कारवाँ उम्मीद का
रचनाकार | महावीर प्रसाद 'मधुप' |
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प्रकाशक | पाँखी प्रकाशन, दिल्ली |
वर्ष | 2012 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़लें |
पृष्ठ | 96 |
ISBN | 978-93-81501-12-2 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
भूमिकाएँ
रचनाएँ
- हर ग़म को अदब से दी रहने का जगह दिल में / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- हुए दानवों से चलन कैसे-कैसे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- हर मुख पे हो मुस्कान तो समझो वसन्त है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- हरदम रहता नहीं एक-सा मौसम है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- हद से बढ़कर दर्द दवा हो जाता है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- आदर्शों का मधुबन सब वीरान हो गया / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- अब तो सच्ची बात कहानी-सी लगती है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- यूँ न सुलझेगी उलझी लड़ी / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- युग सम बीत रहा क्षण-क्षण / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- सन्त पड़ा कहना पापी हत्यारों को / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- मान लिया है मझधारों से, ठोकर मिली किनारों से / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- मन मैले तन हैं उजले / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- मौसम ने तेवर बदले हैं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- बैर के काँटे निरन्तर बो लिये / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- फिर से ग़म की घटा सिर पे छाने लगी / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- पाप होने लगे धर्म की आड़ में / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- पाने से पहले जन में कुछ खोना पड़ता है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- प्यार का रिश्ता पुराना हो गया / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- पीड़ित की परिचर्या में जो बीते वह पावन पल है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- पतन के गर्त में उत्थान क्यों है, हम नहीं समझे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- सपना बना रहा सपना / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- पास न आते भँवरे जिन फूलों के पास पराग नहीं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- पाँव अन्तर्व्यथा के अचल हो गये / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- जाल ऐसे बिछाए गए / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- प्यार वरदान है ज़िन्दगी के लिये / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- पाँव छलनी हो, पथ में अटकते रहे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- पीर का पनघट हुई है जिन्दगी / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- नज़दीक थे बहुत जो, सब दूर हो गए हैं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- निराशा मृत्यु है जीवन नहीं है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- निष्क्रिय तन है, नीरस मन है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- नाम जागरण का जीवन है, जग में सोना भूल बड़ी है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- दर्द की राह से हम गुज़रते रहे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- दुख का अवसर कभी, है कभी हर्ष का / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- दो दिन का यह मेला है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- तुम क्या छोड़ गए मानस का मधुवन ही वीरान हो गया / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- ज़िन्दगी अब भार-सी लगने लगी है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- जिस तरफ़ देखो उधर हैं देवता ही देवता / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- छिड़ा ज़िक्र जब यार का बज़्म में / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- बीती बातें याद न कर / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- चढे़ सूर्य को ढलते देखा / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- घोर आतप से जुड़ी बरसात है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- ग़लतियों का जब सुधार कर लिया / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- ग़मों की इस क़दर भरमार क्यों है, हम नहीं समझे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- ग़म के सहने में भी कुछ अपना मज़ा है तो सही / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- ग़म सदा के लिए हमसफ़र हो गया / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- ख़ुदगरज़ी के इस आलम में कितने हुए सयाने लोग / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- काम वतन के आ न सके जो वह जीवन भी क्या जीवन है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- कौन मित्र है, कौन शत्रु है, इस युग की यह बात न पूछो / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- कड़वी बातों के समान होता कोई आघात नहीं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- कर दे गुमराह ऐसा इशारा न कर / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- एक जैसा हर समय वातावरण होता नहीं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- इन्सान अब लगने लगा हैवान की तरह / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- इतिहास का वतन के हर पृष्ठ हो सुनहरा / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- अश्क़ पीते और खाते ग़म रहे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- आग में ज़िदगी को तपा कर जिये हैं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- आजकल के हैं कैसे चलन देखिए / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- अब व्यथाओं से न हम संत्रस्त हैं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- अबके बरस भी बादल सावन के खूब बरसे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- बूंद-बूंद सै खाली मटका भर्या करै / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- रमते राम फकीरां का दुनिया में ठौर-ठिकाणा के / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
- मुक्तक / महावीर प्रसाद ‘मधुप’