भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
चेहरों के अन्तरीप
रचनाकार | कुमार रवींद्र |
---|---|
प्रकाशक | राजेश प्रकाशन, दिल्ली |
वर्ष | १९८७ |
भाषा | |
विषय | |
विधा | नवगीत |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- गुलमोहर रात ढहा / कुमार रवींद्र
- पंख रुके भरे-भरे ताल / कुमार रवींद्र
- चुपके से पेड़ / कुमार रवींद्र
- चौमुख जोत जले / कुमार रवींद्र
- धूप-छाँव है खुली गदोरी में / कुमार रवींद्र
- हँसी छाँव की / कुमार रवींद्र
- चेहरों के अंतरीप (कविता) / कुमार रवींद्र
- फिर वही सूरज-ढले / कुमार रवींद्र
- अलगनी पर धूप के टुकड़े / कुमार रवींद्र
- बूढ़े हो गये पान / कुमार रवींद्र
- सीपी-क्षण मुट्ठी में / कुमार रवींद्र
- वही दहलीजें पुरानी / कुमार रवींद्र
- दलदलों में खुद गड़े / कुमार रवींद्र
- आँधी में - पानी में / कुमार रवींद्र
- खोज है मीठे कुँओं की / कुमार रवींद्र
- पीठ पर सूरज पुराने / कुमार रवींद्र
- धूप-मछुए बाँधते हैं पाल / कुमार रवींद्र
- लौट आये लकड़हारे / कुमार रवींद्र
- मछुआरों के गाँव में / कुमार रवींद्र
- राख से दिन जुड़ गये / कुमार रवींद्र
- उम्र भर अंधी सुरंगें / कुमार रवींद्र
- सतिया के छापे पर / कुमार रवींद्र
- दस्तावेज़ महल के / कुमार रवींद्र
- पाँव तले रेतीले सागर / कुमार रवींद्र
- बूढ़ी गौरैया के पंख थके / कुमार रवींद्र
- पर्वत काँपते हैं / कुमार रवींद्र
- नदिया धूप बिलानी / कुमार रवींद्र
- पनघट चुप खड़े रहे / कुमार रवींद्र
- बूढ़ा है कमल-ताल / कुमार रवींद्र
- सागर रुके हैं -पोत टूटे / कुमार रवींद्र
- और नदी लौट गयी / कुमार रवींद्र
- खो गयी है सुई / कुमार रवींद्र
- रेती में नाव गड़ी / कुमार रवींद्र
- एक जमींदोज़ शहर / कुमार रवींद्र
- क्या करें शिवाले / कुमार रवींद्र
- यह सपनों की नगरी / कुमार रवींद्र
- शोर सिंदबादों के / कुमार रवींद्र
- कभी सागर-पार नावें / कुमार रवींद्र
- पंख चिड़ियों के कटे / कुमार रवींद्र
- खेल नया:आखेट / कुमार रवींद्र
- ये गुलाबी खेल / कुमार रवींद्र
- दिन हैं बचकाने / कुमार रवींद्र
- गुंबजों के खेल में / कुमार रवींद्र
- बूते थके - अपाहिज कंधे / कुमार रवींद्र
- तीन पात के ढाक / कुमार रवींद्र
- लौट आये बूढ़े जहाज पर / कुमार रवींद्र
- कैसे हो घास हरी / कुमार रवींद्र
- घर खड़े हैं सिर झुकाये / कुमार रवींद्र
- जली नदियों के किनारे / कुमार रवींद्र
- टूट बिखरे ढाई आखर / कुमार रवींद्र
- आग-पानी घोंसले में / कुमार रवींद्र
- किश्तों में बीते दिन / कुमार रवींद्र
- सीपियों के महल - ड्योढ़ियाँ शाह की / कुमार रवींद्र
- दरगाह पर भीड़ / कुमार रवींद्र
- तट अकेला हाथ बाँधे / कुमार रवींद्र
- सागर लौटा चट्टानों से / कुमार रवींद्र
- बिन बाती दिया जले / कुमार रवींद्र
- नदी बहुत दूर है / कुमार रवींद्र
- दिन हैं मनुहारों के / कुमार रवींद्र
- आग लगी पानी में / कुमार रवींद्र
- जंगल में कटे पंख / कुमार रवींद्र
- जलसे में खड़ी प्रजा / कुमार रवींद्र
- जलसे कत्लगाहों में / कुमार रवींद्र
- खून से तर झील / कुमार रवींद्र
- खंभों पर सूरज हैं बने हुए / कुमार रवींद्र
- सुग्गा क्या बोले / कुमार रवींद्र
- जलसेघर की शाम / कुमार रवींद्र
- चेहरों को खोजें / कुमार रवींद्र
- धूप की नदी / कुमार रवींद्र
- खोल दो अब नाव / कुमार रवींद्र