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दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
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दीवान-ए-ग़ालिब

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| रचनाकार | ग़ालिब | 
|---|---|
| प्रकाशक | हिन्द पॉकेट बुक्स (प्रा.) लिमिटेड, जी.टी. रोड दिलशाद गार्डन, शाहदरा, दिल्ली - 110095 | 
| वर्ष | 1994 | 
| भाषा | हिन्दी | 
| विषय | ग़ज़लें, रुबाईयां | 
| विधा | |
| पृष्ठ | 159 | 
| ISBN | |
| विविध | 
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- रुबाइयां / ग़ालिब
 - क़तआत / ग़ालिब
 - विविध शेअ़र / ग़ालिब
 - नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का / ग़ालिब
 - जुज़ क़ैस और कोई न आया / ग़ालिब
 - कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया / ग़ालिब
 - दिल मेरा सोज़े-निहां से बेमहाबा जल गया / ग़ालिब
 - शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला / ग़ालिब
 - धमकी में मर गया / ग़ालिब
 - दहर में नक़्शे-वफ़ा / ग़ालिब
 - सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर / ग़ालिब
 - न होगा यक बयाबां मांदगी से ज़ौक़ कम मेरा / ग़ालिब
 - सरापा रहने-इशक़ो / ग़ालिब
 - महरम नहीं है तू ही नवाहाए-राज़ का / ग़ालिब
 - बज़्मे-शाहनशाह में अशआ़र का दफ़्तर खुला / ग़ालिब
 - शब, कि बर्क़े सोज़ें-दिल से ज़ोहरा-ए-अब्र आब था /ग़ालिब
 - एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब / ग़ालिब
 - बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना / ग़ालिब
 - दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी सअई फ़रमायेंगे क्या / ग़ालिब
 - ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता / ग़ालिब
 - हवस को है निशात-ए-कार / ग़ालिब
 - दरख़ुरे-क़हरो-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ / ग़ालिब
 - पए-नज्रे-करम तोहफ़ा है शर्मे-ना-रसाई का / ग़ालिब
 - गर न अन्दोहे-शबे-फ़ुरक़त बयां हो जाएगा / ग़ालिब
 - दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ / ग़ालिब
 - गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का / ग़ालिब
 - क़तरा-ए-मै बस कि हैरत / ग़ालिब
 - जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने / ग़ालिब
 - मैं और बज़्मे-मै से / ग़ालिब
 - घर हमारा जो न रोते भी तो वीरां होता / ग़ालिब
 - न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता / ग़ालिब
 - यक़ ज़र्रा-ए-जमीं नही बेकार बाग़ का / ग़ालिब
 - वो मेरी चीन-ए-जबीं से ग़मे-पिनहां समझा / ग़ालिब
 - फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया / ग़ालिब
 - हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था / ग़ालिब
 - तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था / ग़ालिब
 - शब कि वो मज़लिस-फ़रोज़े-ख़िल्वते-नामूस था / ग़ालिब
 - आईना देख अपना सा मुंह लेके रह गए / ग़ालिब
 - अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा / ग़ालिब
 - रश्क़ कहता है कि उसका ग़ैर से इख़लास, हैफ़! / ग़ालिब
 - ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयाँ अपना / ग़ालिब
 - सुरमा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मेरी क़ीमत ये है / ग़ालिब
 - ग़ाफ़िल ब-वहमे-नाज़ खुद-आरा है वर्ना यां / ग़ालिब
 - ज़ौर से बाज़ आये पर बाज़ आये क्या / ग़ालिब
 - इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना / ग़ालिब
 - आमद-ए-ख़त से हुआ है / ग़ालिब
 - हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बाद / ग़ालिब
 - बला से हैं जो ये पेशे-नज़र दरो-दीवार / ग़ालिब
 - घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर / ग़ालिब
 - क्यों जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर / ग़ालिब
 - है बस कि हर इक उनके इशारे में निशाँ और / ग़ालिब
 - लरज़ता है मेरा दिल, ज़हमते-मेहरे-दरख़्शां पर / ग़ालिब
 - अबरू से है क्या उस निगहे-नाज़ को पैबंद / ग़ालिब
 - लाज़िम था कि देखो मेरा रस्ता कोई दिन और / ग़ालिब
 - क्यों कर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ / ग़ालिब
 - न गुल-ए-नग़्मा हूँ / ग़ालिब
 - मुज़्दा-ऐ-ज़ौक़े-असीरी कि नज़र आता है / ग़ालिब
 - रुख़े-निगार से है सोज़े-जाविदानी-ए-शम्अ़ / ग़ालिब
 - ज़ख़्म पर छिड़कें कहां तिफ़लाने-बेपरवा नमक / ग़ालिब
 - आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / ग़ालिब
 - है किस क़दर हलाक फ़रेबे-वफ़ाए-गुल / ग़ालिब
 - ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश-अज़-यक-नफ़स / ग़ालिब
 - वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ / ग़ालिब
 - की वफ़ा हमसे तो ग़ैर उसे जफ़ा कहते हैं / ग़ालिब
 - पाए-अफ़गार पे जब से तुझे रहम आया है / ग़ालिब
 - आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं /ग़ालिब
 - ओहदे से मदहे-नाज़ के बाहर न आ सका / ग़ालिब
 - मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त / ग़ालिब
 - हमसे खुल जाओ बवक़्ते-मैपरस्ती एक दिन / ग़ालिब
 - हम पर जफ़ा से तर्के-वफ़ा का गुमाँ नहीं / ग़ालिब
 - माना-ए-दश्त नावर्दी कोई तदबीर नहीं / ग़ालिब
 - मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें / ग़ालिब
 - इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं / ग़ालिब
 - जहाँ तेरा नक़्शे क़दम / ग़ालिब
 - मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में / ग़ालिब
 - कल के लिए आज कर न ख़िस्सत शराब में / ग़ालिब
 - हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं / ग़ालिब
 - ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं / ग़ालिब
 - नाला जुज़ हुस्ने-तलब ए सितम-ईजाद नहीं / ग़ालिब
 - दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा / ग़ालिब
 - हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर / ग़ालिब
 - ये जो हम हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं / ग़ालिब
 - नहीं कि मुझ को क़यामत का ऐतिक़ाद नहीं / ग़ालिब
 - तेरे तौसन को सबा बांधते हैं / ग़ालिब
 - दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं / ग़ालिब
 - सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमाया हो गईं / ग़ालिब
 - दीवानगी से दोश पे जुन्नार भी नहीं / ग़ालिब
 - नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िया के दरख़ुर मेरे तन में / ग़ालिब
 - मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं / ग़ालिब
 - दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आये क्यों / ग़ालिब
 - गुंचा-ए-नाशिगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि क्यों / ग़ालिब
 - हसद से दिल अगर / ग़ालिब
 - काअ़बा में जा रहा तो न दो ताना / ग़ालिब
 - वारस्ता इससे हैं कि मुहब्बत ही क्यों न हो / ग़ालिब
 - क़फ़स में हूं गर अच्छा भी न जाने मेरे शेवन को / ग़ालिब
 - धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीमतन के पाँव / ग़ालिब
 - वां पहुंचकर जो ग़श आता पै-ए-दम है हमको / ग़ालिब
 - तुम जानो तुमको ग़ैर से जो रस्मो-राह हो / ग़ालिब
 - गई वो बात कि हो गुफ़्तगू तो क्योंकर हो / ग़ालिब
 - किसी को दे के दिल कोई नवासंजे-फ़ुग़ाँ क्यों हो / ग़ालिब
 - रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो / ग़ालिब
 - शबे-विसाल में मूनिस गया है बन तकिया / ग़ालिब
 - सद जल्वा रू-ब-रू है / ग़ालिब
 - मैं हूँ मुश्ताक़े-जफ़ा मुझ पे जफ़ा और सही / ग़ालिब
 - मस्जिद के ज़ेरे-साया ख़राबात चाहिए / ग़ालिब
 - बिसाते-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा-ख़ूं वो भी / ग़ालिब
 - है बज़्मे-बुतां में सुख़न आज़ु्र्दा लबों से / ग़ालिब
 - ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की / ग़ालिब
 - क्या तंग हम सितमज़दगां का जहान है / ग़ालिब
 - दर्द से मेरे है तुझ को बेक़रारी हाय हाय / ग़ालिब
 - सर गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है / ग़ालिब
 - गर ख़ामुशी से फ़ायदा इख़फ़ा-ए-हाल है / ग़ालिब
 - एक जा हर्फ़े-वफ़ा का लिक्खा था/ ग़ालिब
 - मेरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबादे-तमन्ना है / ग़ालिब
 - इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही / ग़ालिब
 - है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे / ग़ालिब
 - उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किये / ग़ालिब
 - देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाये है / ग़ालिब
 - सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है / ग़ालिब
 - दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई / ग़ालिब
 - तस्कीं को हम न रोयें जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले / ग़ालिब
 - कोई दिन गर ज़िन्दगानी और है / ग़ालिब
 - कोई उम्मीद बर नहीं आती / ग़ालिब
 - दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है / ग़ालिब
 - फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है / ग़ालिब
 - जुनूं तोहमत-कशे-तस्कीं न हो गर / ग़ालिब
 - निकोहिश है सज़ा, फ़रियादी-ए-बेदाद-ए-दिलबर की / ग़ालिब
 - बे-ऐतदालियों से सुबुक सब में हम हुए / ग़ालिब
 - जो न नक़्दे-दाग़े दिल की करे / ग़ालिब
 - ज़ुल्मतकदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है / ग़ालिब
 - आ कि मेरी जां को क़रार नहीं है / ग़ालिब
 - हुजूमे-ग़म से यां तक / ग़ालिब
 - पा-ब दामन हो रहा हूं, बस कि मैं सहरा-नवद / ग़ालिब
 - जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे / ग़ालिब
 - हुस्न-ए-माह गरचे बहंगामे-कमाल अच्छा है / ग़ालिब
 - न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही / ग़ालिब
 - अ़जब निशात से, जल्लाद के, चले हैं हम आगे / ग़ालिब
 - शिकवे के नाम से बेमेहर ख़फ़ा होता है / ग़ालिब
 - हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है / ग़ालिब
 - मैं उन्हें छेड़ूँ और वो / ग़ालिब
 - ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के / ग़ालिब
 - फिर इस अन्दाज़ से बहार आई / ग़ालिब
 - तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अ़ज्ज़ आ़ली है / ग़ालिब
 - कब वो सुनता है कहानी मेरी / ग़ालिब
 - गुलशन की तेरी सोहबत अज़-बसकि ख़ुश आई है / ग़ालिब
 - जिस जख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की / ग़ालिब
 - सीमाब पुश्त-ए-गर्मी-ए-आईना दे हैं, हम / ग़ालिब
 - हैं वस्ल-ओ-हिज़र आ़लम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में / ग़ालिब
 - चाहिये अच्छों को जितना चाहिये / ग़ालिब
 - हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायां मुझ से / ग़ालिब
 - नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने / ग़ालिब
 - चाक की ख़्वाहिश / ग़ालिब
 - वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे / ग़ालिब
 - ख़तर है, रिश्ता-ए-उल्फ़त / ग़ालिब
 - फ़रियाद की कोई लै नहीं है / ग़ालिब
 - न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहते दिल का / ग़ालिब
 - हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते / ग़ालिब
 - करे है बादा, तेरे लब से / ग़ालिब
 - क्यूं न हो चश्म-ए-बुतां महव-ए-तग़ाफ़ुल / ग़ालिब
 - दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिये / ग़ालिब
 - कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाये है मुझ से / ग़ालिब
 - लाग़र इतना हूं कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे / ग़ालिब
 - बाज़ीचए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे / ग़ालिब
 - कहूँ जो हाल, तो कहते हो / ग़ालिब
 - रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये / ग़ालिब
 - इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई / ग़ालिब
 - बहुत सही ग़म-ए-गेती शराब कम क्या है / ग़ालिब
 - बाग़ पाकर ख़फ़कानी ये डराता है मुझे / ग़ालिब
 - रौंदी हुई है कौकबए-शहरयार की / ग़ालिब
 - हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाइश पे दम निकले / ग़ालिब
 - हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना / ग़ालिब
 - ख़मोशियों में तमाशा, अदा निकलती है / ग़ालिब
 - जिस जा नसीम शाना-कश-ए ज़ुल्फ़-ए-यार है / ग़ालिब
 - आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे / ग़ालिब
 - शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है / ग़ालिब
 - मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की / ग़ालिब
 - ग़म खाने में बोदा दिले-नाकाम बहुत है / ग़ालिब
 - मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए / ग़ालिब
 - रहा बला में भी मुब्तिलाए-आफ़ते-रश्क / ग़ालिब
 
	
	