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दर्द बस्ती का / विनोद तिवारी
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दर्द बस्ती का
रचनाकार | विनोद तिवारी |
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प्रकाशक | नीलेश प्रकाशन,कृष्ण नगर,दिल्ली-५१ |
वर्ष | १९८४ |
भाषा | हिन्दी |
विषय | हिन्दी ग़ज़ल संकलन |
विधा | |
पृष्ठ | ८० |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- टूटती है सदी की ख़ामोशी / विनोद तिवारी
- एक अम्लान सूर्य होता है / विनोद तिवारी
- हम बदलते वक़्त की आवाज़ हैं / विनोद तिवारी
- तेज़ धूप है तुम करते हो हमसे मधुमासों की बात / विनोद तिवारी
- भूख से बेहाल प्यासा हर प्रदेश / विनोद तिवारी
- रात रोते हुए कटी यारो / विनोद तिवारी
- एक जान दुख इतने सारे / विनोद तिवारी
- जिन लोगों ने पत्थर मारे / विनोद तिवारी
- ऊबड़-खाबड़ रस्ता जीवन इच्छाओं की गठरी सर / विनोद तिवारी
- हो भले ही जाए सत्ता मांसाहारी / विनोद तिवारी
- भावना विकलाँग हो कर जी रही है / विनोद तिवारी
- क्या करे आदमी जब न मंज़िल मिले / तिवारी
- भीड़ में ऐसे कोई इंसान की बातें करे / विनोद तिवारी
- जीना है तो बदलते रहो मौसमों के साथ/ विनोद तिवारी
- आँखें तो ढूँढती रहीं सपन-सपन-सपन / विनोद तिवारी
- इस शहर की हर गली में बस रहे बीमार लोग / विनोद तिवारी
- ज़िंदगी जीने का कोई तो बहाना चाहिए / विनोद तिवारी
- ख़ूब बरसे मेघ सागर के क़रीब / विनोद तिवारी
- आपको तो है महज़ बढ़िया कहानी की तलाश / विनोद तिवारी
- पूछना मत दोस्त मुझसे गीत क्योँ गाते हैं लोग / विनोद तिवारी
- हम अलग-थलग रहे / विनोद तिवारी
- बाहर चुप है अन्दर चुप / विनोद तिवारी
- हमने तमाम उम्र महज़ काम ये किया / विनोद तिवारी
- सड़कें भरी जलूस की आहो-कराह से / विनोद तिवारी
- सिंधु के विस्तार में सम्मुख कई मंझधार हैं / विनोद तिवारी
- सुख बड़े यत्न से पाए भी तो क्षणभर के मिले / विनोद तिवारी
- ये उदासी से भरी बोझल फ़िज़ा / विनोद तिवारी
- हिस्से में आई है यूँ भी राख चन्द मीठे सपनों की / विनोद तिवारी
- कुछ विरासत थी कुछ कमाए भी / विनोद तिवारी
- उनकी हर रात-जूही फूल हुआ करती है / विनोद तिवारी
- रात के सुनसान मेँ मिलती है आग / विनोद तिवारी
- तुम्हारे कोष में वक्तव्य तो सुनहरे हैं / विनोद तिवारी
- आपके झूठे सहारों का भरम टूट गया / विनोद तिवारी
- रास्तों के घुमाव देख लिए / विनोद तिवारी
- ग़लत है आग से कह दें पड़ेगा काम नहीं / विनोद तिवारी
- मावस छाई दसों दिशा मेँ कब होगा उजियार यहाँ / विनोद तिवारी
- कुछ इस क़दर ग़ुबार भरे दिन हैं आजकल / विनोद तिवारी
- क्या करें और कहाँ जाएँ बताए कोई / विनोद तिवारी
- कभी तो जागेहगा वैताल देखते रहिए / विनोद तिवारी
- कह दो धन से बल से शोहरत हासिल करने वालों से / विनोद तिवारी
- किताब खोले कभी यूँ ही सोचता हूँ मैं / विनोद तिवारी
- सुबह बनने चली दोपहर / विनोद तिवारी
- दुनिया मस्त खिलौने पाकर हम सन्नाटा बुनते हैं / विनोद तिवारी
- कहीं भी लेश अपनापन नहीं है / विनोद तिवारी
- गुलदस्तों में कुछ् कनेर के फूल बचे बीमारों से / विनोद तिवारी
- किसी भी रात जब क़ाग़ज़-कलम उठाता हूँ / विनोद तिवारी
- मिला जो यान वो टूटा हुआ मिला मुझको / विनोद तिवारी
- रास्तों पर हर जगह परछाइयाँ बिखरी हुईं / विनोद तिवारी
- हमारी क़ौम का इतिहास तो पुराना था / विनोद तिवारी
- अब चलो मेहनतकशों के गीत गाएँ / विनोद तिवारी
- लिख गया नारे कोई दीवार पर / विनोद तिवारी
- जीए तो आपके हक़ में रहे दुआ करते / विनोद तिवारी
- कामुकों का गाँव बेवा का शबाब / विनोद तिवारी
- छा गए हैं आज फिर बादल घने / विनोद तिवारी
- ज़मीन पाँव तले आसमान सर पर है / विनोद तिवारी
- काम सब ठप है कारख़ानों में / विनोद तिवारी
- आँधियों से थे अनमने तिनके / विनोद तिवारी
- / विनोद तिवारी
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