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10:19, 30 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
जज़्बात
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रचनाकार | अजय अज्ञात |
---|---|
प्रकाशक | शब्दांकुर प्रकाशन |
वर्ष | |
भाषा | हिंदी |
विषय | शायरी |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 100 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- भूमिका / अजय अज्ञात
- इस क़लम को रोशनाई दे ख़ुदा / अजय अज्ञात
- अंजाम जो भी हो कभी सोचा नहीं करते / अजय अज्ञात
- वो मेरे हौसलों को आज़माना चाहता है / अजय अज्ञात
- आपकी सच्ची दुआओं का असर है / अजय अज्ञात
- होता हुआ आसान सफ़र देख रहा हूँ / अजय अज्ञात
- क्या पता था आईना यूँ बेवफ़ा हो जाएगा / अजय अज्ञात
- दर्द से उपजा हुआ इक गीत लिख / अजय अज्ञात
- हों ऋचाएँ वेद की या आयतें कुरआन की / अजय अज्ञात
- बुजुर्गों से निभाना भूल बैठे / अजय अज्ञात
- ख़ुद को तू आईने में नज़रिया बदल के देख / अजय अज्ञात
- वक्त ने हर वक्त ही ज़ेरो ज़बर जारी रखा / अजय अज्ञात
- हम किसी हाल में ऐसा नहीं होने देंगे / अजय अज्ञात
- हम से तो कभी ऐसी, शाइरी नहीं होती / अजय अज्ञात
- राहे तलब में कब से यूँ बैठा हुआ हूँ मैं / अजय अज्ञात
- इज़्ज़त से इसे देखिये, बेटी है किसी की / अजय अज्ञात
- ज़िंदगी में प्यार ही सरहद है बस / अजय अज्ञात
- जैसा भी है अच्छा या बुरा काट रहे हैं / अजय अज्ञात
- एहसासे कमतरी को न यूँ दिल में पालिए / अजय अज्ञात
- पराया ग़म मेरे दिल की ख़ुशी को छीन लेता है / अजय अज्ञात
- ‘लौट कर आऊंगा’ कोई कह गया / अजय अज्ञात
- जहाँ से ख़ुशबुओं का सिलसिला है / अजय अज्ञात
- तबस्सुम के उजालों से ज़रा सी रौशनी कर दो / अजय अज्ञात
- महक आती है यूँ उर्दू ज़बां से / अजय अज्ञात
- हर कोई अपनी अना की क़ैद में मक्फूल है / अजय अज्ञात
- माना कि इस ज़हान में दो-चार मिले हैं / अजय अज्ञात
- उसूलों से बग़ावत कर रहे हो / अजय अज्ञात
- एक नन्हा सा दिया, क्या बात है / अजय अज्ञात
- समझते हो बड़ी आसानियाँ हैं / अजय अज्ञात
- वफ़ा के बदले जफ़ा मिलेगी / अजय अज्ञात
- सफलता का उधर से रास्ता है / अजय अज्ञात
- सभी के सामने सज्दा हमें करना नहीं आता / अजय अज्ञात
- मैंने हँसी को चेहरे से जाने नहीं दिया / अजय अज्ञात
- झूठे को सारे लोग क्यूँ सच्चा समझते हैं / अजय अज्ञात
- मंज़िलों पर पहुँच कर डगर खत्म हो / अजय अज्ञात
- लोग अपने आप में उलझे दिखे / अजय अज्ञात
- अच्छा लगता है हमें गौहर निकलते देखना / अजय अज्ञात
- धूप से मैं रौशनी थोड़ी चुरा लूँ / अजय अज्ञात
- राई में सीप के भीतर जैसे गौहर रहता है / अजय अज्ञात
- उसका यूँ मुझसे रूठना अच्छा लगा मुझे / अजय अज्ञात
- व्यसन में ख़ुद को उलझाये हुए हैं / अजय अज्ञात
- दुआओं के असर को ख़ुद कभी यूँ आज़माना तुम / अजय अज्ञात
- पुरखों ने जो कमाई थी दौलत बची रहे / अजय अज्ञात
- जफ़ा समझे, वफ़ा समझे, भला समझे, बुरा समझे / अजय अज्ञात
- हरिक शै में तेरी मौजूदगी महसूस करता हूँ / अजय अज्ञात
- किसी के हुस्न का नक्शा मुझे कामिल नहीं मिलता / अजय अज्ञात
- हर वक्त दिल पे जैसे कोई बोझ सा रहा / अजय अज्ञात
- सच मानिएगा आप ये अच्छा नहीं करते / अजय अज्ञात
- कभी भी हौसला टूटा नहीं था / अजय अज्ञात
- जवानी आते ही चेहरे पे जब पिंपल निकल आया / अजय अज्ञात
- मिट्टी का खि़लौना क्यूँ ख़ुद ही से हिरासां है / अजय अज्ञात
- यक ब यक दिन में ये कैसा घुप अँधेरा हो गया / अजय अज्ञात
- उलझा हूँ अपने आप में सुलझाऊँ किस तरह / अजय अज्ञात
- किसी कोने में सिमटा सा पड़ा हूँ / अजय अज्ञात
- ज़िंदगी का गीत गाना सीख लो / अजय अज्ञात
- कहाँ कोई हिन्दू मुसल्मां बुरा है / अजय अज्ञात
- मुद्दत के बाद दोस्त पुराना मिला मुझे / अजय अज्ञात
- कहाँ आसानी से मिलते सभी को दोस्त अच्छे / अजय अज्ञात
- हाथों में कुल्हाड़ी को देखा तो बहुत रोया / अजय अज्ञात
- विषमता से भरी क्यूँ ज़िंदगी है / अजय अज्ञात
- जो भी है गिला उसको भुला क्यों नहीं देते / अजय अज्ञात
- चुभेंगे ख़ार तो रस्तों पे चलना छोड़ दोगे क्या / अजय अज्ञात
- वीरान सी डगर है कोई हमसफ़र नहीं / अजय अज्ञात
- यूँ ही गाहे ब गाहे बेख़ुदी में आ ही जाता है / अजय अज्ञात
- बेसबब मुस्कुरा रहा है कोई / अजय अज्ञात
- रास्ते के पत्थरों के रोकने से कब रुका / अजय अज्ञात
- मेरे क़दमों में अगर आवारगी होती नहीं / अजय अज्ञात
- मेरी हर ख़्वाहिश अधूरी रह गयी / अजय अज्ञात
- एक दिन ख़्वाब ये साकार भी हो सकता है / अजय अज्ञात
- दश्ते दिल से गुज़र रहा हूँ मैं / अजय अज्ञात
- कोई बुत में तराशा जा रहा है / अजय अज्ञात
- प्यार का ये आगाज़ बहुत ही अच्छा है / अजय अज्ञात
- दरमियाँ के फ़ासिले सब मिट गए / अजय अज्ञात
- ये बच्चे क्यूँ बिगड़ते जा रहे हैं / अजय अज्ञात
- इक ख़ुशनुमा सा ख़्वाब सजाने नहीं दिया / अजय अज्ञात
- कितना हसीन चाँद था, बादल निगल गया / अजय अज्ञात
- आज इस वातावरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद / अजय अज्ञात
- सदमात हिज्र-ए-यार के जब-जब मचल गए / अजय अज्ञात
- इस जिस्मो ज़ां की क़ैद में रह कर हैं लोग ख़ुश / अजय अज्ञात
- उसका किसी भी ग़म से है रिश्ता नहीं अभी / अजय अज्ञात
- बूढ़ा एक शजर हूँ मैं / अजय अज्ञात
- मुख़्तलिफ़ अशआर / अजय अज्ञात
- एक मतअला, कुछ शेर / अजय अज्ञात