दर्द के दस्तावेज
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रचनाकार | सांवर दइया |
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प्रकाशक | धरती प्रकाशन,गंगाशहर (बीकानेर) राजस्थान |
वर्ष | 1978 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 84 |
ISBN | |
विविध | काव्य |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- आत्मकथ्य / सांवर दइया
- मेरे खातिर सांस का एतबार है ग़ज़ल / सांवर दइया
- सच कहता हूं मेरी तकलीफ़ यही है / सांवर दइया
- सोचते थे पखेरू आओ चलें कहीं उड़कर / सांवर दइया
- इन दरवाजों पर खुशहाली ज़रा दस्तक दे तो देखूं / सांवर दइया
- कैसे-कैसे तमाशे दिखा रहीं रोटियां / सांवर दइया
- आज हम दोनों सोचें, कुछ ऐसा करें / सांवर दइया
- आपका भी इंतजार है, मिलिए दयानतदारों से / सांवर दइया
- ढेला चाहे मत फेंक, हाथ में तो ले ले / सांवर दइया
- सूनी दिखती सड़कें, चुपचाप हवाएं बहती हैं / सांवर दइया
- इतिहास के ये कौन से छंद है ? / सांवर दइया
- हमें पूछो, हम बताएंगे जो हुआ वहां / सांवर दइया
- आज सरेआम घोषणा कर रहे है आप / सांवर दइया
- पीछे हटने का कोई कारण नहीं जब हम ठीक हैं / सांवर दइया
- यहां सरेआम उनकी इनायत अब भी है / सांवर दइया
- अपनी जिंदगी का हमेशा यह आलम है / सांवर दइया
- हालत बड़े अजीब, दिल शाद नहीं / सांवर दइया
- देखिए हमसे हुआ है यह कुसूर / सांवर दइया
- गिर रहे खून के कतरे देखो / सांवर दइया
- ऐसी सुविधाओं से घिर गए लोग / सांवर दइया
- हवा आएगी, खिड़कियां खोलो तो सही / सांवर दइया
- उठ खड़े हुए लोग अत्याचार के खिलाफ / सांवर दइया
- सुबह से पहले आयी कली शाम / सांवर दइया
- यह हरामज़ादा शहर देख तूं / सांवर दइया
- भीतर ऐर भीतर गए तो देखे ये मंजर / सांवर दइया
- जिनकी वज़ह से आप उदास हैं / सांवर दइया
- अपनी बेकारी ने यह काम किया / सांवर दइया
- चारों तरफ़ जो आज यहां हो रहा है / सांवर दइया
- जो हैं बेरहम, उन पर न कुछ रहम कीजिए / सांवर दइया
- यहां आपके ही लोग आपके खिलाफ़ हैं / सांवर दइया
- तू यहां के तौर-तरीकों से वाकिफ़ नहीं / सांवर दइया
- भीतर बैठें तो नश्तर-सी यादें होती हैं / सांवर दइया
- राख हटी तो अब हुए सोले लोग / सांवर दइया
- आपका शहर देख सदा सोचा करते हैं / सांवर दइया
- चाहे सिर कलम कर दीजिए / सांवर दइया
- दौड़ रहे हैं और हांफ रहे हैं लोग / सांवर दइया
- वहां दूर क्यों खड़े है, पास आइए / सांवर दइया
- आज हवाओं में जहर फैल रहा / सांवर दइया
- रोज मरता है सूरज, फिर भी सवेरा होता है / सांवर दइया
- चूमने चले नज़र आसमान की देख / सांवर दइया
- आसमां में कोई धुंधला सितारा होगा / सांवर दइया
- जिस दिन से दबा सच कहने का बीड़ा उठाया है / सांवर दइया
- आपने पुकारा, आ गए हम लीजिए / सांवर दइया
- मत पूछिए, कैसे-कैसे ख़्वाब लिए घूमता है वह / सांवर दइया
- सच कह उनके लिए डर हो गए हम / सांवर दइया
- वही ढंग, वही हिसाब चालू है / सांवर दइया
- बढ़ रही बग़ावत तो देखिए आप / सांवर दइया
- होती पहले ही यदि आपकी नीयत साफ़ / सांवर दइया
- हर घर में सडांध देती नाली है / सांवर दइया
- चीख उठे जब यहां-वहां बनी लकीर हम / सांवर दइया
- चलो कुछ बुझे-बुझे ही सही / सांवर दइया
- चलेंगे, गिरेंगे, गिरकर संभल लेंगे / सांवर दइया
- भर आयी आंखें भी नहीं छलकी हैं कई दफा / सांवर दइया
- पग-पग पर ढहने की आदत खो गई अब तो / सांवर दइया
- दिख रहे बाहर से तो हम-तुम जुड़े-जुड़े / सांवर दइया
- पांव तले जमीं औ’ सिर पर आकाश चाहिए / सांवर दइया
- आपको सिर्फ आपनी इज्जत का ख़याल है / सांवर दइया
- घर में छिप जाइए, अच्छा रहेगा / सांवर दइया
- हमने भूख का यहां ऐसा आलम देखा / सांवर दइया
- कभी धरना, कभी घेराव, कभी हड़ताल / सांवर दइया
- आज मिलकर खुली हवा में सांस तो लो / सांवर दइया
- वे चाहते ऐसा काम मिल जाए / सांवर दइया
- कुछ भी नहीं हुआ-सा लेकर लौटें हम / सांवर दइया
- नाम पहुंचे उनके, जो खिलाफ़ हैं / सांवर दइया
- ये उम्मीदें कैसे न होंगी बदरण्ग यार / सांवर दइया
- आकाश छूती इमारतें बनाने वालों / सांवर दइया
- आज यह देख क्या हुआ, अखबार हो गए लोग / सांवर दइया
- माना आज पहरे नहीं हैं / सांवर दइया
- जब देंगे हम कुछ बयां और / सांवर दइया
- घायल परिंदों की इतनी-सी कहानी देखो / सांवर दइया
- यहां-वहां-जहां आपने सिक्के उछले हैं / सांवर दइया
- यक़ीन न हो तो चलो देख लो अभी / सांवर दइया
- जीने का मजा किरकिरा है / सांवर दइया
- आज हर गली में दंगे हो रहे हैं / सांवर दइया
- मुझे न पूछो आज आदमी क्यों रो रहा है / सांवर दइया
- देख-देख रोज नए जांच आयोग / सांवर दइया
- खिड़कियां बंद करने लगे जो सभी / सांवर दइया
- यह माना आकाश में उड़ने लगे अब परिंदे / सांवर दइया
- जब से बरसों पुराना दर्द बिछड़ा है / सांवर दइया
- कह दो उनसे जो लाखों जुल्म किया करते हैं / सांवर दइया
- जब तय किया नहीं चलूंगा लीक पर / सांवर दइया
- आपका निज़ाम ये चलन आम हो रहे हैं / सांवर दइया