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रिंकी सिंह 'साहिबा'
© कॉपीराइट: रिंकी सिंह 'साहिबा'। कविता कोश के पास संकलन की अनुमति है। इन रचनाओं का प्रयोग रिंकी सिंह 'साहिबा' की अनुमति के बिना कहीं नहीं किया जा सकता।
जन्म | 15 दिसम्बर 1987 |
---|---|
जन्म स्थान | सिवान, बिहार |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
शब्द अस्मिता सम्मान, प्रतिभाशाली रचनाकार सम्मान | |
जीवन परिचय | |
रिंकी सिंह 'साहिबा' / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- गुल रंग मिस्ल ए लाला / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- चमन के रंग ओ बू में तू, / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- दिल शगुफ़्ता है के फिर कोई ख़ता होने को है / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- शिकवा किस किस से करें सब ही सितमगर निकले / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- दर्द ये दिल का हमें तंग किए रहता है / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- रक़्स करता है जहां तासीर में / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- तन्हाई ने वो रक़्स ओ तमाशा किया कि वाह / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- चराग़ ए आरज़ू है / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- वफ़ा की राह में दुश्वारियां हैं / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- रंग ए एहसास छलकता है / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- सुकूँ मांगे न राहत मांगती है / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- सौ बार उससे लड़ के भी हर बार हारना / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- रात के साथ ही जब दर्द जवां होता है / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- वफ़ा के नूर से ख़ुद को सजा के बैठी हूँ / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- आतिश ए गुल हूँ निगाहों में शरर रखती हूँ / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- अर्थ सुनहरे बोल पड़ेंगे / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- स्वर है वीणा का अनूदित / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- प्रेम की ज्योति फिर से जलाओ पिया / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- कली कली की अंगड़ाई से छलक रहा है रंग / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- जीवन है वह बगिया जिसमें / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- एक जोगी आ गया मन के नगर में / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- मौन अधर से मन की बातें कह पाओ तो प्रीत करो / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- घी के दिये जलाओ / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- हे प्रणय के देवता तुम हो समाहित श्वास में / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- दुआ सी लगती मां / रिंकी सिंह 'साहिबा'
- देह की रोशनी जब बुझेगी पिया / रिंकी सिंह 'साहिबा'