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वितान / शहंशाह आलम
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वितान
रचनाकार | शहंशाह आलम |
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प्रकाशक | समीक्षा प्रकाशन, सम्पर्क : फ़ोन- 09471884999 / 09334279957 |
वर्ष | 2010 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | 978-81-87855-56-9 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- शब्द थे / शहंशाह आलम
- कारीगर / शहंशाह आलम
- जाड़ा : पांच कविताएं / शहंशाह आलम
- भादों में लगातार भीगते हुए / शहंशाह आलम
- जहां तुम देह पर बैठी धूल उतारोगे / शहंशाह आलम
- सिपाही : पांच कविताएं / शहंशाह आलम
- सब कुछ बचा रहेगा / शहंशाह आलम
- माँ : दो कविताएं / शहंशाह आलम
- इसे विडंबना ही कहिए / शहंशाह आलम
- जुलाई की तिथि में आज दूसरे हफ़्ते का वृहस्पत है / शहंशाह आलम
- कोहिमा / शहंशाह आलम
- सड़कों पर बौखता हूं / शहंशाह आलम
- अकारण दुख नहीं झलक रहा / शहंशाह आलम
- जितनी देर में बनती है एक उम्मीद / शहंशाह आलम
- हमारे लिए भेजे गए दादी के चिउड़े / शहंशाह आलम
- यही दृश्य / शहंशाह आलम
- चाहिए था / शहंशाह आलम
- हम कोई नया जंगल / शहंशाह आलम
- मैं भी कहूंगा / शहंशाह आलम
- धार्मिक विचारों को लेकर / शहंशाह आलम
- भारत शक उन्नीस सौ तेईस : पांच कविताएं / शहंशाह आलम
- इस अयोध्या में : तीन कविताएं / शहंशाह आलम
- सब्ज़ी बेचने वाली औरतों की कविता / शहंशाह आलम
- मेरा सौंपा हुआ / शहंशाह आलम
- ख़ानाबदोश लड़कियां / शहंशाह आलम
- आचरण : पांच कविताएं / शहंशाह आलम
- मुझे ले जाया गया / शहंशाह आलम
- तस्लीमा नसरीन : दो कविताएं / शहंशाह आलम
- ले उड़े कोई जल्दी / शहंशाह आलम
- कौवे के बारे में / शहंशाह आलम
- कुत्ते के बारे में / शहंशाह आलम
- सांप के बारे में / शहंशाह आलम
- जलते शहर का दर्द / शहंशाह आलम
- इस असमय में / शहंशाह आलम
- डोर से बंधी पतंग / शहंशाह आलम
- स्त्रियाँ / शहंशाह आलम
- इस लोक के इस आर्यावर्त में / शहंशाह आलम
- पाटलिपुत्र के सौ बिल्ले और एक बिल्ली की कथा / शहंशाह आलम
- मक़बूल फ़िदा हुसेन के प्रति : छह कविताएं / शहंशाह आलम
- जीवन / शहंशाह आलम
- विदा का समय / शहंशाह आलम
- वहां भिलाई में / शहंशाह आलम
- रहती दुनिया तक / शहंशाह आलम
- रात के आसेब से / शहंशाह आलम
- सभाओं के बाद / शहंशाह आलम
- एक स्त्री मरी पड़ी है / शहंशाह आलम
- हरी घास पर प्रेम / शहंशाह आलम
- दर्शक-दीर्घा में अकेली तालियां बजाती हुई लड़की / शहंशाह आलम
- इसे हम ऊंट बना सकते हैं / शहंशाह आलम
- अपनी दाढ़ी को लेकर / शहंशाह आलम
- मृतात्माओं के इस नगर की इस संध्या-बेला में / शहंशाह आलम
- पहले वो सिनेमाघर में मिली थीं / शहंशाह आलम
- हमें एक-दूसरे से बिछड़ जाने के लिए / शहंशाह आलम
- दिल्ली में बलात्कार / शहंशाह आलम
- कल सारे पुरपेच रास्ते हमने तय किए / शहंशाह आलम
- जब हम उनसे मिलने को बेक़रार हुए / शहंशाह आलम
- मैं बुद्ध / शहंशाह आलम
- बहुत ढेर नहीं / शहंशाह आलम
- घाट किनारे का गीत / शहंशाह आलम
- अपने नवजात पुत्र की आकस्मिक मृत्यु पर / शहंशाह आलम
- अभी मुझमें जीवन शेष है / शहंशाह आलम