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20:22, 14 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
समकाल की आवाज़
रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
---|---|
प्रकाशक | न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, C-515, बुद्धनगर, इन्द्रपुरी, नई दिल्ली, 110012 |
वर्ष | प्रथम संस्करण 2022 |
भाषा | हिंदी |
विषय | रचना संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | 978-93-95234-42-9 |
विविध |
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रचनाएँ
- भूमिका / समकाल की आवाज़
- बुझे न प्यास तो फिर सामने नदी क्यों है / डी. एम. मिश्र
- अपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता / डी .एम. मिश्र
- ग़मज़दा आँखों का दो बूँद नीर कैसे बचे / डी .एम. मिश्र
- हवा में है वो अभी आसमान बाक़ी है / डी .एम. मिश्र
- मारा गया इंसाफ़ मांगने के जुर्म में / डी .एम. मिश्र
- आप मज़े में हैं तो क्या फ़स्ले बहार है / डी .एम. मिश्र
- उधर बुलंदी पे उड़ता हुआ धुआँ देखा / डी .एम. मिश्र
- बडे आराम से वो क़त्ल करके घूमता है / डी .एम. मिश्र
- उजड़ रहा है चमन इसको बचाऊँ कैसे / डी .एम. मिश्र
- एक ज़ालिम ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है / डी .एम. मिश्र
- जानते सब हैं बोलता नहीं है कोई भी / डी .एम. मिश्र
- अँधेरा है घना फिर भी ग़ज़ल पूनम की कहते हो / डी .एम. मिश्र
- आँख वाले हो के भी अंधे हुए / डी .एम. मिश्र
- मेरे हिस्से की ज़मीं बंजर है / डी .एम. मिश्र
- मेरा प्यार बेशक समंदर से भी है / डी .एम. मिश्र
- आपने ही कौन-सा है तीर मारा / डी .एम. मिश्र
- कृष्न करै तो लीला बोलो, किसना करै छिनारा / डी .एम. मिश्र
- जनता से नाता न रखेंगे कब तक अच्छे लोग / डी .एम. मिश्र
- है क़फ़स में ज़िन्दगानी क्या बताऊँ / डी .एम. मिश्र
- दाग़ मेरे भी दामन पर है, दाग़दार तो मैं भी / डी .एम. मिश्र
- बड़े-बड़े गामा उतरे हैं दंगल में / डी .एम. मिश्र
- सवाल ये है कभी क्या किसी ने सोचा है / डी .एम. मिश्र
- चिनगारियों की सुर्ख डगर देख रहा हूँ / डी .एम. मिश्र
- मेरा ज़मीर, मेरा सब कुछ है / डी .एम. मिश्र
- सरकार चेत जाइये, डरिये किसान से / डी .एम. मिश्र
- ऐसे क़ातिल से बचिए जो रक्षक भी होता है / डी .एम. मिश्र
- अच्छे दिन के जुमले से कब बाहर आओगे / डी .एम. मिश्र
- तूफ़ानों से बचने का अब समय नहीं / डी .एम. मिश्र
- दरिया में मत आग लगाओ नई नीति से / डी .एम. मिश्र
- अमन के दुश्मनों से डर है मेरी जान ले लेंगे / डी .एम. मिश्र
- उम्र बेशक मुझे थोड़ी कम चाहिए / डी .एम. मिश्र
- वक़्त ही बदला है केवल और क्या बदला है आज / डी .एम. मिश्र
- चोरों और लुटेरों का हो रहा नागरिक अभिनन्दन / डी .एम. मिश्र
- जिससे दिल ही न मिले उससे बात क्या करना / डी .एम. मिश्र
- सवेरा तो होगा इसी आस में हूँ / डी .एम. मिश्र
- आप की सरकार में कितने मज़े हैं / डी .एम. मिश्र
- दोस्तो, कुछ हादसे ऐसे हुए / डी .एम. मिश्र
- सब होंठों पर मत लाना, कुछ दिल के भीतर रखना / डी .एम. मिश्र
- ख़बर वो नहीं जो दिखायी गयी है / डी .एम. मिश्र
- गो इशारों में हम बात कहते नहीं / डी .एम. मिश्र
- चाहता है दीप यद्यपि तम भगाना / डी .एम. मिश्र
- चलो गुनगुनाएँ ग़ज़ल के बहाने / डी .एम. मिश्र
- इतनी भी लेकिन न किसी की चलने देना / डी .एम. मिश्र
- नादाँ है उसे प्यार जताना नहीं आता / डी .एम. मिश्र
- दिल को अपने दीप बना दो, और प्रेम को बाती / डी .एम. मिश्र
- यह मत भूलो अहंकार से ख़तरा है / डी .एम. मिश्र
- इतना हसीं कहाँ मेरा पहले नसीब था / डी .एम. मिश्र
- गूँगे-बहरे बन जायें मंज़ूर नहीं / डी .एम. मिश्र
- दिख रहा खाली जो कल वह भी भरा था / डी .एम. मिश्र
- आप इतने बेख़बर बैठे हुए / डी .एम. मिश्र
- यह हमारी एकता ही देश की पहचान है / डी .एम. मिश्र
- चारण होगा जो तुझको सजदा करता / डी .एम. मिश्र
- उनको फ़ुरसत जो नहीं, मुझको ज़रूरत भी नहीं / डी .एम. मिश्र
- जान लेकर मैं हथेली पे चला करता हूँ / डी .एम. मिश्र
- है ज़रूरी तो मुस्कराना है / डी .एम. मिश्र
- जो सच्चा औ खरा हो आग पानी से नहीं डरता / डी .एम. मिश्र
- गाँव में रहना कोई चाहे नहीं / डी .एम. मिश्र
- दम घुटता है मगर अभी तक ज़िन्दा हूँ / डी .एम. मिश्र
- शौक़िया कुछ लोग चिल्लाने के आदी हो गये / डी .एम. मिश्र
- गाँव भी अब कहाँ सुरक्षित है / डी .एम. मिश्र
- पिता बनना बहुत आसां, पिता होना बहुत मुश्किल / डी .एम. मिश्र
- महकती फ़जा का गुमाँ बन गया मैं / डी .एम. मिश्र
- जिसे भाई समझता था वही मुझको दगा देगा / डी .एम. मिश्र
- अग्नि पथ पर चल पड़ा क्या सोचना अंजाम अब / डी .एम. मिश्र
- गौहर पाने जो निकला हो पत्थर चुनने लग जाए क्यों / डी .एम. मिश्र
- ऐसे फ़रमान आने लगे / डी .एम. मिश्र
- वो चाँद है जलवे जो दिखाता है बार-बार / डी .एम. मिश्र
- मैंने शोहरत नहीं कमाई है / डी .एम. मिश्र
- सपनों में तुम आते हो / डी .एम. मिश्र
- ज़ुल्म के इस दौर में बोलेगा कौन / डी .एम. मिश्र
- भले मजबूरियाँ होंगी मगर हम साथ रहते हैं / डी .एम. मिश्र
- ख़ार को भी गले का हार बना लेते हैं / डी .एम. मिश्र
- भँवर में है कश्ती किनारे कहाँ हैं / डी .एम. मिश्र
- मेरा ग़म ही मुझे मुस्कान तलक ले जाये / डी .एम. मिश्र
- नज़र उठाये तो वो बेक़रार हो जाये / डी .एम. मिश्र
- सागर क्या जाने कितनी है पीर हमारी आँखों में / डी .एम. मिश्र
- हमें भी पता है शहर जल रहा है / डी .एम. मिश्र
- बड़ी ग़ज़ल तो कहो पर सरल ज़बान रहे / डी .एम. मिश्र
- हँसो या ना हँसो मातम मुझे नहीं अच्छा लगता / डी .एम. मिश्र
- इक घड़ी भी जियो इक सदी की तरह / डी .एम. मिश्र
- आपके जलवों ने लूटा है मुझे / डी .एम. मिश्र
- ये गगन, ये धरा सब तुम्हारे लिए / डी .एम. मिश्र
- देखते जाइए बात ही बात में / डी .एम. मिश्र
- आपको अपने बदलते रंग न दिखते / डी .एम. मिश्र
- पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे / डी .एम. मिश्र
- हमारे शहर को ये क्या हो गया है / डी .एम. मिश्र
- जनता हो लाचार तो राजा मज़ा करे / डी .एम. मिश्र
- मंज़िल हमारी और है रस्ते हमारे और / डी .एम. मिश्र
- कुछ मेरा दीवानापन था, कुछ दिलकश वह मंज़र था / डी .एम. मिश्र
- समर में चलो फिर उतरते हैं हम भी / डी .एम. मिश्र
- इतनी-सी इल्तिजा है चुप न बैठिए हुज़ूर / डी .एम. मिश्र
- आधी रात को सारा आलम सोता है / डी .एम. मिश्र
- मौत के बाद का किसने जहान देखा है / डी .एम. मिश्र
- किसी की आँख से दुनिया हमें अब देखनी पड़ती / डी .एम. मिश्र
- जन्नत में आँगन की ख़ुशबू मिलती है कि नहीं / डी .एम. मिश्र
- भूख पहले है कि है भगवान पहले / डी .एम. मिश्र
- तमाशा देखना हो तो ज़माना दौड़ आता है / डी .एम. मिश्र
- कैसे निज़ात पाएं, हैं घात में शिकारी / डी .एम. मिश्र
- मुझे यक़ीन है सूरज यहीं से निकलेगा / डी .एम. मिश्र
- मिट्टी का जिस्म है तो ये मिट्टी में मिलेगा / डी .एम. मिश्र
- बवंडर उठ रहा है क्या तुम्हें इसकी ख़बर भी है / डी .एम. मिश्र
- सितम ढा रहे हैं सवेरे-सवेरे / डी .एम. मिश्र
- दूर से आकर हमारा वो क़रीबी हो गया / डी .एम. मिश्र
- समन्दर की लहर पहचानता हूँ क्या करूँ लेकिन / डी .एम. मिश्र