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राजेन्द्र गौतम
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राजेन्द्र गौतम
जन्म | 6 सितम्बर 1952 |
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उपनाम | |
जन्म स्थान | भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
गीत पर्व आया है (1983), पंख होते हैं समय के(1989), बरगद जलते हैं (1998) (सभी नवगीत-संग्रह) | |
विविध | |
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कविता पुरस्कार। | |
जीवन परिचय | |
राजेन्द्र गौतम / परिचय |
नवगीत
- अधिनायक कोड़ा / राजेन्द्र गौतम
- अपने-अपने शून्य / राजेन्द्र गौतम
- आँगन-आँगन दीप धरें / राजेन्द्र गौतम
- आँधी के हाथ जिए / राजेन्द्र गौतम
- आघात अधिक है / राजेन्द्र गौतम
- आग पानी में / राजेन्द्र गौतम
- आवारा पूँजी / राजेन्द्र गौतम
- उजाला छिन न पाएगा / राजेन्द्र गौतम
- इन्द्रासन की तुरुप-चाल है / राजेन्द्र गौतम
- ऐसा ही होता है / राजेन्द्र गौतम
- क़त्ल नदी का / राजेन्द्र गौतम
- कल्पवृक्षों की नर्सरी / राजेन्द्र गौतम
- कल्पवृक्षों की ‘नर्सरी’ / राजेन्द्र गौतम
- कवि रामायण रचेगा / राजेन्द्र गौतम
- क़स्बे की साँझ / राजेन्द्र गौतम
- कहाँ तलाशें / राजेन्द्र गौतम
- कीलित यहाँ मन भी / राजेन्द्र गौतम
- कुहरा छाया है / राजेन्द्र गौतम
- कैसी दोपहरी है / राजेन्द्र गौतम
- कैसे अजब सवाल / राजेन्द्र गौतम
- ख़बर मौसम की यही है / राजेन्द्र गौतम
- गज़ भर छाँव नहीं / राजेन्द्र गौतम
- गीतपर्व आया है / राजेन्द्र गौतम
- घन कुन्तल-मेघ घिरे / राजेन्द्र गौतम
- चान्दनी की गन्ध से है भर गया आकाश / राजेन्द्र गौतम
- चिड़िया का वादा / राजेन्द्र गौतम
- चुप्पी से बतियाती है अब उस पुल की महराब / राजेन्द्र गौतम
- जंगल की गुर्राहट / राजेन्द्र गौतम
- जटा बढ़ाए एक अघोरी / राजेन्द्र गौतम
- जाने कब से कॉलबैल का बजना बन्द पड़ा है / राजेन्द्र गौतम
- जेबों में सन्देशों का अम्बार लगा है / राजेन्द्र गौतम
- टपक रही हैं खपरैलें / राजेन्द्र गौतम
- टूट गया रिश्ता अपने से / राजेन्द्र गौतम
- ठिठके हुए दिगम्बर हैं / राजेन्द्र गौतम
- डल से लोहित तक ये बादल / राजेन्द्र गौतम
- डायरी के पन्नों में सोई हुई साँसे / राजेन्द्र गौतम
- तुम हमारी जान ले लो / राजेन्द्र गौतम
- तैर रहे हैं गाँव / राजेन्द्र गौतम
- द्वापर प्रसंग / राजेन्द्र गौतम
- दूब के खरगोश बन्दी / राजेन्द्र गौतम
- दोपहरी के दलदल में / राजेन्द्र गौतम
- धारा ऊपर तैर रहे हैं सब खादर के गाँव / राजेन्द्र गौतम
- धुन्ध चुप्पियों की फटती है / राजेन्द्र गौतम
- नंगी पीठ पहाड़ों की / राजेन्द्र गौतम
- निविदा अख़बारों को दी है / राजेन्द्र गौतम
- नीम के पत्ते हरे / राजेन्द्र गौतम
- पंख ही चुनते रहे / राजेन्द्र गौतम
- पंख होते हैं समय के / राजेन्द्र गौतम
- पथरा चुकी झीलें / राजेन्द्र गौतम
- पाँवों में पहिए लगे / राजेन्द्र गौतम
- पाग़ल हुआ इतिवृत्त / राजेन्द्र गौतम
- पाला ढाता ग़जब कहर है / राजेन्द्र गौतम
- पिता सरीखे गाँव / राजेन्द्र गौतम
- फिर प्यासी संगीन / राजेन्द्र गौतम
- बरगद जलते हैं / राजेन्द्र गौतम
- बाँस बरोबर आया पानी / राजेन्द्र गौतम
- बाढ़ नहीं यह... / राजेन्द्र गौतम
- बिजली का कुहराम / राजेन्द्र गौतम
- भय की एक नदी / राजेन्द्र गौतम
- भौंचक दक्षिण-वाम / राजेन्द्र गौतम
- मन, कितने पाप किए / राजेन्द्र गौतम
- महानगर में संध्या / राजेन्द्र गौतम
- मायामृग के पीछे-पीछे / राजेन्द्र गौतम
- मुझको भुला देना / राजेन्द्र गौतम
- यह भी क्या? मुट्ठी भर यादों के साथ जिए ! / राजेन्द्र गौतम
- राजरोग से खुद जर्जर / राजेन्द्र गौतम
- रेत-सा रिसता अन्धेरा / राजेन्द्र गौतम
- रोशनी की सुरंगें हमको बिछानी हैं / राजेन्द्र गौतम
- लगी तोड़ने ख़ामोशी को बंजारिन वाचाल हवा / राजेन्द्र गौतम
- लावा रोज़ झरता है / राजेन्द्र गौतम
- लाशों की ढेरी पर बजता तेरा इकतारा / राजेन्द्र गौतम
- वन में फूले अमलतास हैं / राजेन्द्र गौतम
- वृद्धा-पुराण / राजेन्द्र गौतम
- वर्षों-दो वर्षों में यह इतिहास उगा है / राजेन्द्र गौतम
- शब्दों से झोली भर देते / राजेन्द्र गौतम
- शीशम का नीमों से बना हुआ अब भी संवाद है / राजेन्द्र गौतम
- शोर को हम गीत में बदलें / राजेन्द्र गौतम
- सदी के अन्त का गीत / राजेन्द्र गौतम
- सन्त्रास उगा है / राजेन्द्र गौतम
- सब बन्द मदरसे / जारी जलसे / राजेन्द्र गौतम
- सलीबों पर टँगे दिन / राजेन्द्र गौतम
- सलोने रूप का 'दरपन' / राजेन्द्र गौतम
- सिर-फिरा कबीरा / राजेन्द्र गौतम
- सिर-फिरा कबीरा / राजेन्द्र गौतम
- सूखी वे रंगीन पँखुरियाँ / राजेन्द्र गौतम
- सूरज धरे चिंगारियाँ / राजेन्द्र गौतम
- शब्द सभी पथराए / राजेन्द्र गौतम
- हम दीप जलाते हैं / राजेन्द्र गौतम
- हम लूले-लँगड़े / राजेन्द्र गौतम
- हम विज्ञापन बन जाते / राजेन्द्र गौतम
- हवा का आचरण / राजेन्द्र गौतम
- हुए पराजित गाँव / राजेन्द्र गौतम
- ऋतु की मरजाद / राजेन्द्र गौतम
गीत
- 25 अगस्त का मंज़र / राजेन्द्र गौतम
- आह, कितने जंगली ये लोग / राजेन्द्र गौतम
- थाम लेंगे हाथ जब जलती मशालों को / राजेन्द्र गौतम
- यद्यपि अपनी चेतनता के बन्द कपाट / राजेन्द्र गौतम
- यह रोड़े-कंकड़-सा जो कुछ हम अटपटा सुनाते हैं / राजेन्द्र गौतम
- व्यंजनाओं की ख़बर किसको यहाँ होती / राजेन्द्र गौतम
- वे भी दिन थे जब छूने से मैले होते ख़्वाब / राजेन्द्र गौतम
ग़ज़लें
- इस कदर ढुलमुल हुए रिश्ते / राजेन्द्र गौतम
- उल्लास का तब आप में अतिरेक होता है / राजेन्द्र गौतम
- किस कदर सहमा हुआ है ख़ौफ़ से सारा शहर / राजेन्द्र गौतम
- जब हदों से गुज़र गया पानी / राजेन्द्र गौतम
- तब जब सब कुछ बिकता है / राजेन्द्र गौतम
- देखा इतना क्या कम है / राजेन्द्र गौतम
- माना परिन्दों के दुमहले घर नहीं होते / राजेन्द्र गौतम
- लो माँगने को कवच-कुण्डल का तुम्ही से वर / राजेन्द्र गौतम
- हम रहे हैं ज़िन्दगी भर नापते प्यासा सफ़र / राजेन्द्र गौतम