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+ | * [[कभी बर्बाद होता है कभी आबाद होता है / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[कभी उल्फ़त का किस्सा खोल कर कहना ही पड़ता है / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[न ज़िन्दगी ही में मिल सकी है न मर्ग पर ही खुशी मिलेगी / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[लुत्फ़ ख़ुदी यही है कि शान-ए-बक़ा रहूँ / रतन पंडोरवी]] | ||
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+ | * [[वो रूए-पुरइताब दिखा कर चले गये / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[इक सितमगर ने मुझे आज बुला भेजा है / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[चश्मे-बातिन जो खुली शाने-हक़ीक़त देखी / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[पहुंचे न जो मुराद को वो मुद्दआ हूँ मैं / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[आज इस अंदाज़ से भड़की है मेरे दिल में आग / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[सितम की इंतिहा है और मैं हूँ / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[वफूरे-शौक़ से राहे-वफ़ा में नक़्शे-पा बन जा / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[कौन जाने इंतिहाए-दर्दे-दिल / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[मैं हूँ यादे-दिलरुबा है शब की तन्हाई भी है / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[ये तो माना क़ाबिले-अज़मत है परवाने की ख़ाक / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[घटा आ गयी झूम कर आसमां पर / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[ज़ेरे-ज़मीं कभी, भी सिद्रा-नशीं हूँ मैं / रतन पंडोरवी]] | ||
+ | * [[बक़ा का लुत्फ भी तो मौत की मंज़िल से उठता है / रतन पंडोरवी]] |
11:11, 13 अगस्त 2018 का अवतरण
हुस्ने-नज़र
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रचनाकार | रतन पंडोरवी |
---|---|
प्रकाशक | दर्पण पुब्लिकेशन्स, पठानकोट |
वर्ष | 2009 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | शायरी |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | |
विविध |
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इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- दिल शाहजहानपुरी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- नूह नारवी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- अल्लामा मुनव्वर लखनवी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- अल्लामा-ए-दौरां डॉ. अंदलीब शादानी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- जनाब आबिद शाहजहानपुरी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- मुंशी तिलोक चंद महरूम / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- प्रो आल अहमद सरूर / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- जनाब नज़्म आफंदी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- प्रो रशीद अहमद सिद्दीक़ी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- जनाब वामिक जौनपुरी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- डॉ. सय्यद लतीफ़ हुसैन अदीब / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- द ट्रिब्यून (अख़बार) / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- डॉ. ज्ञान चंद / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- जनाब हावी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- जनाब शिहाब सरमदी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- जनाब तबस्सुम अलीपुरी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- सय्यदा अंदलीब ज़ुहरा / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- प्रो निसार अटावी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- हज़रत नासिर करनूली / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- हज़रत आलम युसूफ जाफ़री रहमानी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- हज़रत शिफ़ा ग्वालियारी / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- अल्लामा तारा चरण रस्तोगी ताहिर / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- शायर, जोगी, ज्योतिषी / राजेन्द्र नाथ रहबर / हुस्ने-नज़र / रतन पंडोरवी
- अक़्ल वाले क्या समझ सकते हैं दीवाने की बात / रतन पंडोरवी
- क्या तिरी दरिया दिली है ऐ-खुदा मेरे लिये / रतन पंडोरवी
- शबे-फ़ुर्कत थे फ़क़त दो ही सहारे मुझ को / रतन पंडोरवी
- ख़ुदाया हुस्न वालों पर इनायत ये भी की होती / रतन पंडोरवी
- जब अपनी ज़िन्दगी तुम हो फिर उस का मुद्दआ तुम हो / रतन पंडोरवी
- मैं महवे-खुदा तू शाने-ख़ुदा मैं और नहीं तू और नहीं / रतन पंडोरवी
- बहार आई खिले गुल हाय रंगी लालाज़ारों में / रतन पंडोरवी
- आ गई आहे-शररबार ज़बां तक आखिर / रतन पंडोरवी
- दीवानगीए-दिल की तो अब हद नहीं कहीं / रतन पंडोरवी
- मौजों ने हाथ दे के उभारा कभी कभी / रतन पंडोरवी
- पी लिया जब से तिरी तेगे-अदा का पानी / रतन पंडोरवी
- रो रो के हम ने फर्द-ए-मआसी को धो दिया / रतन पंडोरवी
- मैं तेरी खोज में अल्लाह के घर तक पहुंचा / रतन पंडोरवी
- हम पहुंच तो गये हैं दरे-यार तक / रतन पंडोरवी
- कभी बर्बाद होता है कभी आबाद होता है / रतन पंडोरवी
- कभी उल्फ़त का किस्सा खोल कर कहना ही पड़ता है / रतन पंडोरवी
- न ज़िन्दगी ही में मिल सकी है न मर्ग पर ही खुशी मिलेगी / रतन पंडोरवी
- लुत्फ़ ख़ुदी यही है कि शान-ए-बक़ा रहूँ / रतन पंडोरवी
- इश्क़ में आती है मंज़िल एक और / रतन पंडोरवी
- वो रूए-पुरइताब दिखा कर चले गये / रतन पंडोरवी
- इक सितमगर ने मुझे आज बुला भेजा है / रतन पंडोरवी
- चश्मे-बातिन जो खुली शाने-हक़ीक़त देखी / रतन पंडोरवी
- पहुंचे न जो मुराद को वो मुद्दआ हूँ मैं / रतन पंडोरवी
- आज इस अंदाज़ से भड़की है मेरे दिल में आग / रतन पंडोरवी
- सितम की इंतिहा है और मैं हूँ / रतन पंडोरवी
- वफूरे-शौक़ से राहे-वफ़ा में नक़्शे-पा बन जा / रतन पंडोरवी
- कौन जाने इंतिहाए-दर्दे-दिल / रतन पंडोरवी
- मैं हूँ यादे-दिलरुबा है शब की तन्हाई भी है / रतन पंडोरवी
- ये तो माना क़ाबिले-अज़मत है परवाने की ख़ाक / रतन पंडोरवी
- घटा आ गयी झूम कर आसमां पर / रतन पंडोरवी
- ज़ेरे-ज़मीं कभी, भी सिद्रा-नशीं हूँ मैं / रतन पंडोरवी
- बक़ा का लुत्फ भी तो मौत की मंज़िल से उठता है / रतन पंडोरवी