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बावरिया बरसाने वाली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:27, 1 फ़रवरी 2009 का अवतरण
- व्रजमंडल नभ में उमड़-घुमड़ घिर आए आषाढ़ी बादल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- थे नाप रहे नभ ओर-छोर चढ़ धारधार पर धाराधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पी कहाँ पी कहाँ रटे जा रहा था पपीहरा उत्पाती / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- भर रही अंग में थी अनंग-मद सिहर लहर पुरवईया की / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सिक्ता कर रही सुरंग चूनरी ऋतु पावसी निगोड़ी थी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- बोली "सुधि करो प्राण !कहते थे हमने देखा है सपना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते "तव अरुण राग पद से भू अम्बर छपना देखा था / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "धूसरित ग्रीष्म गगन या सरस बरसता पावस हो। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम मसृण पाणि मम पड़ सहला सो गए प्राण ले मधु सपना। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "अधर-रस-सुधा पिला" तन्वंगी ने तब था पूछा । / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था तुमने ही "चाहता नहीं कुछ और प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण पूछा तुमने "क्यों मौन खड़ी ब्रजबाला हो? / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे "मौन उषा गवाक्ष से प्राण! झांकता सविता हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण पूछा तुमने " वह पीर प्रिये क्या होती है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण थी अंकगता किसलय काया अधखुले नयन। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- भूलते न क्षण प्रियतम इंगित से तुमने मुझे बुलाया था। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा "क्यों स्नेह-सलिल संकुल तेरे कुवलय लोचन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा "क्यों उर्मिल उदधि चंद्रकर झूम झूम चूमता सदा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा था " क्यों अन्तक करस्थ सायक सहलाता मृगछौना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा तुमने अति पास बैठ " अब भी न जान पाया आली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कुञ्ज से उमड़-घुमड़ देखती स्निग्ध श्यामल जलधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण ! गोविन्द-गीत 'पंकिल' स्वर करती थी गायन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण ! था कहा कभीं "चिर अमर वल्लभे वे मधुक्षण / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कर्णावलम्बि कम्पित कुंडल स्वेदाम्बु-सिक्त मनसिज-मथिता / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अगणित मधु प्रणय-केलि-क्षणिकाएं मानस पट पर लहरातीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तेरे लालित विहंग मुझको दुलरा करते पवानारोहण / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- परिमल-सम्पुट पिक-स्वर-गुंजित उन्मन मीठे तीसरे पहर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- मम उरज प्रान्त पर शांत बाल सा रख कपोल थे किए शयन/ प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कैसे कहकर थे फूट पड़े छोडो न अकेला मुझे प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण कहते थे तुम क्यों बात-बात में हंसती हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- प्रिय ! इस विस्मित नयना को कब आ बाँहों में कस जाओगे / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- मम-अधर दबा करते थे सी-सी ध्वनित सम्पुटक चुम्बन जब / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो अंक ले मुझे कहा था अभीं अभीं चंदा निकला है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "शुक्र झांकता न मलिना उडुगण की चटकारी है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "पिंजरित कीर मूक है हरित पंख में चंचु छिपा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुमने ही तो था कहा प्राण! "सखि कितना कोमल तेरा तन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे प्राण "अरी, तन्वी! मैं कृष कटि पर हो रही विकल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा सुमन-मेखला-वहन से बढ़ती श्वांस समीर प्रबल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- क्या कहूं आज ही विगत निशा के सपने में आये थे प्रिय / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- निज इन्द्रनीलमणि-सा श्यामल कर में ले उत्तरीय-कोना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अधरों पर चाहा हास किन्तु लोचन में उमड़ गया पानी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! कहते गदगद "प्राणेश्वरि, तुम जीवनधन हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! कहते "मृदुले! तारुण्य न फ़िर फ़िर आता है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "प्रिये! लहरते सुमन ज्यों फ़ेनिल-सरिता बरसाती / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा विहँस "मृगनयनी! मेरा कर हथेलियों में ले लो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! कहते थे तुम,"बस प्राणप्रिये! इतना करना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था,"कभीं निभृत में सजनी! तेरा घूँघट-पट। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- प्रिय! झुका कदम्ब-विटप-शाखा तुम स्थित थे कालिन्दी-तट पर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था, "प्रेम-पर्व पर पंकिल उल्कापात न हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- क्या नहीं कहा प्रिय! "मंजु-अँगुलियाँ खेलें प्रेयसि-अलकों में / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे हे प्रिय! “स्खलित-अम्बरा मुग्ध-यौवना की जय हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! वह भी कैसी मनहरिणी निशा अनूठी थी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- “पिंडलि पर आँकू”, कहा श्याम “लतिका दल में खद्योत लिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "पयोधर पर कर मेरे नील-झीन-कञ्चुकी धरें / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- उचटी अनमनी प्राणधन! जब मैं विकल कर रही थी रोदन। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते "इस प्रणयी से पूछो क्यों व्योम जलद से भर जाता। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कैसे भूलूँ प्रिय, कहते थे ”ये बड़े लालची हैं लोचन । / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते "जब सजनि! सजल घन में छिपती-दुरती रजनीश-कला। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- चाहती मौन हो रहूँ कहूँ प्रिय तुमसे उर-उच्छ्वास नहीं। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- स्मित सिहर कमल कोमल कपोल पर मल प्रसून-परिमल ‘पंकिल’ / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम जिसके हित नित रहे विकल जिसकी दिन-रात प्रतीक्षा थी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे प्रिय! ”जब सिन्दूरी सन्ध्या में उमगी मधुबाला / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा ‘प्रिये’ ‘पंकिल’ प्रणयी की तरूण वयस बीतती नहीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! पूछा हमने ‘प्रिय! जीवन कैसा नाटक है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा ‘यह कैसा द्वन्द्व, केलि चल रही कहीं है कोहबर में। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था प्रिय! तुमने “थी मधुर गीत गा रही प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण वह दिवस गगन में घिरीं घटायें थी काली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- विस्मृत न हाय होतीं प्रियतम वे विरह-वेदना की घड़ियाँ / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे "एक ओर संसृति-संस्तुत प्रतिमा-पुराण-ईश्वर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कितने दुलार से कहते थे प्रिय! “हमनें पा लीं हैं राहें / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- देखते मनोहर सरि जन में हिलता पद-पिंडलि छूता जल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- चमकता नयन में था काजल बादल-सी प्राण! हुई पुतली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा ”प्रिये! मत ठुकराओ हो प्राय! प्रेरणा-आस तुम्हीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम रहे भाल पर झुके प्राण! मैं रही विनिद्रा-बीच पड़ी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- ”तेरी सुषमा-रस पियें“, कहा, “बस यही प्राण की प्यास रहे / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कैसे विस्मृत कर दूँ प्रिय! जो उस निशि की मधुर कहानी है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अभिरामा निद्रा की गोदी में सोये तुम कर बन्द नयन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- हम डाल आँख में आँख परस्पर लगे निरखने रूद्ध-गिरा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- काँपते पाणि में उठा लिया प्रिय तुमने फिर रस-भरित चषक / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! पूछा मैंने ”प्रिय! क्यों हॅंसता है सदा सुमन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- नव विटप-वृन्त पर गुम्फित सौरभ- नमिता कमनीया लतिका / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- आ रहा स्मरण प्रियतम! कहते थे ”सुमुखि! स्वर्ग का नन्दन वन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते ”मंथर मृदु मलयानिल मघवा को सुलभ कहाँ सजनी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा, “रम्य हृदयेश्वरि! राका-पति रत्नाकर-रहस मिलन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- दृगगोचर कब होंगे प्रियतम! अब अलस सिहरती काया है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अगणित उडुगण-उज्ज्वल-अक्षर में व्योम भेजता संदेशा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- रंजित-सुरेश-धनु शरद-पूर्णिमा उदधि, उषा, विहंग-कलरव / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सौन्दर्य-सृष्टि-संवेदन में कितना संजीवन अमृत है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कर रहे निवेदन थे प्रियतम! “वह प्राण नाटिका रच डालो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा करते थे सकरुण ”सुन्दरि! दुख निर्मूल करो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे, ”मेरी दृगपुतरी! मुझको न स्वयं से दूर करो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- /प्रेम नारायण 'पंकिल'
- / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- / प्रेम नारायण 'पंकिल'