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वो पता ढूँढें हमारा / डी. एम. मिश्र
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वो पता ढूँढें हमारा
रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
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प्रकाशक | शिल्पायन पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, शाहदरा, दिल्ली |
वर्ष | 2019 |
भाषा | हिंदी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | 978.93.81610.99.2 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
रचनाएँ
- भूमिका / वो पता ढूँढें हमारा
- धूप थी, लंबा सफ़र था, दूर तक साया न था / डी. एम. मिश्र
- जीत को भी मुझे हार कहना पड़ा / डी. एम. मिश्र
- खुला आकाश भी था सामने माक़ूल मौसम था / डी. एम. मिश्र
- आधी रात को सारा आलम सोता है / डी. एम. मिश्र
- छुपाकर कोई काम करते नहीं हैं / डी. एम. मिश्र
- ज़िंदगी जितना तुझको पढ़ता हूँ / डी. एम. मिश्र
- दिल से जो लफ़्ज निकले उसे प्यार बना देना / डी. एम. मिश्र
- कंगाल हो गया हूँ मगर शान अभी है / डी. एम. मिश्र
- जिसे कोई आसक्ति न हो मैं उस फ़क़ीर से डरता हूँ / डी. एम. मिश्र
- चिंतित था यह सोचकर कब बीतेगी रात / डी. एम. मिश्र
- है ज़माने को ख़बर हम भी हुनरदारों में हैं / डी. एम. मिश्र
- यह समर्पण है, न बोलो वासना है / डी. एम. मिश्र
- दरबारियों की भीड़ है दरबार से चलो / डी. एम. मिश्र
- असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये / डी. एम. मिश्र
- मुस्कराते हुए चेहरे हसीन लगते हैं / डी. एम. मिश्र
- कभी वतन से अपने दूर नहीं हो पाया / डी. एम. मिश्र
- तुम्हारे साथ चलने का न सुख पाता तो क्या गाता / डी. एम. मिश्र
- हिन्दू हूँ थेाड़ा ख़ुद को मुसलमान कर रहा / डी. एम. मिश्र
- पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे / डी. एम. मिश्र
- रक्त का संचार है पर्यावरण / डी. एम. मिश्र
- अपने बहते हुए लहू का दोष मढ़ें किस सर पर / डी. एम. मिश्र
- जनता को तू समझ रहा नादान, तू कितना नादान / डी. एम. मिश्र
- साथ खड़े हैं जनता के ख़ुद को जनसेवक कहते / डी. एम. मिश्र
- भटक रही है ज़िंदगी न रास्ता सूझे / डी. एम. मिश्र
- कोई ‘हिटलर’ अगर हमारे मुल्क में जनमे तो / डी. एम. मिश्र
- हमारी वफ़ा की तिजारत करोगे / डी. एम. मिश्र
- मैं शोला तो नहीं फिर भी हूँ इक नन्हीं-सी चिन्गारी / डी. एम. मिश्र
- टूट कर जाता बिखर गर हौसला होता नहीं / डी. एम. मिश्र
- मुझे भी हारकर तेवर दिखाना पड़ गया आखि़र / डी. एम. मिश्र
- जो ग़रीब का ख़ून चूसती वह सरकार निकम्मी है / डी. एम. मिश्र
- मेरी सुबहों मेरी शामों पे बुलडोज़र चला देगा / डी. एम. मिश्र
- सरेराह नंगा वो हो चुका उसके लिए कुछ भी नहीं / डी. एम. मिश्र
- देशभक्ती के नारे गढ़े जा रहे / डी. एम. मिश्र
- हमारे शहर को ये क्या हो गया है / डी. एम. मिश्र
- जनता हो लाचार तो राजा मज़ा करे / डी. एम. मिश्र
- न जाने क्यों वो मुझसे दूर होता जा रहा है / डी. एम. मिश्र
- आशनाई की ग़ज़ल गाने से कुछ हासिल नहीं / डी. एम. मिश्र
- आग लगाने वाले भी कम नहीं यहाँ / डी. एम. मिश्र
- बिना रीढ़ वाले भी कैसे खड़े हैं / डी. एम. मिश्र
- ज़हर उतरने में थोड़ा-सा वक़्त लगेगा / डी. एम. मिश्र
- एक सोने का मगर झूठा शज़र था सामने / डी. एम. मिश्र
- आपने सोचा कभी है क्यों मरे भूखा किसान / डी. एम. मिश्र
- मेरा प्यार बेशक समंदर से भी है / डी. एम. मिश्र
- वो तुझे रोटी है देता तू उसे भूखा सुलाता / डी. एम. मिश्र
- जामे-ज़हर भी पी गया अश्कों में ढालकर / डी. एम. मिश्र
- अपने नसीब को न बार-बार कोसिये / डी. एम. मिश्र
- ख़ू़ब जनता को नचाया जा रहा / डी. एम. मिश्र
- गाँव में रहना कोई चाहे नहीं / डी. एम. मिश्र
- किससे कहूँ कि खेतों से हरियाली ग़ायब है / डी. एम. मिश्र
- यूँ ही रहा तो खेती करने वाले नहीं मिलेंगे / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र
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- / डी. एम. मिश्र
- / डी. एम. मिश्र