भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रथम शिथिल छन्दोमाला / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Kavita Kosh से
प्रथम शिथिल छन्दोमाला
क्या आपके पास इस पुस्तक के कवर की तस्वीर है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
रचनाकार | रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
---|---|
प्रकाशक | हिन्दी -ग्रन्थागार, पी-15, कलाकार स्ट्रीट, कलकत्ता-7 |
वर्ष | |
भाषा | |
विषय | |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
रोग शय्या पर
- सुरलोक के नृत्य-उत्सव में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अनिःशेष प्राण / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अकेला बैठा हूं यहा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अजस्र है दिन का प्रकाश / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इस महा विश्व में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अरी ओरी, मेरी भोर की चिरैया गौरैया / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- गहन इस रजनी में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- लगता है मुझे ऐसा हेमन्त / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हे प्राचीन तमस्विनी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरे दिन की शेष छाया / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जगत युगों से हो रही जमा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सवेरे उठते ही देखा निहारकर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यदि दीर्घ दुःख रात्रि ने / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नदी किसी एक कोने में सूखी सड़ी डाली एक / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अस्वस्थ शरीर यह / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अवसन्न आलोक की / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कब सोया था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- संसार के नाना क्षेत्र नाना कर्म में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सजीव खिलौने यदि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- रोग-दुःख रजनी के निरन्ध्र अन्धकार में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सवेरे ज्यों ही खुली आँख मेरी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दिन के मध्याह्न में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आरोग्य की राह में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मोर में ही देखा आज निर्मल प्रकाश में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जीवन के दुःख शोक ताप में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अपनी इस कीर्ति पर नहीं है विश्वास मेरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- खोल दो, खोल दो द्वार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- चैतन्य ज्योति जो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दुःखद दुःख के घेरे में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सृष्टि का चल रहा खेल है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज की अरण्य सभा का / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नित्य ही प्रभात में पाता हूं प्रकाश के प्रसन्न स्पर्श में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बहुत दिन पहले तुमने दी थी मुझे बती धूप / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अपनी वाणी में अन्यमनस्क सुर में जब / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आँधी तूफान के बाद जैसा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जो कुछ भी चाहा था एकान्त आग्रह से / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- धूसर गोधलि लग्न में सहसा देखा एक दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- धर्मराज ने दिया जब ध्वंस का आदेश तब / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम्हें देख नहीं पाता तो अनुभूति होती / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
शेष वाणी
- सामने है शान्ति पारावार, / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- राहु सी मृत्य / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ओरे विहंसग मेरे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कड़ी धूप की लपटें हैं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- फिर से और एक बार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आ रहा महामानव, वो देखा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जीवन है पवित्र, जानता हूं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विवाह के पांचवे वर्ष में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- वाणी की मूर्ति गढ़ रहा हूं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अपने इस जन्म दिन में आज मैं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- एक दिन रूपनरान नदी के तीर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम्हारे जन्म दिन के दान उत्सव में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- प्रथम दिन के सूर्य ने / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दुःख की अँधिरिया रात / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अपनी सृष्टि का पथ कर रखा है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
आरोग्य
- विराट मानव चित्त में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ख्याति निन्दा पार हो आया हूं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- परम सुन्दर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नगाधिराज के सुदूर नारंग निकुंज के / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नारी, धन्य हो तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- रोग और जरा में जब इस देह से / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यहाँ-वहाँ की बातें आज उठ रही हैं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अलस शय्या के पास चल रही जीवन की मन्थर गीत / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अति दूर आकाश में है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- चुपके-चुपक आ रही है घातक रात / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मुक्त वातायन के पास जन शून्य घर में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इस जीवन में पाया है सुन्दर मधुर आशीर्वाद / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- प्रेम आया था एक दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- घण्टा बज उठा दूर कहीं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- निर्जन रोगी का घर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अकेला बैठा में विश्व के गवाक्ष में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विराट सृष्टि क्षेत्र में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- वाक्यों जो छन्द जाल सीखा है बुनना मैंने / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- असल समय धारा के सहारे मन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यह द्युलोक मधुमय है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- खुला था मन का द्वार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- धीरेे-धीरे संध्या है आ रही / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आलोक के हृदय में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इस ‘मैं’ का आवरण सहज में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- पलाश को आनन्द मूर्ति जीवन के फागुन की / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- रोज ही सवेरे आ प्रभुभक्त कुत्ता यह / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दिन पर दिन बीत रहे, स्तब्ध बैठा रहता मैं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- क्षण-क्षण में अनुभव मैं कर रहा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दीदी रानी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- फसल कट जाने पर खेत हो जाते साफ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विशु दाद हैं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- चिरकाल से होती आई है शुमार मेरी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुकान्त के तारे सितारे गूंथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
जीवन के जन्मदिन
- जीवन के अशीतितम वर्ष में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कल सवेरे मेरे जन्मदिन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अपराह्न में आये थे जन्म वासर के आमन्त्रण / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज जन्मवासर का विदीर्ण कर वक्षस्थल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- रक्ताक्त है दन्त पंक्ति हिंसक संग्राम की / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दमामा बज रहा है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नाना दुःखों में चित्त विक्षेप में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- उमर मेरी होगी जब बारह या तेरह की / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सोचता मन में हूं, मानो भाषा के असंख्य शब्द / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- पहाड़ की नीलिमा और दिगन्त की नीलिमा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- पुरातन काल का इतिहास जब / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जीवन वहन भाग्य को नित्य आशीर्वाद से / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- काल के प्रबल आवर्त से प्रतिहत / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- की है वाणी की साधना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरी चेतना में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विपुल इस पृथ्वी का मैं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सिंहासन की छाया तले दूर दूरान्तर में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सृष्टि लीला के प्रांगण में खड़ा हुआ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बहु-जन्मदिन से गुँथे मेरे इस जीवन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जन्म वासर के घट में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- फिर लौट आया आज उत्सव का दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज मेरा जन्मदिन है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जटिल है संसार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- फूलदानी से एक के बार एक / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विश्व धरणी के इस विशाल नीड़ में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नदी का पालित है मेरा यह जीवन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आती है याद आज, शैल तट पर तुम्हारी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- पुराना खंडहर घर और सूना दालान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम सबको मैं जानता हूं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर