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+ | *[[फूल खिल जाई महँक से मुग्ध कर दी / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
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+ | *[[धूप-छाँव हार जीत के मिलान जिन्दगी / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[बदल रहल तमाम काम-काज आज गाँव के / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[व्यवहार आदमी के कतना बदल रहल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
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+ | *[[कहीं रोजे जशन मिल के मनावल जा रहल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[एक दिन ना एक दिन अइबे करी कबहूँ बहार / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[दुख के नाम-निशान रहे मत खुशियाली हर ओर / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[जबले आँख खुली ना, कइसे समझी भोर भइल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[भँवर के बीच आपन नाव खेवत जा रहल बानी / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[आज के बाजार में हर चीज बाजारू भइल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[बनते बनते बिगड़ रहल बा, अबले बनल-बनावल बात / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[कहाँ चमन में बहार बाटे वसंत आके कहाँ छिपल ना / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[जिन्दगी के सफर में मिलल साथ जब / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[भोर के सुरूज उगावे के पड़ी / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[छन-छन में अब लोगन के ईमान बदल जाता / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[जिन्दगी बन मोमबत्ती जल रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[अबो खिलला के पहिले फूल सब मुरझा रहल बाटे / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[नागिन अइसन डँसत अन्हरिया, कबहीं ना भिनसार भइल / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[गरम जमीं पर कल कन जइसन, सुख के छन गुजरल / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[लगातार पल-पल समय चल रहल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[समय फिरल कि अब वसंत आ गइल / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[जर रहल बा गाँव, घर बा जर रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[समय अइसन हवे मरहम कि अपने घाव भर जाला / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[तू याद-झरोखे आ जा तब कुछ बात बने / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[प्रीत के पाहुन पियासल जा रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] | ||
+ | *[[काहे उनका अभी खबर नइखे / सूर्यदेव पाठक 'पराग']] |
13:31, 30 मार्च 2015 के समय का अवतरण
भँवर में नाव
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रचनाकार | सूर्यदेव पाठक 'पराग' |
---|---|
प्रकाशक | भारतीय साहित्य संस्थान, गोरखपुर (उ0प्र0) |
वर्ष | 2003 |
भाषा | भोजपुरी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 64 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- श्वेतवस्त्रावृता शारदा, ज्ञान दीं / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- अतना गुमान काहे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- बहुत बा शोर भाई / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- प्यार जग के सार बाटे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- घर में सही पहचान बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- छनो भर साथ मिल जाई / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- घुट-घुट मरत बा आदमी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- ई बदरी छाई कबले / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- कतहीं चइता कतहीं फाग / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- दिया जरत बा त रौशनी बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- नाव-नदी संयोग भइल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- लोग समय के गुलाम बाटे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- वक्त काहे गँवा देल खा के / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- दरदे अबले उपहार मिलल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- बढ़त चान पर तक चढ़ल आदमी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- मौसम मुताबिक जहाँ आचरन बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- कही का करी का चली कौन राहे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- युग के वन्दन / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- शुद्ध जब विचार बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- आखिर अन्हार कबले / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- श्रेष्ठ कवि-बानी रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- चाँदनी के जोत चारो ओर बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- जवानी जोश के आगार होला / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- कहाँ ना खुशी बा, कहाँ ना जलन बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- नेक आचरन मनुष्य के दफन भइल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- उगल बाड़े चनरमा नीक घर लागे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- फूल खिल जाई महँक से मुग्ध कर दी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- गहलीं कलम लिखते लिखत रम मन गइल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- एक दिन लोहा परस पारस के पा जाई / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- धूप-छाँव हार जीत के मिलान जिन्दगी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- बदल रहल तमाम काम-काज आज गाँव के / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- व्यवहार आदमी के कतना बदल रहल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- आदमी के बन सकत बा काम से पहचान / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- कहीं रोजे जशन मिल के मनावल जा रहल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- एक दिन ना एक दिन अइबे करी कबहूँ बहार / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- दुख के नाम-निशान रहे मत खुशियाली हर ओर / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- जबले आँख खुली ना, कइसे समझी भोर भइल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- भँवर के बीच आपन नाव खेवत जा रहल बानी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- आज के बाजार में हर चीज बाजारू भइल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- बनते बनते बिगड़ रहल बा, अबले बनल-बनावल बात / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- कहाँ चमन में बहार बाटे वसंत आके कहाँ छिपल ना / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- जिन्दगी के सफर में मिलल साथ जब / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- भोर के सुरूज उगावे के पड़ी / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- छन-छन में अब लोगन के ईमान बदल जाता / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- जिन्दगी बन मोमबत्ती जल रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- अबो खिलला के पहिले फूल सब मुरझा रहल बाटे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- नागिन अइसन डँसत अन्हरिया, कबहीं ना भिनसार भइल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- गरम जमीं पर कल कन जइसन, सुख के छन गुजरल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- लगातार पल-पल समय चल रहल बा / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- समय फिरल कि अब वसंत आ गइल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- जर रहल बा गाँव, घर बा जर रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- समय अइसन हवे मरहम कि अपने घाव भर जाला / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- तू याद-झरोखे आ जा तब कुछ बात बने / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- प्रीत के पाहुन पियासल जा रहल / सूर्यदेव पाठक 'पराग'
- काहे उनका अभी खबर नइखे / सूर्यदेव पाठक 'पराग'