वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ:
निर्विग्न कुरुमेदेव सर्व कार्येषु सर्वदा ||
आज म्हारे आंगणे श्री गिरिजा नंदन आयोजी,
गिरिजानन्दन आयोजी, भक्तन के मन भायोजी ||
कमर तगड़ी, पगाँ पैजनी, हाथां झुणझुणीयो लायोजी,
नैन में काजलयो, मस्तक टिकी चाँद मंडायोजी ||
पहर जरी को झबलो , चोटी रेशम फूल गुंथायोजी,
ठुमक ठुमक कर चाले,बोली बोले है तुतलायोजी ||
चौकी पर सिंघासन, जि पर सुन्दर वस्त्र बिछायोजी,
चरण धोय चरणामृत ले शिव नंदा ने बैठायोजी ||
चन्दन,अक्षत,धुप,दीप कर पुष्प हार पहनायोजी,
भोग लगावण एक थाल लडुअन को भी मंगवायोजी ||
लाडू देख विनायकजी को मनड़ो आज ललचायोजी,
झटपट उठा उठा कर लाडू रुच रुच भोग लगायोजी ||
छटा देख प्रिय गजानंद की मन म्हारो हरषायोजी,
नजर न लागे लम्बोदर के राई लूण करवायोजी ||
विघ्न विदारण मंगल कारण रिद्ध सिद्ध सागे ल्यायोजी,
सेवक गण श्रीगजानंदजी ने प्रेम से लाड लडायोजी ||
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