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अहिणी
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रचनाकार | अनिल शंकर झा |
---|---|
प्रकाशक | अंगिका संसद, भागलपुर |
वर्ष | 2001 |
भाषा | अंगिका |
विषय | |
विधा | कवित्त |
पृष्ठ | 50 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- दुधिया कमल पर, दुधिया वसन पिन्ही / अनिल शंकर झा
- भाग्यहीन दीन दुखिया के सेविका छोॅ तोंहीं / अनिल शंकर झा
- दिल के फफोला पर करूणा के लेप तोंही / अनिल शंकर झा
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- दिल देलों पत्थरोॅ केॅ, प्यार देलां पत्थरोॅ केॅ / अनिल शंकर झा
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- छपरी पे कागा बोलै हुनकोॅ सगुन भाखै / अनिल शंकर झा
- कवि के कोमल भाव हेनोॅ सुकुमार लागै / अनिल शंकर झा
- कोमल कमल हेनो मंजुल मनोहर ई / अनिल शंकर झा
- चानी हेनो चकमक पोखरी के साफ जल / अनिल शंकर झा
- शीतोॅ में नहैलोॅ एक कमलोॅ के कलिका कि / अनिल शंकर झा
- दुनिया के लाख दुःख दूर लखी एक मुख / अनिल शंकर झा
- रोजे सुती उठी घोॅर ऐंगना बुहाड़ी फनूं / अनिल शंकर झा
- राजा रे दुलरूआ केॅ काहे दुःख देल्होॅ विधि / अनिल शंकर झा
- छिनी गेलै सुख आरो रही गेलै दुख खाली / अनिल शंकर झा
- गोरोॅ गोरोॅ गालोॅ पर लाज के ललाई जेना / अनिल शंकर झा
- परम पवित्र धार ताज शिव शंभु के जे / अनिल शंकर झा
- शत में इंजोरिया में फूल झरलोॅ गेलै आ, / अनिल शंकर झा
- रातभर मंदिरोॅ में दिया काँपलोॅ गेलै आ / अनिल शंकर झा
- कहियो नै नारीं कहै घरोॅ मंे दीवार दहौ / अनिल शंकर झा
- बड़का घरोॅ के बेटी गज भरी जीभवाली / अनिल शंकर झा
- बड़ा ही कुरूप रूचिकर कनियो नै कहीं / अनिल शंकर झा
- रसें रसें दुनिया ई डूबी गेलै पापी संगें / अनिल शंकर झा
- आबी गेलै झकसी के दिन फनू घुरि फिरी / अनिल शंकर झा
- महलोॅ में रहै वाला बड़का टा लोग तोहें / अनिल शंकर झा
- नारी बिन घर सुना, नारी बिन देहु सुना / अनिल शंकर झा
- विश्वास प्यार केरोॅ नीव छेकै मजबूत / अनिल शंकर झा
- सुख अपनाय लेली दुःख बिसराय दहौ / अनिल शंकर झा
- अर्थो के जुगोॅ में हम्में अर्थो के अभाव में छी / अनिल शंकर झा
- देखेॅ ई समाजेॅ के विधान सतरंगो केन्हेॅ / अनिल शंकर झा
- नौकरी केॅ जोगौ जेना सेमरो के फूल पाखी / अनिल शंकर झा
- चोरोॅ शहजनोॅ के कुशासनो में बसलोॅ छी, / अनिल शंकर झा
- जातिवादें नाशनें छै सुखशांति सबके ही / अनिल शंकर झा
- राम आरो कृष्ण के भी जनैवाली धरती ई / अनिल शंकर झा
- केकरो भी राज हुबेॅ केकरो भी पाट हुबेॅ / अनिल शंकर झा
- देशो के आजादी के भी होतै कोनो अर्थ लेकिन / अनिल शंकर झा
- सब छै पहिलके ना, घरोॅ में अमानती ना / अनिल शंकर झा
- अजब अपार परिपूर्ण छै प्रताप लै केॅ / अनिल शंकर झा
- पोखरी के पोर-पोर थिर रहै ओर छोर / अनिल शंकर झा
- रचर्लो विधाता हाथें एक पर एक जीव / अनिल शंकर झा
- दुनिया सुहानी रात सजलोॅ छै सेज जेकां / अनिल शंकर झा
- कतना जुगो सें रोज अधरोॅ के अमृत / अनिल शंकर झा
- एक पर एक फूल सूंघल्हौ पेॅ नासपुट / अनिल शंकर झा
- हमरा दिलोॅ में एक वही याद बसलोॅ छै / अनिल शंकर झा
- जो रे जमदूत अभी अइर्हे तो फेर कभी / अनिल शंकर झा
- सुनसान वियावान जीवनोॅ के राह पर / अनिल शंकर झा
- आदमी केॅ चाहियोॅ जी एकटा मृणाल बाँह / अनिल शंकर झा
- धरती शृंगार करी कामिनी के रूप धरी / अनिल शंकर झा
- मीठीॅ मीठोॅ गंध लेनॅे मन में उमंग लेनै / अनिल शंकर झा
- हमरा नै धोॅन चाही सेठ साहूकार केनें / अनिल शंकर झा