रेत रोॅ राग
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रचनाकार | अमरेन्द्र |
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प्रकाशक | अंगिका संसद, भागलपुर |
वर्ष | 1999 |
भाषा | अंगिका |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 63 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- गिरबी राखलोॅ छै महाजन कन मुकद्दर हमरोॅ / अमरेन्द्र
- सबके एक्के कहानी रहलोॅ छै / अमरेन्द्र
- गाबी केॅ गेलै भी सब छेलै जे गाबैवाला / अमरेन्द्र
- हम्मैं जों समझै छियै देश केॅ ई घर हमरोॅ / अमरेन्द्र
- हमरोॅ टुटलोॅ ई मड़ैया छेकै महल हमरोॅ / अमरेन्द्र
- हमरा एक दोस्त छै जहिया सें हीं शाही मिललोॅ / अमरेन्द्र
- चोरी गेलोॅ की कभी ऐतौं बौआबोॅ कतनौ / अमरेन्द्र
- ओकरोॅ सीन्है में जबेॅ दिल केॅ ने पैलेॅ होतै / अमरेन्द्र
- वहीं रावणोॅ केॅ संहारौ भी पारेॅ / अमरेन्द्र
- एक एक लोगोॅ केरोॅ पीछू लागलोॅ ईश्वर कत्तेॅ छै / अमरेन्द्र
- सौन बितला पेॅ वही रं के घटा की ऐतै / अमरेन्द्र
- रेत सें निकली कहीं की यहू धारा मिलतै / अमरेन्द्र
- पूछोॅ कैन्हें हाथ छै कर्रोॅ / अमरेन्द्र
- कौनें ओझागुनी करी जाय छै / अमरेन्द्र
- जिन्दगी लागै इक समन्दर रं / अमरेन्द्र
- तोहरे लेॅ रखलेॅ छेलाँ भाव केॅ जोगारी केॅ / अमरेन्द्र
- के छेलै बैठां हमें केकरा पुकारी एतियै / अमरेन्द्र
- लम्बा सफर सें केन्हौं घबराय तों नै जइयोॅ / अमरेन्द्र
- केन्हों चमचम सजैली होली चाँदनी / अमरेन्द्र
- ई तेॅ मालूम छेलै हमरौ पर सितम होतै / अमरेन्द्र
- ओ आ पाठ पढ़ाबोॅ नै अमरेन्दर केॅ / अमरेन्द्र
- तोरै पेॅ खाली मरलै ओकरोॅ पता नै हमरा / अमरेन्द्र
- दुसरोॅ सुख चुनियै तेॅ पहलोॅ वाला गिरलोॅ गेलै / अमरेन्द्र
- समझौं होतोॅ ई जिनगी काशी रं / अमरेन्द्र
- देखलौं दोस्ती, छलना छै / अमरेन्द्र
- जेना जेना केॅ हमरोॅ देह खमसलोॅ गेलै / अमरेन्द्र
- आरो रात कारोॅ होतौं दीया जलैलेॅ रहियोॅ / अमरेन्द्र
- है बस्ती में भाँगोॅ सें भकुवैलोॅ सबटा लोग लगै / अमरेन्द्र
- कुछ तेॅ तकदीर रोॅ दीवार उठाबै में छेलै / अमरेन्द्र
- इज्जत राखबोॅ भारो छै / अमरेन्द्र
- सरकारे देलकै जोगबारी ठामे ठाम / अमरेन्द्र
- बिंदिया चूड़ी कंगन आरो पायल छै / अमरेन्द्र
- सूर्ये नाँखी जलले चल / अमरेन्द्र
- दूरोॅ से देखोँ तेँ कुमुदोॅ ई कमल लागै छै / अमरेन्द्र
- हमरोँ लोगे तेँ यहाँ सब्भे केॅ पारी देलकै / अमरेन्द्र
- सबसें बड़ोॅ मनुख छौं सबके आगू में तों झुकलेॅ जो / अमरेन्द्र
- धर्मयुद्ध में अबकी दुर्योधन सें कृष्णो माँत लगै / अमरेन्द्र
- आँख केॅ नींद हमेशे लेॅ जे आबी गेलै / अमरेन्द्र
- गाँव नै गाँब आरो शहरो शहर लागै छै / अमरेन्द्र
- है मरूभूमि छेकै केकरो की पता ऐतै / अमरेन्द्र
- जिन्दगी केकरा लेॅ जोगैलोॅ छी / अमरेन्द्र
- लोग पूजै छै यहाँ आदमी केॅ मारी केॅ / अमरेन्द्र
- आय जकरा सें सौंसे देश असम लागै छै / अमरेन्द्र
- रुठलोॅ रुठलोॅ सब्भे जल छै / अमरेन्द्र
- दुख के सब आसपास रेॅहै छै / अमरेन्द्र
- खूब इठलाय लेॅ आकाशोॅ में पानी में अभी / अमरेन्द्र
- नींद में कुंभकरन छै तेॅ जगाबौ तेॅ जरा / अमरेन्द्र
- भूत कविता के भयंकर ई भगाबे लेॅ पड़ेॅ / अमरेन्द्र
- हेनोॅ डपटी केॅ नै महफिल सें निकालोॅ हमरा / अमरेन्द्र