फूल और शूल
रचनाकार | द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी |
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प्रकाशक | ओंकार प्रेस, प्रयाग |
वर्ष | 1955 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | गीत |
पृष्ठ | 73 |
ISBN | |
विविध | प्रथम संस्करण |
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इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- जग पूछ रहा मुझसे / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- मेरी वीणा में स्वर भर दो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- चाहता हूँ दूर जाना / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- मैं नहीं चाहता हूँ दुनिया की दौलत / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- शाप नहीं मुझको मंगल वरदान चाहिए / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- हँसने का वरदान मिला है / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- फूल ने हँस कर कहा इंसान से / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- फूल बन खिलो कि हार बन सको / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- हर घड़ी हर पल हरेक इंसान का / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- मधुर मधुर दीपक जलता है / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- चाँदनी, ओ री चाँदनी / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- मैं लिखूँगा गीत / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- गीत बनकर मैं मिलूँ / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- लिखे गीत मैंने तुम्हें ही सुनाने / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- आज गीले गान मेरे / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- आश पर विश्वास पर दुनियाँ टिकी है / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- जीवन के पथ में आते हैं कुछ मोड़ कभी / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- मेरे आँसू का मोल जगत क्या जाने / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- हँस रहा हूँ क्योंकि रोना भी मना है / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- सहारा अभी तक मुझे मिल न पाया / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- मत घबराओ पथिक पंथ पर चले चलो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- मत रोको मेरी राह चमन के फूलो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- फूल बनकर बिछ सको यदि तुम नहीं / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- हैं फूल और काँटे मुझको दोनों समान / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- उपवन का हर फूल शूल ही में खिलता है / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- तुम समझ रहे हो शूल जिन्हें / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- मत तुम मेरा कोई आधार बनो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- ओ कवि! जीवन गान सुना रे / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- बुझ न जाए दीप तू जलाए जा / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- जब तक प्राणों की वीणा में झंकार शेष / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- जीत हो या हो भले ही हार / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- निष्करुण उन्मत्त रे मन / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
- यह नहीं विश्राम-स्थल रे / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी