्यों है / विनय कुमार
- जब भी उठो लिहाफ़ हटाकर सुबह-सुबह / विनय कुमार
- जी हाँ मुझे पता है शीशा टूटेगा / विनय कुमार
- बाहर आने को मुश्किल से कोई दुख राज़ी होता है / विनय कुमार
- राजकोष की जूठन छोटी बड़ी किताबों में / विनय कुमार
- धँसी है आँख मिट्टी में, निगाहें आसमानों में / विनय कुमार
- आप बदले तो कहाँ हम भी पुराने से रहे / विनय कुमार
- एक मुजरिम को मसीहा नहीं बता सकते / विनय कुमार
- फाइलों मे छिपा दिया पानी / विनय कुमार
- मन बँधते ही मरा काठ तन धीरे-धीरे नष्ट हुआ / विनय कुमार
- गुफ़्तगू ख़त्म हुई, तख़्त बचा, ताज रहा / विनय कुमार
- तेरा कहा तुझी पर लागू नहीं होता है / विनय कुमार
- रोज़ पीता है उसे इतना नशा आता है / विनय कुमार
- जश्न में हरगिज़ न जाऊँगा मुझे करना मुआफ़ / विनय कुमार
- आँकड़ों के ज़माने आए हैं / विनय कुमार
- सच बताने को तरसते हुए डर लगता है / विनय कुमार
- बातें कहीं हज़ार मगर सच बोल गया / विनय कुमार
- कहें वे लाख हमारे दिलों में रहते हैं / विनय कुमार
- यह समय है आँख के शोले बुझाने का / विनय कुमार
- क़तरा-क़तरा बिखर गए बादल / विनय कुमार
- गुज़र गया फूलों का मौसम चर्चा फ़िऱ भी फूल की / विनय कुमार
- मोड़ तीखे हो गए डरने लगे हैं रास्ते / विनय कुमार
- तोडियें मत और इन टूटी ज़मीनों को / विनय कुमार
- बात की बिगड़ी हुई बस रात में है / विनय कुमार
- देख कर बगुला भगत को मछलियाँ खाते हुए / विनय कुमार
- आपके ईमान के जैसा हुआ है आईना / विनय कुमार
- बंदों को हमराज़, खुदाओं को नाराज़ बनाता हूँ / विनय कुमार
- एक क़तरा भी जहाँ बेमौत मारा जाएगा / विनय कुमार
- स्वप्न था यह आपका ही सूर्य धरती से उगे / विनय कुमार
- ज़िद में बसने की भटकना होगा अब बसेरा कहीं नहीं दिखता / विनय कुमार
- / विनय कुमार
- / विनय कुमार
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