भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तय करो किस ओर हो / बल्ली सिंह चीमा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:27, 13 अगस्त 2011 का अवतरण
तय करो किस ओर हो
क्या आपके पास इस पुस्तक के कवर की तस्वीर है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
रचनाकार | बल्ली सिंह चीमा |
---|---|
प्रकाशक | जन संस्कइति मंच, द्वारा- इंतखाब, मल्लीताल, नैनीताल- 263 001 |
वर्ष | 1998, प्रथम संस्करण । |
भाषा | हिन्दी |
विषय | गीत और ग़ज़ल |
विधा | हिन्दी ग़ज़ल |
पृष्ठ | 78 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- क़िताब का समर्पण / बल्ली सिंह चीमा
- भूमिका (अनिल सिन्हा) / बल्ली सिंह चीमा
- अपनी बात / बल्ली सिंह चीमा
ग़ज़लें
- झोपड़ों से उठ रही आवाज़ है मेरी ग़ज़ल / बल्ली सिंह चीमा
- सब दुःखों को लील ले जो वो दवा पैदा करें / बल्ली सिंह चीमा
- डूबते वक़्त भी तिनके का सहारा है मुझे / बल्ली सिंह चीमा
- पीकर मेरा पसीना ये होने लगी हसीन / बल्ली सिंह चीमा
- यूँ तो मैं तूफ़ान से डरता रहा / बल्ली सिंह चीमा
- उस जगह कानून काला चल रहा है / बल्ली सिंह चीमा
- रूखी-सूखी खा के आधे पेट पर ज़िन्दा रहा / बल्ली सिंह चीमा
- गाँव शराबी कर दिया खुलकर बाँटे नोट / बल्ली सिंह चीमा
- जान बची लाखों पाए हैं / बल्ली सिंह चीमा
- सत्ता की गलियों तक पहुँची नारे बनकर गाँवों की बातें / बल्ली सिंह चीमा
- कुछ तो डरने लगे उनसे हम बेवज़ह / बल्ली सिंह चीमा
- ये किसको ख़बर थी कि ये बात होगी / बल्ली सिंह चीमा
- गाँव मेरा आजकल दहशतज़दा है दोस्तो / बल्ली सिंह चीमा
- कभी निराश हो आँखों को मूँदकर लेटे / बल्ली सिंह चीमा
- बकरियों में भी जान है लेकिन / बल्ली सिंह चीमा
- रंग-बिरंगा लगे जैसे बाज़ार-सा / बल्ली सिंह चीमा
- फ़क़त वोट समझे है हर आदमी को / बल्ली सिंह चीमा
- दूर क्यों हमसे उजाला इसकी भी चर्चा करो / बल्ली सिंह चीमा
- सूर्य मरने के ऐलान अपनी जगह / बल्ली सिंह चीमा
- बड़ा बेशर्म हमलावर है दुनिया हाँकने वाला / बल्ली सिंह चीमा
- संघर्षों की राह चलो तो सिर को कभी झुकाना मत / बल्ली सिंह चीमा
- शायरों का उस समय यारों होता है इम्तिहान / बल्ली सिंह चीमा
- मारा, लूटा, आग लगा दी वहशी डर के बारे में / बल्ली सिंह चीमा
- वो क्या जाने कौन बुरा है, कौन है अच्छा, आलम जी / बल्ली सिंह चीमा
- ख़ौफ़ दो रंग का मेरे गाँवों में है / बल्ली सिंह चीमा
- बर्फ़ से ढक गया है पहाड़ी नगर / बल्ली सिंह चीमा
- धूप से सर्दियों में ख़फ़ा कौन है / बल्ली सिंह चीमा
- मुद्दतों से राह पर आँखें बिछी हैं, आ कभी / बल्ली सिंह चीमा
- मूड उसका ख़राब है यारो / बल्ली सिंह चीमा
- फूल-सा जीवन था लेकिन ख़ार बनकर रह गया / बल्ली सिंह चीमा
- दुःख के जालों में उलझती जा रही है ज़िन्दगी / बल्ली सिंह चीमा
- बिगाड़ती है जो दिन-रात आदतें मेरी / बल्ली सिंह चीमा
- वो अगर बेरहम नहीं होता / बल्ली सिंह चीमा
- वो मिला था मुझे कुछ उजाले लिए / बल्ली सिंह चीमा
- तेरी आँखों के जंगल में खोया फिरे / बल्ली सिंह चीमा
- हमारी याद को चाहो तो ताक़ पर रखना / बल्ली सिंह चीमा
- नाम कोई पता न घर कोई / बल्ली सिंह चीमा
- उसने पतझड़ में कहा, मौसम सुहाना आ गया / बल्ली सिंह चीमा
- कहे है दिल कि कोई फ़ैसला तो कर, बल्ली / बल्ली सिंह चीमा
- कुछ शेर / बल्ली सिंह चीमा
गीत
- उजाले बन के छा जाएँ / बल्ली सिंह चीमा
- इसे जन्नत बनाएँगे, यही संकल्प हमारा है / बल्ली सिंह चीमा
- प्यारे मज़दूर किसान, तुझको शत्-शत् प्रणाम / बल्ली सिंह चीमा
- रोटी से अब पेट का रिश्ता चाहे जो हो जोड़ दो / बल्ली सिंह चीमा
- दावेदार, दावेदार, हम जंगल के दावेदार / बल्ली सिंह चीमा
- नौजवान उठ रहा है, उठ रहा है नौजवान / बल्ली सिंह चीमा
- पैरों में ज़ंजीरें हैं और रात अँधेरी है / बल्ली सिंह चीमा
- गर्व से कह दो कि हम तो आदमी हैं आज भी / बल्ली सिंह चीमा
- सुनि मजूरो, सुनो किसानो, वक़्त गीत ये गाए है / बल्ली सिंह चीमा
- मानवता का तिलक लगा के / बल्ली सिंह चीमा
- पेट के लिए बना तू भाड़े का सिपाही है / बल्ली सिंह चीमा
- तय करो किस ओर हो तुम / बल्ली सिंह चीमा
- दर्द फिर दिल में उठा है और तो सब ठीक है / बल्ली सिंह चीमा
- ये अभावों से उलझती, काम करती औरतें / बल्ली सिंह चीमा
- गुम-सुम, गुम-सुम मुरझाई-सी क्यों रझती हो तुम / बल्ली सिंह चीमा
- हँसते बच्चे तो लगते हैं दीवाली के दीपों जैसे / बल्ली सिंह चीमा
- हमीं ने सजाया, सँवारा भी है / बल्ली सिंह चीमा
- आप एल०डी० बैंक की ये मेहरबानी देखिए / बल्ली सिंह चीमा
- जनविरोधी ये व्यवस्था, ये हुक़ूमत न रहे / बल्ली सिंह चीमा
- शहर तो बदला-बदला-सा था, नाम वही था अमृतसर / बल्ली सिंह चीमा
- ठण्ड घटने लगी, धुन्ध छँटने लगी / बल्ली सिंह चीमा
- अब यहाँ, पल में वहाँ, कब किस पे बरसें, क्या ख़बर / बल्ली सिंह चीमा
- रात छोटी हुई, दिन बड़ा हो गया / बल्ली सिंह चीमा
- लाठी, गोली, ख़ून ही ख़ून, गरमाया है उत्तराखण्ड / बल्ली सिंह चीमा
- लफ़्फ़ाज़ो पाखण्ड नहीं अब जंग चाहिए / बल्ली सिंह चीमा
- चलो कि मंज़िल दूर नहीं, चलो कि मंज़िल दूर नहीं / बल्ली सिंह चीमा