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"समकाल की आवाज़ / डी.एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | * [[ऐसे क़ातिल से बचिए जो रक्षक भी होता है / डी .एम. मिश्र]] | ||
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+ | * [[अग्नि पथ पर चल पड़ा क्या सोचना अंजाम अब / डी .एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[गौहर पाने जो निकला हो पत्थर चुनने लग जाए क्यों / डी .एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[ऐसे फ़रमान आने लगे / डी .एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[वो चांद है जलवे जो दिखाता है बार बार / डी .एम. मिश्र]] | ||
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+ | * [[ज़ुल्म के इस दौर में बोलेगा कौन / डी .एम. मिश्र]] | ||
+ | * [[भले मजबूरियां होंगी मगर हम साथ रहते हैं / डी .एम. मिश्र]] | ||
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21:56, 9 दिसम्बर 2022 का अवतरण
समकाल की आवाज़
रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
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प्रकाशक | न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, C-515, बुद्धनगर, इन्द्रपुरी, नई दिल्ली, 110012 |
वर्ष | प्रथम संस्करण 2022 |
भाषा | हिंदी |
विषय | रचना संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | 978-93-95234-42-9 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
रचनाएँ
- भूमिका / समकाल की आवाज़
- बुझे न प्यास तो फिर सामने नदी क्यों है / डी. एम. मिश्र
- अपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता / डी .एम. मिश्र
- ग़मज़दा आंखों का दो बूंद नीर कैसे बचे / डी .एम. मिश्र
- हवा में है वो अभी आसमान बाक़ी है / डी .एम. मिश्र
- मारा गया इंसाफ़ मांगने के जुर्म में / डी .एम. मिश्र
- आप मज़े में हैं तो क्या फ़स्ले बहार है / डी .एम. मिश्र
- उधर बुलंदी पे उड़ता हुआ धुआं देखा / डी .एम. मिश्र
- बडे आराम से वो क़त्ल करके घूमता है / डी .एम. मिश्र
- उजड़ रहा है चमन इसको बचाऊं कैसे / डी .एम. मिश्र
- एक ज़ालिम ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है / डी .एम. मिश्र
- जानते सब हैं बोलता नहीं है कोई भी / डी .एम. मिश्र
- अँधेरा है घना फिर भी ग़ज़ल पूनम की कहते हो / डी .एम. मिश्र
- आंख वाले हो के भी अंधे हुए / डी .एम. मिश्र
- मेरे हिस्से की ज़मीं बंजर है / डी .एम. मिश्र
- मेरा प्यार बेशक समंदर से भी है / डी .एम. मिश्र
- आपने ही कौन-सा है तीर मारा / डी .एम. मिश्र
- कृष्न करै तो लीला बोलो, किसना करै छिनारा / डी .एम. मिश्र
- जनता से नाता न रखेंगे कब तक अच्छे लोग / डी .एम. मिश्र
- है क़फ़स में ज़िन्दगानी क्या बताऊं / डी .एम. मिश्र
- दाग़ मेरे भी दामन पर है, दाग़दार तो मैं भी / डी .एम. मिश्र
- बड़े-बड़े गामा उतरे हैं दंगल में / डी .एम. मिश्र
- सवाल ये है कभी क्या किसी ने सोचा है / डी .एम. मिश्र
- चिनगारियों की सुर्ख डगर देख रहा हूं / डी .एम. मिश्र
- मेरा ज़मीर, मेरा सब कुछ है / डी .एम. मिश्र
- सरकार चेत जाइये, डरिये किसान से / डी .एम. मिश्र
- ऐसे क़ातिल से बचिए जो रक्षक भी होता है / डी .एम. मिश्र
- अच्छे दिन के जुमले से कब बाहर आओगे / डी .एम. मिश्र
- तूफ़ानों से बचने का अब समय नहीं / डी .एम. मिश्र
- दरिया में मत आग लगाओ नई नीति से / डी .एम. मिश्र
- अमन के दुश्मनों से डर है मेरी जान ले लेंगे / डी .एम. मिश्र
- उम्र बेशक मुझे थोड़ी कम चाहिए / डी .एम. मिश्र
- वक़्त ही बदला है केवल और क्या बदला है आज / डी .एम. मिश्र
- चोरों और लुटेरों का हो रहा नागरिक अभिनन्दन / डी .एम. मिश्र
- जिससे दिल ही न मिले उससे बात क्या करना / डी .एम. मिश्र
- सवेरा तो होगा इसी आस में हूँ / डी .एम. मिश्र
- आप की सरकार में कितने मज़े हैं / डी .एम. मिश्र
- दोस्तो, कुछ हादसे ऐसे हुए / डी .एम. मिश्र
- सब होंठों पर मत लाना, कुछ दिल के भीतर रखना / डी .एम. मिश्र
- ख़बर वो नहीं जो दिखायी गयी है / डी .एम. मिश्र
- गो इशारों में हम बात कहते नहीं / डी .एम. मिश्र
- चाहता है दीप यद्यपि तम भगाना / डी .एम. मिश्र
- चलो गुनगुनाएं ग़ज़ल के बहाने / डी .एम. मिश्र
- इतनी भी लेकिन न किसी की चलने देना / डी .एम. मिश्र
- नादाँ है उसे प्यार जताना नहीं आता / डी .एम. मिश्र
- दिल को अपने दीप बना दो, और प्रेम को बाती / डी .एम. मिश्र
- यह मत भूलो अहंकार से ख़तरा है / डी .एम. मिश्र
- इतना हसीं कहां मेरा पहले नसीब था / डी .एम. मिश्र
- गूंगे-बहरे बन जायें मंज़ूर नहीं / डी .एम. मिश्र
- दिख रहा खाली जो कल वह भी भरा था / डी .एम. मिश्र
- आप इतने बेख़बर बैठे हुए / डी .एम. मिश्र
- यह हमारी एकता ही देश की पहचान है / डी .एम. मिश्र
- चारण होगा जो तुझको सजदा करता / डी .एम. मिश्र
- उनको फ़ुरसत जो नहीं, मुझको ज़रूरत भी नहीं / डी .एम. मिश्र
- जान लेकर मैं हथेली पे चला करता हूं / डी .एम. मिश्र
- है ज़रूरी तो मुस्कराना है / डी .एम. मिश्र
- जो सच्चा औ खरा हो आग पानी से नहीं डरता / डी .एम. मिश्र
- गाँव में रहना कोई चाहे नहीं / डी .एम. मिश्र
- दम घुटता है मगर अभी तक ज़िन्दा हूँ / डी .एम. मिश्र
- शौक़िया कुछ लोग चिल्लाने के आदी हो गये / डी .एम. मिश्र
- गांव भी अब कहाँ सुरक्षित है / डी .एम. मिश्र
- पिता बनना बहुत आसां , पिता होना बहुत मुश्किल / डी .एम. मिश्र
- महकती फ़जा का गुमाँ बन गया मैं / डी .एम. मिश्र
- जिसे भाई समझता था वही मुझको दगा देगा / डी .एम. मिश्र
- अग्नि पथ पर चल पड़ा क्या सोचना अंजाम अब / डी .एम. मिश्र
- गौहर पाने जो निकला हो पत्थर चुनने लग जाए क्यों / डी .एम. मिश्र
- ऐसे फ़रमान आने लगे / डी .एम. मिश्र
- वो चांद है जलवे जो दिखाता है बार बार / डी .एम. मिश्र
- मैंने शोहरत नहीं कमाई है / डी .एम. मिश्र
- सपनों में तुम आते हो / डी .एम. मिश्र
- ज़ुल्म के इस दौर में बोलेगा कौन / डी .एम. मिश्र
- भले मजबूरियां होंगी मगर हम साथ रहते हैं / डी .एम. मिश्र
- ख़ार को भी गले का हार बना लेते हैं / डी .एम. मिश्र
- भंवर में है कश्ती किनारे कहां हैं / डी .एम. मिश्र
- मेरा ग़म ही मुझे मुस्कान तलक ले जाये / डी .एम. मिश्र
- नज़र उठाये तो वो बेक़रार हो जाये / डी .एम. मिश्र
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