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हम खड़े एकांत में
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रचनाकार | कुमार रवींद्र |
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इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- देवा चुप हैं / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सुरज देवता हुए अपाहिज / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सुखी रहे दिन / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- पड़ा सूना देवचौरा / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सुनिए राजन / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- फिर कभी जब आयेंगे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- भीजे दास कबीर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सूने सारे ड्योढ़ी-द्वारे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- शाश्वत, सच है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- खुली खिड़की / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सागर-तट है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- गीत-मन संकट में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सुबह के राख होने की कथा / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- साँझे आँसू-हँसी-दुआएँ / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- छज्जे पर है धूप ज़रा सी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हम मूरख हैं / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- साधू लेटा ऑंखें-मूँदे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- साँझ हुई / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- चट्टानी है शहर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- बहुत कठिन है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- अरे काश्वी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- कहो, भला कैसे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सूर्यरथ के थके घोड़े / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- अब तो चेतो / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हुआ फ़रेबी हिरदय / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- नदी दुखी है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- देखो तो / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- दोहा-गीत / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- इक अचरज का खेला देखा / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- घना अँधेरा हुआ अवध में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- साधो, अबके किशन-कन्हैया / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- बन्धु, समय के चक्रव्यूह में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- इस खिड़की से / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- तैर रहा इतिहास नदी में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- प्रजा दुखी है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- उजियारे बुझते तारे में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- रात हुआ क्या / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- महापंत ने कहा / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- वक्त हो रहा अगियापाखी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हवा में ज़िक्र सूरज का / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- देहली-आँगन-कुआँ बुढ़ाये / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- धुंध नदी पर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- गीत-बीज / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हिरदय में अनबोले पड़े रहे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- पूर्वजों ने रची पगडंडी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हम गुज़रे अकेले / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- अभी सुबह के चार बजे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- देश-काल गति कठिन / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- घर की पुरा-कथाएँ / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- घाम ओढ़ हँस रही डगर है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- खड़े रामजी निपट अकेले / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- तुम क्या जानो / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- युग बीता / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- दुखी बहुत कबिरा की कासी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हवाओं ने किया उत्पात / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हम अपने ही सिरजे जंगल में खोये / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- उधर देखो सूर्यरथ को / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सुनो प्रजाजन / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- आँगन बँटा / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- घटनाओं के जंगल में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- इच्छाओं को ऋतु होने दो / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हवा कह रही / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हमने जो कुछ रचा / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- पोथियों में ही बचे हैं दुआघर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हम समय के चाक पर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हम हैं गीतों के अभ्यासी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- विषजीवी हो रहे हुकुम सब / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- परजाजन मुँह ताक रहे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- बसे हिरदय ढाई आखर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हाँ, यह सच है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- कहीं दूर बज रही बाँसुरी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- बरसों पहले / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हम खड़े एकांत में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- प्रजाजनों यह शहर नया है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सुबह से सूर्यास्त होता / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हम मूरख हैं / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- शव पड़े हैं राजद्वारे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- गाँव-पुरवे भी दहे हैं / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- दिन सूरज के पूत नहीं / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- किसे दोष दें / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- अंधे कालखण्ड के साखी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- कहो घाट पर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सबके गुइयाँ एक रामजी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- राजाओं के खेले में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- हम खड़े हैं द्वीप पर / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- अभयारण्य राजधानी में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- बंधु, करें क्या / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- बादल-बिजुरी-बरखा आये / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- आँगन का इतिहास हमारा / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- नदी सूखी / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- कर्महीन हम / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- साईं सबका, बंधु, एक ही / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- दैव बली है / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- रँभा रहीं कान्हा की नावें / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- कौन पढ़े सूरज की पाती / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- पुरखे नहीं रहे / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- अब इस घर में / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र
- सभी सुखी हों / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र