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शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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शाम सुहानी
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रचनाकार | रंजना वर्मा |
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प्रकाशक | |
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भाषा | हिन्दी |
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विविध |
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इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- रब उसे माना औ कर ली बन्दगी / रंजना वर्मा
- बिना सबब के न कुछ भी होता / रंजना वर्मा
- सन्नाटे फिर करते हैं कुछ आपस में सरगोशियाँ / रंजना वर्मा
- न अब लबों पर वह शोखियाँ हैं / रंजना वर्मा
- हैं हृदय पत्थर सरीखे हो गये / रंजना वर्मा
- ज़िन्दगी दर्द का समंदर है / रंजना वर्मा
- प्यास में तृप्ति की बूँद भरती नहीं / रंजना वर्मा
- उसने तो पुकारा है मगर होश किसे है / रंजना वर्मा
- रात गयी / रंजना वर्मा
- साँवरे श्याम से दिल लगाती रही हूँ / रंजना वर्मा
- रुत ने करवट बदली गूँजी छम-छम पायल की / रंजना वर्मा
- सब तरफ़ खामोशियाँ हैं सब तरफ़ तनहाइयाँ / रंजना वर्मा
- चाँदनी इस तरह रो गयी / रंजना वर्मा
- माँ ने झुक कर पेशानी को चूम लिया / रंजना वर्मा
- आयी निशा घनेरी घनघोर है अँधेरा / रंजना वर्मा
- फिर कोई भूला हुआ गीत सुना हो जैसे / रंजना वर्मा
- सुयश नहीं कब होता है किसको प्यारा / रंजना वर्मा
- दुनियाँ में हर मानव किस्मत से हारा / रंजना वर्मा
- सन्नाटों में सहमी-सहमी बुरजें हैं मीनारें हैं / रंजना वर्मा
- दूर जंगल के किनारे पर खड़ी है झोंपड़ी / रंजना वर्मा
- नज़र उल्फ़त भरी अक्सर ग़ज़ब सौगात करती है / रंजना वर्मा
- जब भी उनसे मुलाकात होगी / रंजना वर्मा
- ज़िन्दगी अब अज़ाब लगती है / रंजना वर्मा
- मचलती है बाहों में सरिता की धारा / रंजना वर्मा
- मिला जिसको तुम्हारा प्यार होगा / रंजना वर्मा
- डगर ज़िन्दगी की सरल बन गयी / रंजना वर्मा
- जब भी खुद की तलाश होती है / रंजना वर्मा
- जब झँकोरे हवाओं के चलने लगे / रंजना वर्मा
- दिल की धड़कन का सांसों से प्यार लिखो अभिसार लिखें / रंजना वर्मा
- पीर धूल संघर्षण देना / रंजना वर्मा
- प्रतीक्षा बहुत की इधर आइये / रंजना वर्मा
- जब बुढ़ापे में तुम्हारा जिस्म ये ढल जायेगा / रंजना वर्मा
- सोना रही उगलती धरती पाती रही सदा सम्मान / रंजना वर्मा
- कुछ फूल जो बहार में खिलते कभी नहीं / रंजना वर्मा
- ग़म की बारात यूँ नज़दीक हुई जाती है / रंजना वर्मा
- मतलब की इस दुनियाँ में होतीं सब बातें मतलब की / रंजना वर्मा
- उसने आंखों को अपनी दीद न दी / रंजना वर्मा
- तसव्वुर का एक आइना चाहती हूँ / रंजना वर्मा
- जिधर चाहते हो उधर देख लेना / रंजना वर्मा
- चाँदनी चाँद के पास आ जाती है / रंजना वर्मा
- ग़म से ज़रा निगाह चुरा लेनी चाहिये / रंजना वर्मा
- हुआ मोहमय जीवन सारा समय बहुत प्रतिकूल / रंजना वर्मा
- गुलशन में जो खिला था वह गुंचा बिखर गया / रंजना वर्मा
- सूर्य बरसाता अगन है अब तो हो साया जरा / रंजना वर्मा
- इश्क़ से यूँ न फ़ासला रखिये / रंजना वर्मा
- सुनो यशोदा लाल विनय अब मेरी / रंजना वर्मा
- साथ में प्यार औ वफ़ा रखिये / रंजना वर्मा
- पीर को ईश का रहम जाना / रंजना वर्मा
- समझ लो ज़रा पास आने से पहले / रंजना वर्मा
- सत्य की राह से जब भटकने लगे / रंजना वर्मा
- दीपक ने कब सोचा आकर उसको कौन जलाता है / रंजना वर्मा
- पाजेब की झनकार से निकली वह गीतिका / रंजना वर्मा
- चाँदनी सिंधु में जब नहाने लगी / रंजना वर्मा
- सपनों में वह नज़र हमे आते हैं आजकल / रंजना वर्मा
- फ़लसफ़े सब नये हो गये / रंजना वर्मा
- सत्य मार्ग पर सदा सभी को काँटे मिलते हैं / रंजना वर्मा
- तुम्हारे बिन भटकते हैं अकेले रहगुज़ारो में / रंजना वर्मा
- भूलता है दिल न वह मंज़र सुहाना / रंजना वर्मा
- मान के दिन गुजरने लगे / रंजना वर्मा
- वक्त के साथ ढलना हमें आ गया / रंजना वर्मा