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21:57, 31 मई 2010 के समय का अवतरण
मधुज्वाल
रचनाकार | सुमित्रानंदन पंत |
---|---|
प्रकाशक | भारती भंडार, लीडर प्रेस, प्रयाग |
वर्ष | १९४७ |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | |
पृष्ठ | १८२ |
ISBN | |
विविध | यह उमर ख़ैयाम की रुबाइयों का फ़ारसी से हिन्दी में अनुवाद है। |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- प्रिय बच्चन को / सुमित्रानंदन पंत
- रे जागो, बीती स्वप्न रात! / सुमित्रानंदन पंत
- खोल कर मदिरालय का द्वार / सुमित्रानंदन पंत
- प्रीति सुरा भर, साक़ी सुन्दर / सुमित्रानंदन पंत
- हाय, कोमल गुलाब के गाल / सुमित्रानंदन पंत
- मदिराधर कर पान / सुमित्रानंदन पंत
- वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम / सुमित्रानंदन पंत
- बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास / सुमित्रानंदन पंत
- वृथा यह कल की चिन्ता, प्राण / सुमित्रानंदन पंत
- मदिराधर कर पान, सखे! / सुमित्रानंदन पंत
- राह चलते चुभता जो शूल / सुमित्रानंदन पंत
- सुरालय हो मेरा संसार / सुमित्रानंदन पंत
- मदिराधर रस पान कर रहस / सुमित्रानंदन पंत
- हंस से बोली व्याकुल मीन / सुमित्रानंदन पंत
- ज्ञानोज्वल जिनका अंतस्तल / सुमित्रानंदन पंत
- मदिर अधरों वाली सुकुमार / सुमित्रानंदन पंत
- अधर मधु किसने किया सृजन / सुमित्रानंदन पंत
- उमर दिवस निशि, काल और दिशि / सुमित्रानंदन पंत
- छूट जाएँ जब तन से प्राण / सुमित्रानंदन पंत
- अधर घट में भर मधु मुसकान / सुमित्रानंदन पंत
- तुम ऋतुपति प्रिय सुघर कुसुम चय / सुमित्रानंदन पंत
- यहाँ नीलिमा हँसती निर्मल / सुमित्रानंदन पंत
- सुनहले फूलों से रच अंग / सुमित्रानंदन पंत
- इस जीवन का भेद / सुमित्रानंदन पंत
- फेन ग्रथित जल हरित शष्प दल / सुमित्रानंदन पंत
- हृदय जो सदय प्रणय आगार / सुमित्रानंदन पंत
- चपल पलक से कुटिल अलक से / सुमित्रानंदन पंत
- भला कैसे कोई निःसार / सुमित्रानंदन पंत
- रम्य मधुवन हो स्वर्ग समान / सुमित्रानंदन पंत
- वन माला में जो गुल लाला / सुमित्रानंदन पंत
- उमर दो दिन का यह संसार / सुमित्रानंदन पंत
- मधुऋतु चंचल, सरिता ध्वनि कल / सुमित्रानंदन पंत
- उमर कर सब से मृदु बर्ताव / सुमित्रानंदन पंत
- लज्जारुण मुख बैठी सम्मुख / सुमित्रानंदन पंत
- मधुर साक़ी, भर दे मधु पात्र / सुमित्रानंदन पंत
- पंचम पिकरव, विकल मनोभव / सुमित्रानंदन पंत
- सुरा पान से, प्रीति गान से / सुमित्रानंदन पंत
- अधर सुख से हों स्पंदित प्राण / सुमित्रानंदन पंत
- अंगों में हो भरी उमंग / सुमित्रानंदन पंत
- बंधु, चाहता काल / सुमित्रानंदन पंत
- पूछते मुझसे, ऐ खैयाम / सुमित्रानंदन पंत
- कल कल छल छल सरिता का जल / सुमित्रानंदन पंत
- उमर मत माँग दया का दान / सुमित्रानंदन पंत
- प्रणय लहरियों में सुख मंथर / सुमित्रानंदन पंत
- पाप न कर खै़याम / सुमित्रानंदन पंत
- सरिता से बहते जाते / सुमित्रानंदन पंत
- दुख से मथित व्यथित यदि तू चित / सुमित्रानंदन पंत
- मदिराधर चुंबन प्रसन्न मन / सुमित्रानंदन पंत
- स्तुत्य यदि तेरे काम / सुमित्रानंदन पंत
- अपना आना किसने जाना / सुमित्रानंदन पंत
- मद से कंपित मदिराधर स्मित / सुमित्रानंदन पंत
- कितने ही कल चले गये छल / सुमित्रानंदन पंत
- प्रिये, गाओ बहार के गान / सुमित्रानंदन पंत
- मुझे यदि मिले स्वर्ग का द्वार / सुमित्रानंदन पंत
- चंचल शबनम सा यह जीवन / सुमित्रानंदन पंत
- कहाँ वह करुणा करुणागार / सुमित्रानंदन पंत
- हे मेरे अमर सुरावाहक / सुमित्रानंदन पंत
- उमर रह धीर वीर बन रह / सुमित्रानंदन पंत
- राह में यों मत चल खै़याम / सुमित्रानंदन पंत
- तरुण साक़ी भी हो जो साथ / सुमित्रानंदन पंत
- उमर पी साँस साँस में चाह / सुमित्रानंदन पंत
- विरह व्यथित मन साक़ी तत्क्षण / सुमित्रानंदन पंत
- ढालता रहता वह अविराम / सुमित्रानंदन पंत
- श्यामल दूर्वा पुलकित भूतल / सुमित्रानंदन पंत
- मीना की ग्रीवा से झर झर / सुमित्रानंदन पंत
- चंचल जीवन स्रोत / सुमित्रानंदन पंत
- यह जग मेघों की चल माया / सुमित्रानंदन पंत
- प्रेम के पांथ वास में आज / सुमित्रानंदन पंत
- स्वर्गिक अप्सरि सी प्रिय सहचरि / सुमित्रानंदन पंत
- विरह मंथित उर का आमोद / सुमित्रानंदन पंत
- सुरा में दुरा स्वर्ग का सार / सुमित्रानंदन पंत
- विश्व वीणा का जो कल गान / सुमित्रानंदन पंत
- प्रणय का हो उर में उन्मेष / सुमित्रानंदन पंत
- तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम / सुमित्रानंदन पंत
- मधुर साक़ी, उर का मधु पात्र / सुमित्रानंदन पंत
- यह हँसमुख मृदु दूर्वादल है / सुमित्रानंदन पंत
- उस हरी दूब के ऊपर / सुमित्रानंदन पंत
- मनुज कुछ धन में जिनके प्राण / सुमित्रानंदन पंत
- जिसके प्रति अपनाव / सुमित्रानंदन पंत
- यदि तेरा अंचल वाहक / सुमित्रानंदन पंत
- इस पल पल की पीड़ा का / सुमित्रानंदन पंत
- वह प्याला भर साक़ी सुन्दर / सुमित्रानंदन पंत
- पान करना या करना प्यार / सुमित्रानंदन पंत
- अंबर फिर फिर क्या करता स्थिर / सुमित्रानंदन पंत
- हुआ इस जग में ऐसा कौन / सुमित्रानंदन पंत
- अगर साक़ी तेरा पागल / सुमित्रानंदन पंत
- स्नेहमय हुआ हृदय का दीप / सुमित्रानंदन पंत
- उमर क्यों मॄषा स्वर्ग की तृषा / सुमित्रानंदन पंत
- जब तुम किसी मधुर अवसर पर / सुमित्रानंदन पंत
- बाला सुन्दर हाला घट भर / सुमित्रानंदन पंत
- तंद्रित तरुतल छाया शीतल / सुमित्रानंदन पंत
- मुख छवि विलोक जो अपलक / सुमित्रानंदन पंत
- प्रिया तरुणी हो, तटिनी कूल / सुमित्रानंदन पंत
- जगत छलना की उन्हें न चाह / सुमित्रानंदन पंत
- मेरी मधुप्रिय आत्मा प्रभुवर / सुमित्रानंदन पंत
- पान पात्र था प्रेम छात्र / सुमित्रानंदन पंत
- वह हृदय नहीं / सुमित्रानंदन पंत
- अगर हो सकते हमको ज्ञात / सुमित्रानंदन पंत
- चाँद ने मार रजत का तीर / सुमित्रानंदन पंत
- छलक नत नीलम घट से मौन / सुमित्रानंदन पंत
- गगन के चपल तुरग को साध / सुमित्रानंदन पंत
- मधु के दिवस, गंधवह सालस / सुमित्रानंदन पंत
- सलज गुलाबी गालों वाली / सुमित्रानंदन पंत
- कितने कोमल कुसुम नवल / सुमित्रानंदन पंत
- नवल हर्षमय नवल वर्ष यह / सुमित्रानंदन पंत
- फूलों के कोमल करतल पर / सुमित्रानंदन पंत
- मादक स्वप्निल प्याला फेनिल / सुमित्रानंदन पंत
- मधु के घन से, मंद पवन से / सुमित्रानंदन पंत
- सरित पुलिन पर सोया था मैं / सुमित्रानंदन पंत
- निभृत विजन में मेरे मन में / सुमित्रानंदन पंत
- उमर तीर्थ यात्री ज्यों थककर / सुमित्रानंदन पंत
- तू प्रसन्न रह महाकाल यह / सुमित्रानंदन पंत
- मेरे नयनों के आँसू का / सुमित्रानंदन पंत
- यदि मदिरा मिलती हो तुझको / सुमित्रानंदन पंत
- छोड़ काज, आओ मधु प्रेयसि / सुमित्रानंदन पंत
- वह मनुष्य जिसके रहने को / सुमित्रानंदन पंत
- तूस और क़ाऊस देश से / सुमित्रानंदन पंत
- बिन्दु सिन्धु से उमर विलग हो / सुमित्रानंदन पंत
- वीणा वंशी के दो स्वर जब / सुमित्रानंदन पंत
- सुरापान को, प्रणय गान को / सुमित्रानंदन पंत
- प्रिये, तुम्हारी मृदु ग्रीवा पर / सुमित्रानंदन पंत
- हे मनुष्य, गोपन रहस्य यह / सुमित्रानंदन पंत
- बाहर भीतर ऊपर नीचे / सुमित्रानंदन पंत
- तेरा प्रेम हृदय में जिसके / सुमित्रानंदन पंत
- लाओ हे लज्जास्मित प्रेयसि / सुमित्रानंदन पंत
- मदिर नयन की, फूल वदन की / सुमित्रानंदन पंत
- उस गुलवदनी को पाकर भी / सुमित्रानंदन पंत
- अंधकार में लिखा हुआ जो / सुमित्रानंदन पंत
- आतप आकुल मृदुल कुसुम कुल / सुमित्रानंदन पंत
- उमर न कभी हरित होगा फिर / सुमित्रानंदन पंत
- अंध मोह के बंध तोड़कर / सुमित्रानंदन पंत
- जिसके उर का अंध कूप / सुमित्रानंदन पंत
- साक़ी ईश्वर है करुणाकर / सुमित्रानंदन पंत
- हाय, कहीं होता यदि कोई / सुमित्रानंदन पंत
- प्रिये, तुम्हारे बाहु पाश के / सुमित्रानंदन पंत
- शीतल तरु छाया में बैठे / सुमित्रानंदन पंत
- मेरी आत्मा जो कि तुम्हारी / सुमित्रानंदन पंत
- तेरे करुणांबुधि का केवल / सुमित्रानंदन पंत
- तेरी क़ातिल असि से मेरा / सुमित्रानंदन पंत
- इस जग की चल छाया चित्रित / सुमित्रानंदन पंत
- निस्तल यह जीवन रहस्य / सुमित्रानंदन पंत
- सौ सौ धर्मांधों से बढ़ कर / सुमित्रानंदन पंत
- बुझता हो जीवन प्रदीप का / सुमित्रानंदन पंत
- सुनता हूँ रमजान माह का / सुमित्रानंदन पंत
- मधु बाला के साथ सुरा पी / सुमित्रानंदन पंत
- लताद्रुमों खग पशु कुसुमों में / सुमित्रानंदन पंत
- यहाँ उमर के मदिरालय में / सुमित्रानंदन पंत
- आह, समापन हुई प्रणय की / सुमित्रानंदन पंत
- सतत यत्न कर सुख हित कातर / सुमित्रानंदन पंत
- हाय, चुक गया अब सारा धन / सुमित्रानंदन पंत
- धर्म वंचकों को यदि मुझसे / सुमित्रानंदन पंत
- दो शब्दों में कह दूँ तुमसे / सुमित्रानंदन पंत