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दर्द आशोब
रचनाकार | अहमद फ़राज़ |
---|---|
प्रकाशक | राजकमल प्रकाशन प्रा.लि., 1-बी,नेताजी सुभाष मार्ग, नई दिल्ली 110002 |
वर्ष | 1990 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़लें व नज़्में |
विधा | ग़ज़ल व नज़्म |
पृष्ठ | 132 |
ISBN | 81-7178-031-8 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
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- फ़नकारों के नाम / फ़राज़
- तुमने ज़र्रों को तारों की तनवीर दी / फ़राज़
- रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ / फ़राज़
- क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे / फ़राज़
- मा’बूद / फ़राज़
- जुज़ तेरे कोई भी दिन-रात न जाने मेरे / फ़राज़
- न हरीफ़े जाँ न शरीक़े-ग़म शबे-इंतज़ार कोई तो हो / फ़राज़
- शाख़े-निहाले-ग़म / फ़राज़
- ख़ुदकलामी / फ़राज़
- दिल तो वो बर्गे-ख़िज़ाँ है कि हवा ले जाए / फ़राज़
- न इंतज़ार की लज़्ज़त , न आरज़ू की थकन / फ़राज़
- हम तो यूँ ख़ुश थे कि इक तार गिरेबान में है / फ़राज़
- ख़ामोश हो क्यों दादे-ज़फ़ा क्यूँ नहीं देते / फ़राज़
- इज़्हार / फ़राज़
- ख़ुदकुशी / फ़राज़
- सुन भी ऐ नग़्मासंजे-कुंजे-चमन अब समाअत का इन्तज़ार किसे / फ़राज़
- दिल बहलता है कहाँ अंजुमो-महताब से भी / फ़राज़
- वफ़ा के बाब में इल्ज़ामे-आशिक़ी न लिया / फ़राज़
- शिकस्त / फ़राज़
- ज़ेरे-लब / फ़राज़
- ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे / फ़राज़
- क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तगू करे / फ़राज़
- हरेक बात न क्यों ज़ह्र-सी हमारी लगे / फ़राज़
- हमदर्द / फ़राज़
- ख़्वाब / फ़राज़
- सौ दूरियों पे भी भी मिरे दिल से जुदा न थी / फ़राज़
- जो भी दुख याद न था याद आया / फ़राज़
- सवाल / फ़राज़
- ग़रीबे-शह्र के नाम / अहमद फ़राज़
- ज़ख़्म को फूल तो सरसर को सबा कहते हैं / फ़राज़
- गुल हो चराग़े-मै तो सज़ावारे संग है / फ़राज़
- वही है जुनूँ है वही क़ूच-ए-मलामत है / फ़राज़
- पैग़ामबर / फ़राज़
- रोज़ की मसाफ़त से चूर हो गए दरिया / फ़राज़
- तू कि अंजान है इस शहर के अंदाज़ समझ / फ़राज़
- ख़ुदा-ए-बरतर / फ़राज़
- क़ुर्ब जुज़ दाग़े-जुदाई नही देता कुछ भी / फ़राज़
- दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला / फ़राज़
- ये आलम शौक़ का देखा न जाए / फ़राज़
- ख़ुदग़रज़ / फ़राज़
- वाबस्तगी / फ़राज़
- दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों / फ़राज़
- जब तेरी याद के जुगनू चमके / फ़राज़
- मम्दूह / फ़राज़
- पयाम आए हैं उस यारे-बेवफ़ा के मुझे / फ़राज़
- बेनियाज़े-ग़मे-पैमाने-वफ़ा हो जाना / फ़राज़
- निगारे-गुल / फ़राज़
- गुलशुदा शम्ओं का मातम न करो / फ़राज़
- दिल में अब ताक़त कहाँ ख़ूँनाबा अफ़्शानी करे / फ़राज़
- बेसरो-सामाँ थे लेकिन इतना अन्दाज़ा न था / फ़राज़
- तपते सहराओं पे गरजा सरे-दरिया बरसा / फ़राज़
- अफ़ई की तरह डसने लगी मौजे-नफ़स भी / फ़राज़
- ऐ मेरे बेदर्द शहर / फ़राज़
- घर में कितना सन्नाटा है बाहर कितना शोर / फ़राज़
- फिर भी तू इंतज़ार कर शायद / फ़राज़
- अब वो झोंके कहाँ सबा जैसे / फ़राज़
- तिर्याक़ / फ़राज़
- मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं / फ़राज़
- तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है / फ़राज़
- जिससे ये तबीयत बड़ी मुश्किल से लगी थी / फ़राज़
- किसी के तज़्क़िरे बस्ती में कू-ब-कू जो हुए / फ़राज़
- मुझसे पहले / फ़राज़
- करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे / फ़राज़
- अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम / फ़राज़
- उतरी थी शहरे-गुल में कोई आतिशी किरन / फ़राज़
- कोई भटकता बादल / फ़राज़
- कैसी तलब,और क्या अन्दाज़े, मुश्किल है तक़दीर बने / फ़राज़
- अपनी मुहब्बत के अफ़साने कब तक राज़ बनाओगे / फ़राज़
- ज़िन्दगी! ऐ ज़िन्दगी / फ़राज़
- चन्द लम्हों के लिए तूने मसीहाई की / फ़राज़
- ज़ो’म ऐसा क्या कि लुत्फ़े-यार ठुकराना पड़े / फ़राज़
- अब न फ़ुर्सत है, न अहसास है ग़म से अपने / फ़राज़
- ये तो जब मुम्किन है / फ़राज़
- तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तो / फ़राज़
- फिर भी तू इंतज़ार कर शायद / फ़राज़
- तू कहाँ था ज़िन्दगी के रोज़ो-शब आँखों में थे / फ़राज़
- तिर्याक़ / फ़राज़
- मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं / फ़राज़
- तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है / फ़राज़
- जिससे ये तबीयत बड़ी मुश्किल से लगी थी / फ़राज़
- किसी के तज़्क़िरे बस्ती में कू-ब-कू जो हुए / फ़राज़
- मुझसे पहले / फ़राज़
- करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे / फ़राज़
- अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम / फ़राज़
- उतरी थी शहरे-गुल में कोई आतिशी किरन / फ़राज़
- कोई भटकता बादल / फ़राज़
- कैसी तलब,और क्या अन्दाज़े, मुश्किल है तक़दीर बने / फ़राज़
- अपनी मुहब्बत के अफ़साने कब तक राज़ बनाओगे / फ़राज़
- ज़िन्दगी! ऐ ज़िन्दगी / फ़राज़
- चन्द लम्हों के लिए तूने मसीहाई की / फ़राज़
- ज़ो’म ऐसा क्या कि लुत्फ़े-यार ठुकराना पड़े / फ़राज़
- अब न फ़ुर्सत है, न अहसास है ग़म से अपने / फ़राज़
- ये तो जब मुम्किन है / फ़राज़
- तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तो / फ़राज़
- तू कहाँ था ज़िन्दगी के रोज़ो-शब आँखों में थे / फ़राज़
- लम्हे वफ़ूरे-शौक़ के ऐसे न आए थे / फ़राज़
- शुहदा-ए-जंगे आज़ादी 1857 के नाम / फ़राज़
- पयंबरे-मश्रिक / फ़राज़
- बतर्जे-बेदिल / फ़राज़
- अल्मिया / फ़राज़
- मिल्कियत / फ़राज़
- मुंतज़िर कब से तहय्युर है तेरी तक़दीर का / फ़राज़
- अहले-ग़म जाते हैं नाउम्मीद तेरे शहर से / फ़राज़
- तम्सील / फ़राज़
- आँखों में चुभ रहे हैं दरो-बाम के चराग़ / फ़राज़
- नज़र की धूप में साये घुले हैं शब की तरह / फ़राज़
- हम क्या कि इसी सोच में बादे-चमनी थी / फ़राज़
- नींद / फ़राज़
- ख़ुशबू का सफ़र / फ़राज़
- अब के बरस भी / फ़राज़
- तुझ से मिल कर भी कुछ ख़फ़ा नाराज़ हैं हम / फ़राज़
- तुझे उदास लिया ख़ुद भी सोग़वार हुए / फ़राज़
- ...अनदेखे दियारों के सफ़ीर / फ़राज़
- अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें / फ़राज़
- अच्छा था अगर ज़ख़्म न भरे कोई दिन और / फ़राज़
- तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझको / फ़राज़
- किसी तरह तो बयाने-हर्फ़े आरज़ू करते / फ़राज़
- मैं और तू / फ़राज़
- अफ़्रेशियाई अदीबों के नाम / फ़राज़
- मैं कि पुरशोर समन्दर थे मेरे पाँवों में / फ़राज़
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