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20:29, 29 जुलाई 2012 का अवतरण
चिन्ता
रचनाकार | अज्ञेय |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | 1942 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
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विश्वप्रिया
- छाया, छाया तुम कौन हो / अज्ञेय
- छाया! मैं तुममें किस वस्तु का अभिलाषी हूँ / अज्ञेय
- विश्व-नगर में कौन सुनेगा मेरी मूक पुकार / अज्ञेय
- सब ओर बिछे थे नीरव छाया के जाल घनेरे / अज्ञेय
- हा कि मैं खो जा सकूँ / अज्ञेय
- तेरी आँखों में क्या मद है जिसको पीने आता हूँ / अज्ञेय
- आ जाना प्रिय आ जाना / अज्ञेय
- आज तुम से मिल सकूँगा था मुझे विश्वास / अज्ञेय
- ओ उपास्य! तू जान कि कैसे अब होगा निर्वाह / अज्ञेय
- व्यथा मौन / अज्ञेय
- मैं अपने को एकदम / अज्ञेय
- मेरे उर ने शिशिर-हृदय से सीखा करना प्यार / अज्ञेय
- गए दिनों में औरों से भी मैं ने प्रणय किया है / अज्ञेय
- फूला कहीं एक फूल / अज्ञेय
- जाने किस दूर वन-प्रांतर से उड़ कर / अज्ञेय
- इस कोलाहल भरे जगत में / अज्ञेय
- प्राण तुम आज चिंतित क्यों हो / अज्ञेय
- तुम्हारा जो प्रेम अनंत है / अज्ञेय
- संसार का एकत्व / अज्ञेय
- कैसे कहूँ कि तेरे पास आते समय / अज्ञेय
- हमारा तुम्हारा प्रणय / अज्ञेय
- तुम गूजरी हो / अज्ञेय
- इतने काल से मैं / अज्ञेय
- प्रिये तनिक बाहर तो आओ / अज्ञेय
- प्राण-वधूटी / अज्ञेय
- विद्युद्गति में / अज्ञेय
- आओ एक खेल खेलें / अज्ञेय
- वधुके उठो / अज्ञेय
- सुमुखि मुझको शक्ति दे / अज्ञेय
- जिह्वा ही पर नाम रहे / अज्ञेय
- ये सब कितने नीरस जीवन के लक्षण हैं / अज्ञेय
- मेरे मित्र, मेरे सखा / अज्ञेय
- इस विचित्र खेल का अंत / अज्ञेय
- आकाश में एक क्षुद्र पक्षी / अज्ञेय
- अंत कब कहाँ / अज्ञेय
- तुम्हीं हो क्या वह / अज्ञेय
- मन मुझ को कहता है / अज्ञेय
- मैं हूँ खड़ा देखता / अज्ञेय
- तोड़ दूँगा मैं तुम्हारा आज यह अभिमान / अज्ञेय
- तितली, तितली / अज्ञेय
- जब तुम हँसती हो / अज्ञेय
- जान लिया तब प्रेम रहा क्या / अज्ञेय
- जब मैं तुमसे विलग होता हूँ / अज्ञेय
- मैंने अपने आप को / अज्ञेय
- हा वह शून्य / अज्ञेय
- तुम जो सूर्य को जीवन देती हो / अज्ञेय
- तुम देवी हो नहीं / अज्ञेय
- तुम में यह क्या है / अज्ञेय
- वह इतना नहीं / अज्ञेय
- मैं अब सत्य को छिपा नहीं सकता / अज्ञेय
- यह छिपाए छिपता नहीं / अज्ञेय
- जीवन का मालिन्य / अज्ञेय
- हम एक हैं / अज्ञेय
- यह एक कल्पना है / अज्ञेय
- अपने प्रेम के उद्वेग में / अज्ञेय
- छलने! तुम्हारी मुद्रा खोटी है / अज्ञेय
- चुक गया दिन / अज्ञेय
- इंदु तुल्य शोभने / अज्ञेय
- किंतु छलूँ क्यों अपने को फिर / अज्ञेय
- मैं था कलाकार / अज्ञेय
- मैं तुम्हें किसी भी वस्तु की / अज्ञेय
- इस प्रलयंकर कोलाहल में / अज्ञेय
- बाहर थी तब राका छिटकी / अज्ञेय
- वह प्रेत है / अज्ञेय
- क्षण भर पहले ही आ जाते / अज्ञेय
- देवता / अज्ञेय
- मैं अपने अपनेपन से / अज्ञेय
- / अज्ञेय
- / अज्ञेय
- / अज्ञेय
- / अज्ञेय
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