जन्म | 01 अप्रैल 1952 |
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जन्म स्थान | पंजाब |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
मधुभूषण शर्मा 'मधुर' / परिचय |
<sort order="asc" class="ul"> जो सर को उठाना नहीं छोड़ सकता / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' सहर के जो होने पे रोया था सपना / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' कभी इस कदर भी सँवरना नहीं / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' घरों की कभी वो बनावट न देखी / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' लिखा दिल पे जब दर्द का हर्फ़ पिघले / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' हो न जब नाआश्ना वो आश्नाई आपकी / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' सनम यह न देखो कहां क्या कमी है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' जब फ़िज़ा में गूंजती हो बाग़बां की दास्तां / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' ख़फ़ा जिनसे अक्सर चमनज़ार होंगे / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' समन्दर का छोटा-सा क़तरा सही / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' देख अपनी बदनसीबी दिल यूं धड़कता यारो / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' ऐ दिल नहीं ये मंज़िल रुकना यहां नहीं है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' न हसरत हो कोई न सपना ऐ दुनिया / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' हुक़ूमतें बदल गईं उसी का यह कमाल है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
ये बादल अँधेरे बढ़ाएँगे लेकिन / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' अगर आप होते भुलाने के क़ाबिल / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' हज़ार टुकड़े हों मगर चलो किसी तरह से भी / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' आशिकी से बहुत हूं परीशां मगर / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' नहीं वाद कोई यहां निर्विवादित / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' हसीन ख़ुद को शाम से जवां सहर से देखिए / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' कई लोग ऐसे मिलें इस जहां में / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' ले हाथों में अपने जो हल लिख रहा है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' जिन्हें ज़िन्दगी में बहुत ग़म मिलें / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' यहां सात पर्दों में हर शै छुपी है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' बुना हुआ फ़रेब का न कोई जाल फेंकिए / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' पढ़ेगी जब तलक दुनिया लिखा दीवान ग़ालिब का / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' जिस ज़मीं से तू जुड़ा है बस उसी की बात कर / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' इक बार क्या मिले हैं किसी रोशनी से हम / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' ख़ता है वफ़ा तो सज़ा दीजिए / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' सियासत की जो भी ज़बाँ जानता है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' मेरे सनम के पास जो कहां वो ताज़गी मिले / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' ज़ेहन में रहे इक अजब खलबली सी / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' वहशतों की है अगर कुछ कातिलों से दोस्ती / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' न बस में किसी के ये हालात होंगे / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' वही रोज़ मिलना वही चार बातें / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' आग-सी इक बुझाने लगा हूं / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' ख़ुदा इस शहर को ये क्या हो चला है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' अगर आदमी ख़ुद से हारा न होता / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' जब से हम लोग ज़मीं पे हैं / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' पत्थरों में भी बनाता राह पानी देखिए / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' मुख़ातिब बस ग़मे-दिल हो तो ऐसा हो भी सकता है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' बुझा दो चिराग़े-मुहब्बत मुझे इन फ़रेबी उजालों की क्या है ज़रूरत , / मधुभूषण शर्मा 'मधुर' </sort>