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बर्गे-नै / नासिर काज़मी
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बर्गे-नै
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रचनाकार | नासिर काज़मी |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | उर्दू |
विषय | शायरी |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 112 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- ऐतबारे-नग़मा / नासिर काज़मी
- पहुंचे गोर किनारे हम / नासिर काज़मी
- देख महब्बत का दस्तूर / नासिर काज़मी
- कोई जिये या कोई मरे / नासिर काज़मी
- मायूस न हो उदास राही / नासिर काज़मी
- इश्क़ में जीत हुई या मात / नासिर काज़मी
- ओ मेरे मसरूफ ख़ुदा / नासिर काज़मी
- कुछ कह के ख़ामोश हो गये हम / नासिर काज़मी
- तन्हा ऐश के ख़्वाब न बुन / नासिर काज़मी
- जब से देखा है तेरे हाथ का चांद / नासिर काज़मी
- चांद निकला तो हमने वहशत में / नासिर काज़मी
- हर अदा आबे-रवां की लहर है / नासिर काज़मी
- सदा-ए-रफ्तगां फिर दिल से गुज़री / नासिर काज़मी
- दम घुटने लगा है वज़ए-ग़म से / नासिर काज़मी
- चमन दर चमन वी रमक अब कहां / नासिर काज़मी
- तारे गिनवाए या सहर दिखलाए / नासिर काज़मी
- आंख में हैं दुख भरे फ़साने / नासिर काज़मी
- खत्म हुआ तारों का राग / नासिर काज़मी
- दिल फिर आये हैं बाग़ में गुल के / नासिर काज़मी
- रंग बरसात ने भरे कुछ तो / नासिर काज़मी
- क़हर से देख न हर आन मुझे / नासिर काज़मी
- ये भी क्या शामे-मुलाक़ात आई / नासिर काज़मी
- आईना लेके सबा फिर आई / नासिर काज़मी
- कौन इस राह से गुज़रता है / नासिर काज़मी
- शहर-दर-शहर घर जलाये गये / नासिर काज़मी
- ख़ामोशी उंगलियां चटखा रही है / नासिर काज़मी
- जब तलक दम रहा है आंखों में / नासिर काज़मी
- किसके जल्वों की धूप बरसी है / नासिर काज़मी
- शबनम-आलूद पलक याद आई / नासिर काज़मी
- लदवा में रात हमने क्या देखा / नासिर काज़मी
- तिरे मिलने को बेकल हो गये हैं / नासिर काज़मी
- न आंखें ही बरसीं न तुम ही मिले / नासिर काज़मी
- ये शब ये ख़यालो-ख़्वाब तेरे / नासिर काज़मी
- नाज़े-बेगानगी में क्या कुछ था / नासिर काज़मी
- दिल धड़कने का सबब याद आया / नासिर काज़मी
- रंग सुब्हो के राग शामों के / नासिर काज़मी
- बेमिन्नते-ख़िज़्रे-राह रहना / नासिर काज़मी
- लबे-मोजिज़-बयां ने छीन लिया / नासिर काज़मी
- क्यों ग़मे-रफ्तगां करे कोई / नासिर काज़मी
- सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा / नासिर काज़मी
- हुस्न को दिल में छुपा कर देखो / नासिर काज़मी
- आह फिर नग़मा बना चाहती है / नासिर काज़मी
- क्या दिन मुझे इश्क़ ने दिखाये / नासिर काज़मी
- याद आता है रोज़ो-शब कोई / नासिर काज़मी
- करता उसे बेकरार कुछ देर / नासिर काज़मी
- बेहिजाबाना अंजुमन में आ / नासिर काज़मी
- फ़िक्र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है / नासिर काज़मी
- नित नयी सोच में लगे रहना / नासिर काज़मी
- यास में जब कभी आंसू निकला / नासिर काज़मी
- ठहरा था वो गुल-अज़ार कुछ देर / नासिर काज़मी
- किसे देखें कहां देखा न जाये / नासिर काज़मी
- सफ़र-ए-मंज़िल-ए-शब याद नहीं / नासिर काज़मी
- वा हुआ फिर दरे-मैखान-ए-गुल / नासिर काज़मी
- इश्क़ जब जमजमा-पैरा होगा / नासिर काज़मी
- कुछ तो एहसास-ए-ज़ियाँ था पहले / नासिर काज़मी
- साज़-ए-हस्ती की सदा ग़ौर से सुन / नासिर काज़मी
- उदासियों का समां महफ़िलों में छोड़ गई / नासिर काज़मी
- हासिल-ए-इश्क़ तिरा हुस्न-ए-पशीमाँ ही सही / नासिर काज़मी
- बेगानावार उनसे मुलाक़ात हो तो हो / नासिर काज़मी
- गली गली आबाद थी जिन से कहाँ गए वो लोग / नासिर काज़मी
- ग़म-फ़ुर्सती-ए-ख़्वाब-ए-तरब याद रहेगी / नासिर काज़मी
- दौर-ए-फ़लक जब दोहराता है मौसम-ए-गुल की रातों को / नासिर काज़मी
- तेरी ज़ुल्फ़ों के बिखरने का सबब है कोई / नासिर काज़मी
- क़फ़स को चमन से सिवा जानते हैं / नासिर काज़मी
- ये रात तुम्हारी है चमकते रहो तारो / नासिर काज़मी
- मुद्दत हुई कि सैरे-चमन को तरस गये / नासिर काज़मी
- रंग दिखलाती है क्या क्या उम्र की रफ्तार भी / नासिर काज़मी
- होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी / नासिर काज़मी
- गिरिफ़्ता-दिल हैं बहुत / नासिर काज़मी
- अव्वलीं चाँद ने क्या बात सुझाई मुझ को / नासिर काज़मी
- ख़याल-ए-तर्क-ए-तमन्ना न कर सके तू भी / नासिर काज़मी
- किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे / नासिर काज़मी
- महरूम-ए-ख़्वाब दीदा-ए-हैराँ न था कभी / नासिर काज़मी
- ये कह रहा है दयारे तरब का नज़्ज़ारा / नासिर काज़मी
- कभी कभी तो जज़्बे-इश्क़ मात खा के रह गया / नासिर काज़मी
- बसा हुआ है ख़यालों में कोई पैकरे-नाज़ / नासिर काज़मी
- वो इस अदा से जो आए तो क्यूँ भला न लगे / नासिर काज़मी
- नसीब-ए-इश्क़ दिल-ए-बे-क़रार भी तो नहीं / नासिर काज़मी
- तिरे ख़याल से लो दे उठी है तन्हाई / नासिर काज़मी
- दिन ढला रात फिर आ गई सो रहो सो रहो / नासिर काज़मी