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* [[रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है / डी. एम. मिश्र]] | * [[रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[दग़ाबाजों से धोखा और खाना क्या ज़रूरी है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[लगा है मेला मगर सब यहाँ अकेले हैं / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[बड़े होटल में जाकर चमचमाती शाम लिख लेना / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[वो आदमी बेकार है यह बात भी सही / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[बजर बजता है तो उसको सुनायी कुछ नहीं देता / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[वेा अच्छा आदमी था आ गया बातों में वो कैसे / डी. एम. मिश्र]] | ||
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+ | * [[रोज़ किसी की शील टूटती पुरूषोत्तम के कमरे में / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[भले जलसों में आकर के ज़बानें खूब चलती हैं / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[दूर से बातें करो अब वो विधायक है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[भैया जी को देखो कितना हँसकर मिलते हैं / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[ज़ुबाँ हो तो वो बोले, बेज़ुबाँ बोले मगर कैसे / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[देर से जाना उसे वो आदमी मक्कार है / डी. एम. मिश्र]] | ||
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+ | * [[लौटता है कहाँ नेता चुनाव के बाद / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[मापदण्ड सब अलग-अलग हैं दुनिया बड़ी सयानी / डी. एम. मिश्र]] | ||
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+ | * [[दुनिया में अपनी खुश मुझे रहना पसन्द है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[फ़ितरतों से दूर उसकी मुफ़लिसी अच्छी लगी / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[दरिया का हुस्न छोटे से क़तरे में देखिये / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[है वही दुनिया नये अंदाज़ में दिखने लगी / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[उलझो तो बस उलझें रहो तमाम ज़िंदगी / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[जिंदगी थोड़ी है बंधन बहुत ज्यादा / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[ज़िन्दगी प्यार है लेकिन जो आप समझें तो / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[जो कट गयी है ज़िंदगी मुड़कर उसे देखा नहीं / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[सीपियों के नाम में सारा समंदर लिख गया / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[आज मौसम ने शरारत फिर किया / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[मासूम गुल ने हँस के देखा तो तमाशा हो गया / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[आत्मा नीलाम करके कुछ भी पा लो / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[अच्छा हुआ जो रंजो ग़म से दूर हो गया / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[अँधेरी सुंरगों में चलना कठिन है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[अपने दरपन से लड़ गया कोई / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[हँसो या ना हँसो मातम मुझे अच्छा नहीं लगता / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[क्या अच्छा, क्या बुरा सफ़र है चलना है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[उससे बातें करें पर वो ज़िंदा तो हो / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[आसमान वो भले नहीं, पर मेरे सर की छतरी है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[बादलों का एक टुकड़ा आसमाँ में खो गया / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[धूल मिट्टी की चमक कागज पे रखकर देखता है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[ख़ैर मनाओ झोपड़ियों में बच्चे ज़्यादा हैं / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[बेाझ धान का लेकर वो जब हौले-हौले चलती है / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[मुझे तो आजकल अपनी ख़बर नहीं मिलती / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[गाँवों का उत्थान देखकर आया हूँ / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[इस मिट्टी को छूकर देखो गाँव दिखायी देगा / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[गाँव-गाँव हो गया भिखारी / डी. एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[दूर करो सब गिले व शिकवे अच्छी बात करो / डी. एम. मिश्र]] |
16:01, 13 जुलाई 2017 का अवतरण
रोशनी का कारवाँ
रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
---|---|
प्रकाशक | नमन प्रकाशन, अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली |
वर्ष | 2012 |
भाषा | हिंदी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 112 |
ISBN | 81 8129 354 1 |
विविध |
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रचनाएँ
- भूमिका / रोशनी का कारवाँ
- देखता हूँ मैं उसी का रूप हर इन्सान में / डी. एम. मिश्र
- ढूँढ रहा खोया अनुराग घर से बाहर तक / डी. एम. मिश्र
- खिली धूप से सीखा मैने खुले गगन में जीना / डी. एम. मिश्र
- इक तरफ़ हो एक नेता इक तरफ़ सौ भेड़िये / डी. एम. मिश्र
- सुनता नही फ़रियाद कोई हुक्मरान तक / डी. एम. मिश्र
- किसी जन्नत से जाकर हुस्न की दौलत उठा लाये / डी. एम. मिश्र
- शौक़िया कुछ लोग चिल्लाने के आदी हो गये / डी. एम. मिश्र
- तू जाने या जाने तेरी क़िस्मत मेरे यार / डी. एम. मिश्र
- गंदगी धेाने में थोड़ा हाथ मैला हो गया / डी. एम. मिश्र
- करो जो जी में आये कौन किसको रोकता है / डी. एम. मिश्र
- अगर जाँ दोस्त ही ले ले तो दुश्मन की ज़रूरत क्या / डी. एम. मिश्र
- रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है / डी. एम. मिश्र
- दग़ाबाजों से धोखा और खाना क्या ज़रूरी है / डी. एम. मिश्र
- लगा है मेला मगर सब यहाँ अकेले हैं / डी. एम. मिश्र
- बड़े होटल में जाकर चमचमाती शाम लिख लेना / डी. एम. मिश्र
- वो आदमी बेकार है यह बात भी सही / डी. एम. मिश्र
- बजर बजता है तो उसको सुनायी कुछ नहीं देता / डी. एम. मिश्र
- वेा अच्छा आदमी था आ गया बातों में वो कैसे / डी. एम. मिश्र
- देश की धरती उगले सोना वो भी लिखो तरक़्क़ी में / डी. एम. मिश्र
- भाषणों को खा रहे हैं, भाषणों को पी रहे / डी. एम. मिश्र
- रोज़ किसी की शील टूटती पुरूषोत्तम के कमरे में / डी. एम. मिश्र
- भले जलसों में आकर के ज़बानें खूब चलती हैं / डी. एम. मिश्र
- दूर से बातें करो अब वो विधायक है / डी. एम. मिश्र
- भैया जी को देखो कितना हँसकर मिलते हैं / डी. एम. मिश्र
- ज़ुबाँ हो तो वो बोले, बेज़ुबाँ बोले मगर कैसे / डी. एम. मिश्र
- देर से जाना उसे वो आदमी मक्कार है / डी. एम. मिश्र
- बहुत तलाशा मैंने लेकिन मिला न कोई बेईमान / डी. एम. मिश्र
- लौटता है कहाँ नेता चुनाव के बाद / डी. एम. मिश्र
- मापदण्ड सब अलग-अलग हैं दुनिया बड़ी सयानी / डी. एम. मिश्र
- मैं जहाँ जाता हूँ मेरे साथ जाती है ग़रीबी / डी. एम. मिश्र
- दुनिया में अपनी खुश मुझे रहना पसन्द है / डी. एम. मिश्र
- फ़ितरतों से दूर उसकी मुफ़लिसी अच्छी लगी / डी. एम. मिश्र
- दरिया का हुस्न छोटे से क़तरे में देखिये / डी. एम. मिश्र
- है वही दुनिया नये अंदाज़ में दिखने लगी / डी. एम. मिश्र
- अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है / डी. एम. मिश्र
- उलझो तो बस उलझें रहो तमाम ज़िंदगी / डी. एम. मिश्र
- जिंदगी थोड़ी है बंधन बहुत ज्यादा / डी. एम. मिश्र
- ज़िन्दगी प्यार है लेकिन जो आप समझें तो / डी. एम. मिश्र
- जो कट गयी है ज़िंदगी मुड़कर उसे देखा नहीं / डी. एम. मिश्र
- सीपियों के नाम में सारा समंदर लिख गया / डी. एम. मिश्र
- आज मौसम ने शरारत फिर किया / डी. एम. मिश्र
- मासूम गुल ने हँस के देखा तो तमाशा हो गया / डी. एम. मिश्र
- आत्मा नीलाम करके कुछ भी पा लो / डी. एम. मिश्र
- अच्छा हुआ जो रंजो ग़म से दूर हो गया / डी. एम. मिश्र
- अँधेरी सुंरगों में चलना कठिन है / डी. एम. मिश्र
- अपने दरपन से लड़ गया कोई / डी. एम. मिश्र
- हँसो या ना हँसो मातम मुझे अच्छा नहीं लगता / डी. एम. मिश्र
- क्या अच्छा, क्या बुरा सफ़र है चलना है / डी. एम. मिश्र
- उससे बातें करें पर वो ज़िंदा तो हो / डी. एम. मिश्र
- आसमान वो भले नहीं, पर मेरे सर की छतरी है / डी. एम. मिश्र
- नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो / डी. एम. मिश्र
- बादलों का एक टुकड़ा आसमाँ में खो गया / डी. एम. मिश्र
- धूल मिट्टी की चमक कागज पे रखकर देखता है / डी. एम. मिश्र
- ख़ैर मनाओ झोपड़ियों में बच्चे ज़्यादा हैं / डी. एम. मिश्र
- बेाझ धान का लेकर वो जब हौले-हौले चलती है / डी. एम. मिश्र
- मुझे तो आजकल अपनी ख़बर नहीं मिलती / डी. एम. मिश्र
- गाँवों का उत्थान देखकर आया हूँ / डी. एम. मिश्र
- इस मिट्टी को छूकर देखो गाँव दिखायी देगा / डी. एम. मिश्र
- गाँव-गाँव हो गया भिखारी / डी. एम. मिश्र
- दूर करो सब गिले व शिकवे अच्छी बात करो / डी. एम. मिश्र