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ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर
रचनाकार | 'सज्जन' धर्मेन्द्र |
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प्रकाशक | अंजुमन प्रकाशन, 942 आर्य कन्या चौराहा, मुट्ठीगंज, इलाहाबाद-211003, उत्तर प्रदेश, भारत |
वर्ष | 2014 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 112 |
ISBN | 978-93-83969-23-4 |
विविध | यह पुस्तक अंजुमन प्रकाशन के साहित्य सुलभ संस्करण के अंतर्गत प्रकाशित है। |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर कारख़ानों पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मिल नगर से न फिर वो नदी रह गई / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दे दी अपनी जान किसी ने धान उगाने में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- छाँव से सटकर खड़ी है धूप ‘सज्जन’ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- है मरना डूब के, मेरा मुकद्दर, भूल जाता हूँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सूरज हुआ है पस्त ये मौसम तो देखिए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ढहे मस्जिद कहीं, सच्चा पुजारी टूट जाता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दिल है तारा, रहे जहाँ, चमके / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- यहाँ कोई धरम नहीं मिलता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- वो भी साबुत बचा नहीं होता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मेरे प्रेम दिये को भाता तेरा अँगना था / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- चिड़िया की जाँ लेने में इक दाना लगता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जिन्हें हम देवता समझते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ख़ुद को ख़ुद ही झुठलाओ मत / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जहाँ जाओ जुनून मिलता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आँखें बंद पड़ीं गीजर की फिर भी दहता है पानी / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- काश यादों को करीने से लगा पाता मैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- चंदा तारे बन रातों में नभ को जाती हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- गरीबों के लहू से जो महल अपने बनाता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- कहे कौन उठ दोपहर हो गई / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- निजी पाप की मैं स्वयं को सजा दूँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- उड़कर नभ तक रेत जली / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- बिन तुम्हारे होश में रहना सज़ा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- छोटे छोटे घर जब हमसे लेता है बाजार / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सत्ता की गर हो चाह तो दंगा कराइये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दिल हो गया है जबसे टूटा हुआ खिलौना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मिलजुल के जब कतार में चलती हैं चींटियाँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- धर्म की है ये दुकाँ आग लगा देते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- कुछ तो अपने लिये बचाया कर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जुड़ो जमीं से कहते थे जो वो ख़ुद नभ के दास हो गए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मेरे संग-दिल में रहा चाहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाएँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- निरक्षरता अगर इस देश की काफ़ूर हो जाए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- रह गया ठूँठ, कहाँ अब वो शज़र बाकी है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- न दोष कुछ तेरी कटार का है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- तर्क जब से जवाँ हो गए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मेरा माथा उबलती धूप छू के लौट जाती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दिल के सारे राज़ खोने जा रहा हूँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जग ने कैसा मुझको बना दिया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- पी खारा मीठा बरसाना सब के बस की बात नहीं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दूर देश से आई रानी ऐसे शासन कर पाई / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सभी नदियों को पीने का यही अंजाम होता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- बरगदों से जियादा घना कौन है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- भिनभिनाने से तेरे कौन सँभल जाता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जब हवा रहनुमा हो गई / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हम काफ़िया रदीफ़ बहर नाप रहे हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- करके उपवास तू उसको न सता मान भी जा / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अच्छे अच्छों की जान लेता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ठहर, कल झील निकलेगी इसी से / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- बाजुओं की थकान जिन्दा रख / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- नीट आँखों से जब पिलाया कर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जो सरल हो गये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- नहीं मिला जो जहाँ में जिसको वही उसे खींचता रहा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- धूप से कर छाँव छलनी गर्मियों की ये दुपहरी / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- तलवे जो चाटते वो वफ़ादार हम नहीं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अनछुए फूल चुनकर रची हैं प्रिये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हर गाँव में नगर में ईमान बिक रहा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ला प्रलय देती नदी की पीर है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जो हैं मिट गए तेरी आन पर वो सदा मिलेंगे यहीं कहीं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- देश के हर धर्म, भाषा, जाति, जन से प्यार है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- नमी व धूप हवा दे गुलाब खिलने दे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- टुकड़ों टुकड़ों में ही फट कर जाना पड़ता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- पाँव रखे बिन मजलूमों पे आगे कौन बढ़ा / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- खूँ के दरिया में जब रंगों का गोता लगता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- फूल हैं अग्नि के खिले हर सू / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- साल नया आता जैसे घूँघट में आती नई बहुरिया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- तन में मन में शुद्ध मिट्टी है अभी तक गाँव में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मुर्दे जाग रहे हैं कब्रों और मसानों में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- गर अपने प्यार का सागर सनम गहरा नहीं होता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जिंदगी हो गई हाज़िरी की तरह / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हजार बार हार हो तो हो रहे तो हो रहे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सलाखें न टूटें इन आँखों की जानम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हैं अंग अंग तेरे सौ गीत सौ ग़ज़ल / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- राम से, कृष्ण से, बुद्ध से, बापुओं की शरण पा गए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- न राहुल से न मोदी से न खाकी से न खादी से / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आग में इसको अभी न डालो मिट्टी गीली है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- साथ चल के भी मिल न पाये हम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- क्रांति के लाखों स्वरों में एक स्वर मेरा भी है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- न कर इश्क इनसे दगा देंगे तारे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अच्छे बच्चे सब खाते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दवा काबिल से सीखो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जो मिल -जुल के करते बदी की हिफ़ाजत / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आग नयनों में आग पलने दो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दिया ही जल रहा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जुबाँ मिली पर कभी नहीं कुछ कहता जूता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- राज़ दिल का अश्क़ बन-बनकर छलकता रोज ही / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- इक दिन हर इक पुरानी दीवार टूटती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आँधियों का प्रभाव देखा कर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- है ये अनुभव की बात माना कर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जब से हुई मेरे हृद्य की संगिनी मेरी कलम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- याँ जो बंदे जहीन होते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र