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पेड़ नहीं तो साया होता / पुरुषोत्तम प्रतीक
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पेड़ नहीं तो साया होता
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रचनाकार | पुरुषोत्तम प्रतीक |
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प्रकाशक | राधाकृष्ण प्रकाशन, 2/38, अंसारी मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 |
वर्ष | 1991 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 128 |
ISBN | 81-7119-081-2 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- ये छोटा-सा दिल है जिसमें / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आदमी बरबाद है यारो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- दुख दरिया था बहता आया / पुरुषोत्तम प्रतीक
- जो रख लोगे दिल की दिल में / पुरुषोत्तम प्रतीक
- अपने आँसू तेरी आहें / पुरुषोत्तम प्रतीक
- चाकुओं के गाँव में इन्सान की बातें न कर / पुरुषोत्तम प्रतीक
- नाम का इस बार चौमासा रहा / पुरुषोत्तम प्रतीक
- पेड़ की पहचान उसके पात से होवे / पुरुषोत्तम प्रतीक
- भूख-भर आटा न था बस / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आदमी है यार, पर इतना नहीं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- वो सितम पर भी सितम ढाते रहे / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आज वैसा मन कहाँ है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ये दुनिया की सच्चाई है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- दुनिया मान लिया है दिल को / पुरुषोत्तम प्रतीक
- कुछ फरेबों ने पहनकर सादगी / पुरुषोत्तम प्रतीक
- चीर चुरानेवाला चीर बढ़ावे है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- वो दिल से कम मुस्कावे है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ये आसमाँ अजीब हवा पर सवार है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- पेट के ख़ाली सफ़े पर ओम् लिखवाओ न अब / पुरुषोत्तम प्रतीक
- महफ़िल रही तमाम बड़े तामझाम की / पुरुषोत्तम प्रतीक
- जब तक जहाँ रहेगा, हसरत बनी रहेगी / पुरुषोत्तम प्रतीक
- कहें क्या उन्हें जो उनींदे पड़े हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आदमी को ज़िन्दगी दे वो नज़ारा चाहिए / पुरुषोत्तम प्रतीक
- जब कठिन हो आँसुओं में तैर पाना / पुरुषोत्तम प्रतीक
- क्यूँ लाल हो रहा है यह आसमान देखो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- पहले-पहल आँखों से दो हाथ निकलकर मिलते हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- गिरें धरम कि गिरे जातियाँ नहीं झिलतीं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- चलो कहीं न कहीं वास्ते ग़लत निकले / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हर तरफ़ उनके तहलके हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- भूल गए हैं वो रंजिश में / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ज़िक्र करते रहे पसीनों का / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हर तरफ़ से मात है, ये साफ़ है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आपने पत्थर कहा जिनको उन्हें पहचानिए / पुरुषोत्तम प्रतीक
- दिल में वही सुझाव वही मत लिए हुए / पुरुषोत्तम प्रतीक
- बरसों दूर निकल आए हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- निकले तमाम ख़्वाब / पुरुषोत्तम प्रतीक
- एक दिल ने दूसरे की जान ली / पुरुषोत्तम प्रतीक
- रंग तुम्हारे गहरे हैं अब क्या बोलें / पुरुषोत्तम प्रतीक
- साथ जब रुसवाइयाँ होंगी / पुरुषोत्तम प्रतीक
- तूफ़ानों ने घेरा है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- यादों का लम्बा सिलसिला (भूमिका) / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आदमी जो आदमीयत से भरा होगा / पुरुषोत्तम प्रतीक
- देवता जैसे दिखो, बेशक कसाई हो गुरु / पुरुषोत्तम प्रतीक
- पैमानों से गुज़रूँगा तो दीवाना हो जाऊँगा / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हाथों में देकर गई विष की प्याली रात / पुरुषोत्तम प्रतीक
- दिल में पैदा हो नहीं अब कोई अरमान / पुरुषोत्तम प्रतीक
- याद किसी की आकर मुझमें सागर-सा मथ जाती है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- मिटता अगर मिटाते तुम फ़ासला समझ का / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ज़िक्र वो करने लगा जब रात क़ब्रिस्तान का / पुरुषोत्तम प्रतीक
- तुमने साथ निभाया होता / पुरुषोत्तम प्रतीक
- वो हमारी ज़िन्दगी हो, हौसला हो, ताप हो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ज़िन्दगी के सफ़र में साथ हों ख़ुशदिल सभी / पुरुषोत्तम प्रतीक
- धरा ही जानती है बस, हमारे गाँव की बातें / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ख़ामियों को ख़ूबियों-जैसा गुमाँ है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- यार, काँटे ही ज़्यादा भले होंगे / पुरुषोत्तम प्रतीक
- क्यों ग़ज़ल आई लबों तक भीगकर बरसात में / पुरुषोत्तम प्रतीक
- बेचैन दिशाएँ हैं, बेजान नजारे हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हमें हमारी तमाम यादें भुला रही हैं कमाल ये है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- न साहिल है, न कश्ती है, न माझी है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- जो हमसफ़र बने थे दो-चार गाम चल के / पुरुषोत्तम प्रतीक
- गुलशन के काँटों को देखो कैसे-कैसे भाग लगे / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ये सदियों की सच्चाई है दुनिया के इस पाले में / पुरुषोत्तम प्रतीक
- कभी ख़ुद से, कभी घर से, कभी भगवान के डर से / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ज़िन्दगी के अर्थ खोजें खिलखिलाने से अलग / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हमसे अगर उम्मीद लगाए हुए चलो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- सारा हिसाब देख लिया, बेहिसाब है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- मुझको राह दिखानेवाला, जो भी निकला पत्थर निकला / पुरुषोत्तम प्रतीक
- लहू की बूँद से सूरज निकलता हो, निकलने दो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- उलझनों की बस्तियों में गाँव के मन बावले / पुरुषोत्तम प्रतीक
- बादलों ने ख़ूबसूरत सिलसिला पैदा किया / पुरुषोत्तम प्रतीक
- प्यास जीता हूँ हरेपन के लिए / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हँसकर, रोकर, गाकर हम तो जी बहलाने आते हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- अगर हम ज़िन्दगी को भूल से ईमान कर देते / पुरुषोत्तम प्रतीक
- कैसा लगा गुलाब अगर पूछता मुझे / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हौसला तूफ़ान पैदा कर गया / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ये जितने भी सन्नाटे हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- जीवन की कच्ची मिट्टी से जब हम मूरत गढ़ते हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- जहाँ भी हम बढ़े आगे वहीं ये आफ़तें गुज़रीं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- क़द को बड़ा क़दम से मैं आँकता रहा / पुरुषोत्तम प्रतीक
- चाँद-तारों से मिलें तो रात की बातें करें / पुरुषोत्तम प्रतीक
- चाँदनी बिखरी हुई थी यह तमाशा भी हुआ / पुरुषोत्तम प्रतीक
- जब तक न ढूँढ़ लो तुम कोई नया ठिकाना / पुरुषोत्तम प्रतीक
- शायरी ने आसमान को ज़मीं पर ला दिया / पुरुषोत्तम प्रतीक
- शर्त ये रक्खी गई तैयारियों के सामने / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हाथ से छूकर ज़रा हर एक दामन देखियो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- दिन-भर सबका बोझ उठइयो, साँझ घिरे पर घर जइयो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ये चुप्पी, सन्नाटा, उलझन, तीखापन दिल सहवे है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- मेरे भीतर रहता है वो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- स्वर नहीं मेरा किसी के गीत गाने के लिए / पुरुषोत्तम प्रतीक
- यूँ एक बार ठौर-ठौर हो जाऊँ / पुरुषोत्तम प्रतीक
- यहाँ तकलीफ़ को तकलीफ़ मत कहियो / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आदमी का दर्द से कितना सही नाता रहा / पुरुषोत्तम प्रतीक
- सागर को ही लाभ-हानियाँ अच्छी लगती हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- पसीने के बरसने से हरा हर छोर होता है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- देखिए, दरिया उबलते देखिए / पुरुषोत्तम प्रतीक
- चिड़ियों के बेपर बच्चों-से सपने लगते हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- घर से बेघर हो आए हैं लोग सहारे सड़कों के / पुरुषोत्तम प्रतीक
- ख़ुद की ख़बर नहीं है, किसका पता बताएँ / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हम पर असर खुलासा है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आँखों की झीलों में यादें आकर रोज़ नहाती हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- बारिश नहीं हुई है कुहरा घना हुआ है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- सारे जग का खेल / पुरुषोत्तम प्रतीक
- सोच की ज़ंजीर में बँधकर चले हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- मत पूछो गीतों के तन पर छाले कैसे-कैसे हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक
- हम रहे जब अर्थ के मारे हुए / पुरुषोत्तम प्रतीक
- आँखों में सुधियों का सागर लहराया है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- सागर पगलाया लगता है मौसम की बदमस्ती में / पुरुषोत्तम प्रतीक
- मेरे घर से उसके घर की केवल इतनी दूरी है / पुरुषोत्तम प्रतीक
- उनकी निग़ाह में हम, उनकी ज़बान समझें / पुरुषोत्तम प्रतीक
- जो लोग महफ़िलों में आते रहे समय से / पुरुषोत्तम प्रतीक
- बीच में फँसकर नगर के गाँव घूरे हो गए / पुरुषोत्तम प्रतीक
- लीजिए, रख लीजिए दिल ही निशानी के बतौर / पुरुषोत्तम प्रतीक
- एक बाज़ी और खेली और वो हारी गई / पुरुषोत्तम प्रतीक