पद काव्य रचना की गेय शैली है।
"पद" श्रेणी में पृष्ठ
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- दानी नए भए माँबन दान सुनै / रसखान
- दाने की न पानी की / आलम
- दास रघुनाथ का नंदसुत का सखा / बिन्दु जी
- दिखा देते हो जब रुख साँवले सरकार थोड़ा-सा / बिन्दु जी
- दिन दूलह मेरो कुँवर कन्हैया / गदाधर भट्ट
- दिन नहिं चैन, रैन नहिं निद्रा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दिन-रजनी, तरु-लता, ड्डूल-फल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दिया है खुदा ने खूब खुसी करो ग्वाल कवि / ग्वाल
- दियौ अभय पद ठाऊँ / सूरदास
- दिल तो प्यारा है मगर दिल से प्यारा तू है / बिन्दु जी
- दिव्य ज्योति-मण्डल उद्भासित किरणें / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दीन बन्धु हे करुणाकर प्रभु! / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दीनदयाल सुनी जबतें / मलूकदास
- दीनबन्धु! करुणा-वरुणालय! / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दीनबन्धो! कृपासिन्धो! कृपाबिन्दू दो प्रभो / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुःख दूर मत करो नाथ! / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुःख पराया जिसका सुख हो / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुःख-मृत्यु में देखूँ मैं नित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुःखालय अनित्य दारुण इस मर्त्यलोक के / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुतकारो-डाँटो सदा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुनियाँ भरम भूल बोराई / दरिया साहब
- दुरलभ नरदेह पाइ, भूल्यौ क्यों, बावरे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुर्गा दुर्गा रटत ही / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुर्मति दैत्य महाबलने आ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुर्लभ मानव-तन मिला / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दुहुनि की प्रीति अनादि, अनोखी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दूखण लागे नैन / मीराबाई
- दूर करो, ठुकराओ चाहे, प्यारे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दूर रहें या पास / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दूरि जदुराई सेनापति सुखदाई देखौ / सेनापति
- दूसरो न कोई / मीराबाई
- दृग तीर तेरे मोहन! जिस दिल को ढूँढते हैं / बिन्दु जी
- दृग तुम चपलता तजि देहु / जुगलप्रिया
- दृढ इन चरण कैरो भरोसो / सूरदास
- दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो / सूरदास
- देख अयों मैं तो साँई की सेजरिया / दूलनदास
- देख छबीली छटा / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देख जिऊँ माई नयन रँगीलो / कृष्णदास
- देख दुःख का वेष धरे मैं नहीं डरूँगा तुमसे, नाथ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देख निज नित्य निकेतन द्वार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देख रहा मैं, करते लीला श्रीराधा-माधव / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देख रही सुन रही सभी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देख हमैं सब आपुस में जो कुछ मन भावै सोई कहती हैं / नेवाज़
- देखत कै वृच्छन में / गँग
- देखा करूँ तुहारी लीला / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देखा स्वप्न राधिका ने / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देखि-देखि जिय अचरज होई / कबीर
- देखिए देखि या ग्वारि गँवारि की / रघुनाथ
- देखिबे को दुति, पूनो के चंद की / रघुनाथ
- देखी आजु अनोखी बात / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देखु सखी, नव छैल छबीलो / नारायण स्वामी
- देखो माई इत घन उत नँद लाल / गोविन्द
- देखो माई ये बडभागी मोर / सूरदास
- देखो माई हरियारो सावन आयो / रसिक दास
- देखो री हरि भोजन खात / सूरदास
- देख्यो श्रीवृंदा विपिन पार / नागरीदास
- देते सूर्य-सोम-मण्डल को / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देव मैं सीस बसायो सनेह कै / देव
- देव-दानवों ने मथा मिलकर उदधि अपार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देवकी-नन्दन की जय / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देवाराधन करें-करायें निज-निज / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देह प्राण मन बुद्धि इन्द्रियाँ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देह प्राण मन वस्तु परिस्थिति / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देह-प्राण, मन-बुद्धि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- देउँ कहा तुम कहँ स्याम सुजान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
- दै कहि बीर! सिकारिन को / रघुनाथ
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