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"दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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22:35, 23 मार्च 2010 का अवतरण

दीवान-ए-ग़ालिब
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रचनाकार ग़ालिब
प्रकाशक हिन्द पॉकेट बुक्स (प्रा.) लिमिटेड, जी.टी. रोड दिलशाद गार्डन, शाहदरा, दिल्ली - 110095
वर्ष 1994
भाषा हिन्दी
विषय ग़ज़लें, रुबाईयां
विधा
पृष्ठ 159
ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।

(दीवाने-ग़ालिब एक बहु-प्रकाशित पुस्तक है। हर पुस्तक में शब्द में अलग-अलग तरह से छपे हुए हैं जो की अनुवाद करने वाले पर निर्भर करते हैं इसलिए हो सकता है कि इस भाग में कुछ शब्द शुद्द हिंदी में ना हों)


  1. नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का / ग़ालिब
  2. जराहत तोहफ़ा अलमास अरमुग़ां / ग़ालिब
  3. जुज़ क़ैस और कोई न आया / ग़ालिब
  4. कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया / ग़ालिब
  5. दिल मेरा सोज़े-निहां से बेमहाबा जल गया / ग़ालिब
  6. शौक़ हर रंग रक़ीबे-सरो-सामां निकला / ग़ालिब
  7. धमकी में मर गया / ग़ालिब
  8. शुमार-ए-सुबहा मरग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल पसंद आया / ग़ालिब
  9. दहर में नक़्शे-वफ़ा / ग़ालिब
  10. सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर / ग़ालिब
  11. न होगा यक बयाबां मांदगी से ज़ौक़ कम मेरा / ग़ालिब
  12. सरापा रहने-इशक़ो / ग़ालिब
  13. महरम नहीं है तू ही नवाहाए-राज़ का / ग़ालिब
  14. बज़्मे-शाहनशाह में अशआ़र का दफ़्तर खुला / ग़ालिब
  15. शब, कि बर्क़े सोज़ें-दिल से ज़ोहरा-ए-अब्र आब था /ग़ालिब
  16. एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब / ग़ालिब
  17. बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना / ग़ालिब
  18. शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रस्तख़ेज़-अन्दाज़ा था / ग़ालिब
  19. दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी सअई फ़रमायेंगे क्या / ग़ालिब
  20. ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता / ग़ालिब
  21. हवस को है निशात-ए-कार / ग़ालिब
  22. दरख़ुरे-क़हरो-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ / ग़ालिब
  23. असद हम वह जुनूं-जौलां गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं / ग़ालिब
  24. पए-नज्रे-करम तोहफ़ा है शर्मे-ना-रसाई का / ग़ालिब
  25. गर न अन्दोहे-शबे-फ़ुरक़त बयां हो जाएगा / ग़ालिब
  26. दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ / ग़ालिब
  27. गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का / ग़ालिब
  28. क़तरा-ए-मै बस कि हैरत / ग़ालिब
  29. जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने / ग़ालिब
  30. मैं और बज़्मे-मै से / ग़ालिब
  31. घर हमारा जो न रोते भी तो वीरां होता / ग़ालिब
  32. न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता / ग़ालिब
  33. यक़ ज़र्रा-ए-जमीं नही बेकार बाग़ का / ग़ालिब
  34. वो मेरी चीन-ए-जबीं से ग़मे-पिनहां समझा / ग़ालिब
  35. फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया / ग़ालिब
  36. हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था / ग़ालिब
  37. लब-ए-ख़ुशक दर-तिशनगी-मुरदगां का / ग़ालिब
  38. तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था / ग़ालिब
  39. शब कि वो मज़लिस-फ़रोज़े-ख़िल्वते-नामूस था / ग़ालिब
  40. आईना देख अपना सा मुंह लेके रह गए / ग़ालिब
  41. अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा / ग़ालिब
  42. रश्क़ कहता है कि उसका ग़ैर से इख़लास, हैफ़! / ग़ालिब
  43. ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयाँ अपना / ग़ालिब
  44. सुरमा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मेरी क़ीमत ये है / ग़ालिब
  45. ग़ाफ़िल ब-वहमे-नाज़ खुद-आरा है वर्ना यां / ग़ालिब
  46. ज़ौर से बाज़ आये पर बाज़ आये क्या / ग़ालिब
  47. लताफ़त बे-कसाफ़त जलवा पैदा कर नहीं सकती / ग़ालिब
  48. इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना / ग़ालिब
  49. आमद-ए-ख़त से हुआ है / ग़ालिब
  50. हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बाद / ग़ालिब
  51. बला से हैं जो ये पेशे-नज़र दरो-दीवार / ग़ालिब
  52. घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर / ग़ालिब
  53. क्यों जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर / ग़ालिब
  54. है बस कि हर इक उनके इशारे में निशाँ और / ग़ालिब
  55. लरज़ता है मेरा दिल, ज़हमते-मेहरे-दरख़्शां पर / ग़ालिब
  56. अबरू से है क्या उस निगहे-नाज़ को पैबंद / ग़ालिब
  57. लाज़िम था कि देखो मेरा रस्ता कोई दिन और / ग़ालिब
  58. क्यों कर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़ / ग़ालिब
  59. न गुल-ए-नग़्मा हूँ / ग़ालिब
  60. मुज़्दा-ऐ-ज़ौक़े-असीरी कि नज़र आता है / ग़ालिब
  61. रुख़े-निगार से है सोज़े-जाविदानी-ए-शम्अ़ / ग़ालिब
  62. ज़ख़्म पर छिड़कें कहां तिफ़लाने-बेपरवा नमक / ग़ालिब
  63. आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / ग़ालिब
  64. है किस क़दर हलाक फ़रेबे-वफ़ाए-गुल / ग़ालिब
  65. ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश-अज़-यक-नफ़स / ग़ालिब
  66. वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ / ग़ालिब
  67. की वफ़ा हमसे तो ग़ैर उसे जफ़ा कहते हैं / ग़ालिब
  68. पाए-अफ़गार पे जब से तुझे रहम आया है / ग़ालिब
  69. आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं /ग़ालिब
  70. ओहदे से मदहे-नाज़ के बाहर न आ सका / ग़ालिब
  71. मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त / ग़ालिब
  72. हमसे खुल जाओ बवक़्ते-मैपरस्ती एक दिन / ग़ालिब
  73. हम पर जफ़ा से तर्के-वफ़ा का गुमाँ नहीं / ग़ालिब
  74. माना-ए-दश्त नावर्दी कोई तदबीर नहीं / ग़ालिब
  75. मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें / ग़ालिब
  76. इश्क़ तासीर से नौमेद नहीं / ग़ालिब
  77. जहाँ तेरा नक़्शे क़दम / ग़ालिब
  78. मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में / ग़ालिब
  79. कल के लिए आज कर न ख़िस्सत शराब में / ग़ालिब
  80. हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं / ग़ालिब
  81. ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं / ग़ालिब
  82. नाला जुज़ हुस्ने-तलब ए सितम-ईजाद नहीं / ग़ालिब
  83. दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा / ग़ालिब
  84. हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर / ग़ालिब
  85. ये जो हम हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं / ग़ालिब
  86. नहीं कि मुझ को क़यामत का ऐतिक़ाद नहीं / ग़ालिब
  87. तेरे तौसन को सबा बांधते हैं / ग़ालिब
  88. दायम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं / ग़ालिब
  89. सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमाया हो गईं / ग़ालिब
  90. दीवानगी से दोश पे जुन्नार भी नहीं / ग़ालिब
  91. नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िया के दरख़ुर मेरे तन में / ग़ालिब
  92. मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं / ग़ालिब
  93. दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आये क्यों / ग़ालिब
  94. गुंचा-ए-नाशिगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि क्यों / ग़ालिब
  95. हसद से दिल अगर / ग़ालिब
  96. काअ़बा में जा रहा तो न दो ताना / ग़ालिब
  97. वारस्ता इससे हैं कि मुहब्बत ही क्यों न हो / ग़ालिब
  98. क़फ़स में हूं गर अच्छा भी न जाने मेरे शेवन को / ग़ालिब
  99. धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीमतन के पाँव / ग़ालिब
  100. वां पहुंचकर जो ग़श आता पै-ए-दम है हमको / ग़ालिब
  101. तुम जानो तुमको ग़ैर से जो रस्मो-राह हो / ग़ालिब
  102. गई वो बात कि हो गुफ़्तगू तो क्योंकर हो / ग़ालिब
  103. किसी को दे के दिल कोई नवासंजे-फ़ुग़ाँ क्यों हो / ग़ालिब
  104. रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो / ग़ालिब
  105. शबे-विसाल में मूनिस गया है बन तकिया / ग़ालिब
  106. सद जल्वा रू-ब-रू है / ग़ालिब
  107. मैं हूँ मुश्ताक़े-जफ़ा मुझ पे जफ़ा और सही / ग़ालिब
  108. मस्जिद के ज़ेरे-साया ख़राबात चाहिए / ग़ालिब
  109. बिसाते-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा-ख़ूं वो भी / ग़ालिब
  110. है बज़्मे-बुतां में सुख़न आज़ु्र्दा लबों से / ग़ालिब
  111. ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की / ग़ालिब
  112. क्या तंग हम सितमज़दगां का जहान है / ग़ालिब
  113. दर्द से मेरे है तुझ को बेक़रारी हाय हाय / ग़ालिब
  114. सर गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है / ग़ालिब
  115. गर ख़ामुशी से फ़ायदा इख़फ़ा-ए-हाल है / ग़ालिब
  116. एक जा हर्फ़े-वफ़ा का लिक्खा था सो भी मिट गया / ग़ालिब
  117. मेरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबादे-तमन्ना है / ग़ालिब
  118. रहम कर ज़ालिम, कि क्या बूद-ए-चिराग़-ए-कुश्ता है / ग़ालिब
  119. इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही / ग़ालिब
  120. है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे / ग़ालिब
  121. उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किये / ग़ालिब
  122. देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाये है / ग़ालिब
  123. कसरत-आराई-ए-वहदत है परस्तारी-ए-वहम / ग़ालिब
  124. सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है / ग़ालिब
  125. दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई / ग़ालिब
  126. तस्कीं को हम न रोयें जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले / ग़ालिब
  127. कोई दिन गर ज़िन्दगानी और है / ग़ालिब
  128. कोई उम्मीद बर नहीं आती / ग़ालिब
  129. दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है / ग़ालिब
  130. फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है / ग़ालिब
  131. जुनूं तोहमत-कशे-तस्कीं न हो गर शादमानी की / ग़ालिब
  132. निकोहिश है सज़ा, फ़रियादी-ए-बेदाद-ए-दिलबर की / ग़ालिब
  133. बे-ऐतदालियों से सुबुक सब में हम हुए / ग़ालिब
  134. जो न नक़्दे-दाग़े-दिल की करे शोला पासबानी / ग़ालिब
  135. ज़ुल्मतकदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है / ग़ालिब
  136. आ कि मेरी जां को क़रार नहीं है / ग़ालिब
  137. हुजूम-ए-ग़म से, यां तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है / ग़ालिब
  138. पा-ब दामन हो रहा हूँ, बस कि मैं सहरा-नवर्द / ग़ालिब
  139. जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे / ग़ालिब
  140. हुस्न-ए-माह गरचे बहंगामे-कमाल अच्छा है / ग़ालिब
  141. न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही / ग़ालिब
  142. अ़जब निशात से, जल्लाद के, चले हैं हम आगे / ग़ालिब
  143. शिकवे के नाम से बेमेहर ख़फ़ा होता है / ग़ालिब
  144. हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है / ग़ालिब
  145. मैं उन्हें छेड़ूँ और वो / ग़ालिब
  146. ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के / ग़ालिब
  147. फिर इस अन्दाज़ से बहार आई / ग़ालिब
  148. तग़ाफ़ुल-दोस्त हूँ मेरा दिमाग़-ए-अ़ज्ज़ आ़ली है / ग़ालिब
  149. कब वो सुनता है कहानी मेरी / ग़ालिब
  150. गुलशन की तेरी सोहबत अज़ बसकि ख़ुश आई है / ग़ालिब
  151. जिस जख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की / ग़ालिब
  152. सीमाब पुश्त-ए-गर्मी-ए-आईना दे, हैं हम / ग़ालिब
  153. हैं वस्ल-ओ-हिज़्र आ़लम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में / ग़ालिब
  154. चाहिये अच्छों को जितना चाहिये / ग़ालिब
  155. हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायां मुझ से / ग़ालिब
  156. नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने / ग़ालिब
  157. चाक की ख़्वाहिश / ग़ालिब
  158. वो आके ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे / ग़ालिब
  159. ख़तर है, रिश्ता-ए-उल्फ़त / ग़ालिब
  160. फ़रियाद की कोई लै नहीं है / ग़ालिब
  161. न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहते दिल का / ग़ालिब
  162. हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते / ग़ालिब
  163. करे है बादा, तेरे लब से / ग़ालिब
  164. क्यूं न हो चश्म-ए-बुतां महव-ए-तग़ाफ़ुल / ग़ालिब
  165. दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिये / ग़ालिब
  166. कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाये है मुझ से / ग़ालिब
  167. लाग़र इतना हूं कि गर तू बज़्म में जा दे मुझे / ग़ालिब
  168. बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे / ग़ालिब
  169. कहूँ जो हाल, तो कहते हो / ग़ालिब
  170. रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये / ग़ालिब
  171. इब्ने-मरियम हुआ करे कोई / ग़ालिब
  172. बहुत सही ग़म-ए-गेती शराब कम क्या है / ग़ालिब
  173. बाग़ पाकर ख़फ़कानी ये डराता है मुझे / ग़ालिब
  174. रौंदी हुई है कौकबए-शहरयार की / ग़ालिब
  175. हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाइश पे दम निकले / ग़ालिब
  176. हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना / ग़ालिब
  177. ख़मोशियों में तमाशा, अदा निकलती है / ग़ालिब
  178. जिस जा नसीम शाना-कश-ए ज़ुल्फ़-ए-यार है / ग़ालिब
  179. आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे / ग़ालिब
  180. शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है / ग़ालिब
  181. छिड़के है शबनम आईना-ए-बर्ग-ए-गुल पर आब / ग़ालिब
  182. शोले से न होती हवस-ए-शोला ने जो की / ग़ालिब
  183. मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की / ग़ालिब
  184. ग़म खाने में बोदा दिले-नाकाम बहुत है / ग़ालिब
  185. मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए / ग़ालिब
  186. रहा बला में भी मुब्तिलाए-आफ़ते-रश्क / ग़ालिब